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CJI संजीव खन्ना का कार्यकाल खत्म: 'बातें कम, काम ज़्यादा' के सिद्धांत पर टिका सफर

मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना का छह महीने का कार्यकाल भले ही छोटा रहा, लेकिन उन्होंने अपने न्यायिक फैसलों और प्रशासनिक निर्णयों से पारदर्शिता और जवाबदेही की मिसाल कायम की. संपत्ति विवरण सार्वजनिक करना, कैशकांड में सख्ती और कॉलेजियम सिफारिशें उजागर करना उनके ऐतिहासिक कदमों में शामिल रहे.

Dimple Yadav
Edited By: Dimple Yadav

भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना 13 मई को रिटायर हो गए. अगर उनके पूरे कार्यकाल को कुछ शब्दों में समेटा जाए तो सबसे उपयुक्त वाक्य होगा—"बातें कम, काम ज़्यादा." न्यायपालिका में यह माना जाता है कि जज अपने फैसलों से बोलते हैं, और CJI खन्ना ने इस सिद्धांत का पूरी तरह पालन किया. उन्होंने कभी किसी विवादित या चर्चा में आने वाली टिप्पणी नहीं की, बल्कि अपने ठोस और पारदर्शी निर्णयों से न्यायपालिका में विश्वास को और मज़बूत किया.

CJI खन्ना का कार्यकाल केवल 6 महीनों का रहा. 11 नवंबर 2024 को उन्होंने भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश का पद संभाला था. हालांकि उनका कार्यकाल छोटा था, लेकिन उन्होंने इसे ऐतिहासिक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. उनकी कार्यशैली उनके पूर्ववर्ती, CJI डी.वाई. चंद्रचूड़ से बिल्कुल अलग थी. जहां चंद्रचूड़ खुलकर अपने विचार रखते थे, वहीं खन्ना शांत, गंभीर और फैसलों के जरिए अपनी बात रखने वाले जज थे.

कैशकांड पर सख्त रुख

उनके प्रशासनिक फैसलों की बात करें तो दिल्ली हाई कोर्ट के एक जज, यशवंत वर्मा के घर जले हुए कैश की बरामदगी के मामले में CJI खन्ना ने बेहद सख्ती दिखाई. उन्होंने इस मामले से जुड़ी रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर सार्वजनिक कर दिया, तीन जजों की समिति बनाई और जब आरोप साबित हुए तो वर्मा को इस्तीफा देने को कहा. इनकार पर रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेज दी गई ताकि महाभियोग की प्रक्रिया शुरू की जा सके.

पारदर्शिता और जवाबदेही की मिसाल

CJI खन्ना ने सुप्रीम कोर्ट के सभी जजों की संपत्ति का विवरण सार्वजनिक करने का प्रस्ताव पारित कराया, जिससे न्यायपालिका में पारदर्शिता की नई मिसाल कायम हुई. साथ ही, कॉलेजियम की सिफारिशों को सार्वजनिक कर यह भी दिखाया कि नियुक्तियों में सामाजिक विविधता और निष्पक्षता बरती गई है.

धार्मिक और संवेदनशील मामलों में संतुलन

धार्मिक स्थलों से जुड़े मुकदमों पर रोक लगाकर उन्होंने 1991 के 'प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट' की गंभीरता को बनाए रखा. वक्फ एक्ट में हो रहे बदलावों पर अंतरिम रोक का संकेत देकर केंद्र सरकार को पीछे हटने पर मजबूर किया.

बड़े वकीलों को भी नहीं मिली विशेष सुविधा

CJI खन्ना ने सुप्रीम कोर्ट में बड़े वकीलों को दी जाने वाली प्राथमिकता पर भी अंकुश लगाया. उन्होंने मौखिक अनुरोध की परंपरा को खत्म कर सुनवाई के लिए सिर्फ लिखित अनुरोध की प्रक्रिया को मान्यता दी.

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13 May 2025, 11:08 AM IST

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