क्या है महाभियोग की मुश्किल राह, क्यों अब तक भारत में कोई जज बर्खास्त नहीं हुआ, जस्टिस वर्मा केस से खुला पूरा राज़
Impeachment Motion: जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ संसद में महाभियोग का प्रस्ताव पेश हुआ है। यह प्रक्रिया बेहद पेचीदा और संवैधानिक सुरक्षा से घिरी है, जिस रास्ते से भारत में अब तक कोई जज बर्खास्त नहीं हुआ।

National News: दिल्ली हाईकोर्ट के ‘कैश कांड’ के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ लोकसभा में महाभियोग प्रस्ताव पेश हुआ। लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला ने इस प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए न्यायाधीश जांच अधिनियम, 1968 की धारा 3(2) के तहत तीन सदस्यीय जांच समिति बनाई। इस समिति में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरविंद कुमार, मद्रास हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मनिंद्र मोहन श्रीवास्तव और कर्नाटक हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता बीवी आचार्य शामिल हैं। यह समिति जस्टिस वर्मा के खिलाफ लगे आरोपों की तफ़्तीश करेगी और अपनी रिपोर्ट पेश करेगी।
आरोप और शुरुआती हलचल
जस्टिस वर्मा को अक्टूबर 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट में नियुक्त किया गया था। मार्च 2024 में उनके सरकारी आवास में आग लगने की घटना ने सबको चौंका दिया। बाद में यह ख़बर आई कि वहां से बड़ी मात्रा में जली हुई नकदी मिली। सुप्रीम कोर्ट की एक इन-हाउस कमेटी ने तफ्तीश की और अपनी रिपोर्ट में वर्मा पर नकदी छिपाने और न्यायिक मर्यादा तोड़ने का इल्ज़ाम लगाया। हालांकि, जस्टिस वर्मा ने सभी इल्ज़ामों को बेबुनियाद बताते हुए कहा कि वह बेगुनाह हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट में तबादला
विवाद गहराने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट वापस भेज दिया, जहां वे पहले पदस्थ थे। यह कदम दबाव कम करने और न्यायिक गरिमा बनाए रखने के लिए उठाया गया। लेकिन ट्रांसफर के बावजूद महाभियोग की प्रक्रिया जारी रही। संसद में इस कदम को न्यायपालिका में जवाबदेही लाने के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है। लोगों के बीच यह सवाल उठने लगा कि क्या वर्मा को वाकई पद से हटाया जाएगा।
महाभियोग की असल हकीकत
महाभियोग एक संवैधानिक प्रक्रिया है, जिसके ज़रिए सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के जज को पद से हटाया जा सकता है। इसमें संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित होना ज़रूरी है। यह कोई तुरंत बर्खास्ती का हुक्म नहीं है, बल्कि लंबी जांच, बहस और वोटिंग के बाद ही नतीजा निकलता है। इसका मक़सद न्यायपालिका की आज़ादी और जनता का भरोसा, दोनों को सुरक्षित रखना होता है।
अब तक क्यों नहीं हटा कोई जज
भारत के इतिहास में अब तक कई जजों के खिलाफ महाभियोग की कोशिश हुई, लेकिन किसी को इस रास्ते से बर्खास्त नहीं किया गया। वजह है प्रक्रिया की सख़्ती, राजनीतिक सहमति की कमी और कई बार जज का खुद इस्तीफा दे देना। जैसे, 2011 में जस्टिस सौमित्र सेन ने राज्यसभा में प्रस्ताव पास होने के बाद इस्तीफा देकर बर्खास्तगी से बच गए। यह दर्शाता है कि यह प्रक्रिया कितनी नाज़ुक और दुर्लभ है।
जस्टिस रामास्वामी से आज तक
पहला बड़ा मामला जस्टिस वी. रामास्वामी का था, जिन पर वित्तीय गड़बड़ी के इल्ज़ाम लगे। जांच में दोषी पाए जाने के बावजूद कांग्रेस के कई सांसदों ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया और प्रस्ताव गिर गया। इसके बाद भी कई मामलों में प्रक्रिया शुरू हुई, लेकिन या तो आरोप साबित नहीं हुए या फिर जज ने खुद पद छोड़ दिया। आज तक एक भी जज महाभियोग से नहीं हटा, जो इस प्रक्रिया की पेचीदगी और राजनीति के असर को दिखाता है।
विशेषज्ञों की राय और मौजूदा मामला
कानून विशेषज्ञों का कहना है कि महाभियोग का इस्तेमाल बहुत सोच-समझकर होना चाहिए, क्योंकि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता से सीधा जुड़ा मामला है। बिना पुख्ता सबूत के इसका इस्तेमाल न्यायिक प्रणाली को कमज़ोर कर सकता है, लेकिन गंभीर आरोप साबित होने पर यह सबसे मज़बूत संवैधानिक हथियार है। जस्टिस वर्मा केस में अब पूरी नज़र जांच समिति की रिपोर्ट पर है। अगर रिपोर्ट में आरोप सही पाए गए तो यह मामला भारत के इतिहास में एक मिसाल बन सकता है।


