भारत की वो वीरांगना, जिसे देखकर भागा था मोहम्मद गोरी
Nayaki Devi: भारत के इतिहास में वीरता की कई गाथाएं दर्ज हैं, लेकिन नायकी देवी की कहानी सबसे अलग है. एक विधवा रानी ने अपने साहस, रणनीति और युद्धकौशल से अफगान सेनापति मोहम्मद गोरी जैसे क्रूर आक्रमणकारी को मैदान छोड़कर भागने पर मजबूर कर दिया.

Nayaki Devi: भारत के इतिहास में जब भी वीरांगनाओं की बात होती है, तो नायकी देवी का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाता है. यह वह रानी थीं, जिनकी रणकुशलता और साहस के आगे दुनिया का सबसे क्रूर आक्रमणकारी मोहम्मद गोरी भी थर-थर कांप उठा था. गोरी ने जब गुजरात पर हमला किया, तब एक विधवा रानी ने उसे ऐसी शिकस्त दी कि वह कभी फिर उस ओर देखने की हिम्मत नहीं कर सका.
नायकी देवी चालुक्य वंश की वह महान योद्धा थीं, जिन्होंने अकेले दम पर एक शक्तिशाली विदेशी सेनापति को रणभूमि से भागने पर मजबूर कर दिया. यह कहानी सिर्फ युद्ध की नहीं, बल्कि एक नारी के संकल्प, रणनीति और शौर्य की भी है, जिसने भारतीय इतिहास को गौरवान्वित किया.
बचपन से ही युद्धकला में निपुण
नायकी देवी का जन्म गोवा में महामंडलेश्वर महाराजा शिवचट्टा परमंडी के घर हुआ था. बचपन से ही उन्हें युद्ध कलाओं में रुचि थी. उन्होंने तीरंदाजी, तलवारबाजी और घुड़सवारी में दक्षता हासिल की. उनका विवाह गुजरात के राजा अजयपाल सोलंकी से हुआ था. लेकिन सन 1176 में राजा की हत्या उनके ही अंगरक्षक ने कर दी. उस समय उनका पुत्र मूलराज द्वितीय बहुत छोटा था, ऐसे में रानी ने स्वयं राज्य की जिम्मेदारी संभाली.
शक्तिशाली शासक थीं नायकी देवी
राजा की मृत्यु के बाद जब राज्य संकट में था, तब दरबारियों के अनुरोध पर रानी ने राज्य के उत्तराधिकारी के प्रतिनिधि के रूप में शासन की बागडोर संभाली. यह वही समय था जब मुस्लिम आक्रमणकारी लगातार भारत पर हमले कर रहे थे और गुजरात उनका अगला लक्ष्य बन चुका था.
गोरी की बड़ी भूल
1175 में मुल्तान पर विजय के बाद मोहम्मद गोरी ने गुजरात की ओर रुख किया. उसे लगा कि विधवा रानी के शासन वाला राज्य आसानी से जीत लिया जाएगा. उसका लक्ष्य अनहिलवाड़ पाटन पर कब्जा करना था, जो चालुक्य वंश की राजधानी थी. लेकिन यहीं से गोरी की सबसे बड़ी भूल शुरू हुई.
माउंट आबू की तलहटी बनी रणभूमि
गोरी के आक्रमण की खबर मिलते ही नायकी देवी ने युद्ध की रणनीति बनानी शुरू की. उन्होंने गदरघट्टा (वर्तमान में राजस्थान के सिरोही जिले में) को युद्धस्थल चुना. रानी ने आसपास के राजाओं से मदद मांगी, लेकिन कोई आगे नहीं आया. फिर भी रानी ने हिम्मत नहीं हारी और अपनी सेना को तैयार कर युद्ध की कमान खुद संभाली.
रानी ने दिखाया चतुराई का परिचय
गोरी ने एक दूत के माध्यम से रानी को संदेश भेजा खुद को, अपने पुत्रों को और राज्य को समर्पण कर दे, वरना विनाश तय है. रानी ने उत्तर में हामी भरने का नाटक किया और गोरी को धोखा देने के लिए रणनीति रची. उन्होंने 200 सैनिकों को भेष बदलकर गोरी की सेना में भेजा और अन्य सैनिकों को रणनीतिक स्थानों पर तैनात कर दिया.
पीठ पर पुत्र, हाथ में तलवार और विजय की कहानी
रानी ने अपने छोटे पुत्र को पीठ पर बांधा और घोड़े पर सवार होकर स्वयं सेना का नेतृत्व किया. उनकी सेना में पैदल सैनिक, घुड़सवार और हाथियों की टुकड़ी शामिल थी. जैसे ही गोरी की सेना गदरघट्टा में स्थिर हुई, रानी ने चारों ओर से हमला बोल दिया. रानी की युद्धनीति और साहस के सामने गोरी की सेना टिक नहीं सकी.
हारकर भागा गोरी, फिर कभी नहीं लौट सका
रानी और उनकी सेना ने ऐसी मारक रणनीति अपनाई कि मोहम्मद गोरी को युद्धभूमि से अपनी जान बचाकर भागना पड़ा. यह वही गोरी था, जिसने कई राज्यों को जीत लिया था, लेकिन एक हिंदू रानी के सामने वह परास्त हो गया. हार के बाद गोरी ने फिर कभी गुजरात की ओर रुख नहीं किया.


