हिंदू धर्म में तो...वक्फ कानून पर क्या बोले CJI गवई? सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई पूरी, फैसला सुरक्षित
सुप्रीम कोर्ट में वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई पूरी हो गई है. याचिकाकर्ताओं ने इसे मुसलमानों के धार्मिक अधिकारों के खिलाफ बताते हुए अंतरिम रोक लगाने की मांग की, जबकि केंद्र सरकार ने इसका समर्थन किया. कोर्ट ने वक्फ को इस्लामिक अवधारणा माना, पर सभी धर्मों में दान की समानता की बात की. फैसले का इंतजार किया जा रहा है.

सुप्रीम कोर्ट में वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर गुरुवार (22 अप्रैल, 2025) को सुनवाई पूरी हुई. कोर्ट ने इस मामले में अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया है. तीन दिन तक चली सुनवाई में याचिकाकर्ताओं ने इस कानून को मुसलमानों के अधिकारों के खिलाफ बताते हुए अंतरिम रोक लगाने की मांग की, जबकि केंद्र सरकार ने इस कानून का समर्थन किया और इसे सही ठहराया.
वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की चुनौती
वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 को लेकर कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थीं, जिनमें इसे मुसलमानों के धार्मिक अधिकारों के खिलाफ और संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन बताया गया. याचिकाकर्ताओं ने इस कानून के लागू होने पर तत्काल रोक लगाने की अपील की. उनका कहना था कि यह कानून मुस्लिम समुदाय के धार्मिक अधिकारों को सीमित करेगा और वक्फ के नियंत्रण को लेकर उनकी स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करेगा.
केंद्र सरकार का पक्ष
दूसरी ओर, केंद्र सरकार ने इस कानून का जोरदार बचाव किया. सरकार ने यह दावा किया कि वक्फ एक इस्लामी अवधारणा है, जो धर्म के अनिवार्य भाग के रूप में नहीं आती और इसलिए यह कोई मौलिक अधिकार नहीं है. बुधवार (21 मई, 2025) को सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि वक्फ एक धार्मिक कार्य है, लेकिन इसे सिर्फ इस्लाम तक सीमित नहीं किया जा सकता. सरकार के अनुसार, यह कानून केवल वक्फ संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन और उनके दुरुपयोग को रोकने के लिए लाया गया है.
कपिल सिब्बल की दलील
कांग्रेस नेता और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने वक्फ की धार्मिक महत्ता को स्वीकार करते हुए कहा कि वक्फ अल्लाह के प्रति समर्पण है, जो परलोक की भलाई के लिए किया जाता है. उन्होंने तर्क किया कि अन्य धर्मों के विपरीत, वक्फ एक ईश्वर को दान देने का एक तरीका है. इस पर कोर्ट ने भी यह टिप्पणी की कि धार्मिक दान सिर्फ इस्लाम तक सीमित नहीं है.
कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर अपनी राय व्यक्त करते हुए कहा कि धार्मिक दान केवल इस्लाम से संबंधित नहीं है. चीफ जस्टिस बी.आर. गवई ने कहा कि हिंदू धर्म में भी मोक्ष की प्राप्ति के लिए दान की परंपरा है, और दान सभी धर्मों की एक मौलिक अवधारणा है. जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने ईसाई धर्म का उदाहरण देते हुए कहा कि "हम सभी स्वर्ग में जाने की कोशिश कर रहे हैं," जो यह दर्शाता है कि दान अन्य धर्मों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
सॉलिसिटर जनरल का तर्क
सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने किसी भी अंतरिम आदेश के विरोध में दलील दी. उन्होंने कहा कि अगर कोर्ट को अंत में यह लगता है कि यह कानून असंवैधानिक है, तो इसे रद्द किया जा सकता है. हालांकि, उन्होंने चेतावनी दी कि अगर कोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी किया और वक्फ संपत्तियां कानून लागू होने के बाद चली गईं, तो उन्हें वापस पाना मुश्किल होगा. उनका कहना था कि वक्फ अल्लाह का होता है, और एक बार वक्फ संपत्ति बनाई गई तो उसे पलटना आसान नहीं होगा.
सॉलिसिटर जनरल ने यह भी स्पष्ट किया कि वक्फ और वक्फ संपत्ति को दान देना दो अलग-अलग प्रक्रियाएं हैं. उन्होंने कहा कि मुसलमानों के लिए वक्फ बनाने की प्रक्रिया में पांच साल का अनुभव अनिवार्य है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इसका दुरुपयोग नहीं होगा.
फैसले का इंतजार
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई पूरी कर ली है और अब फैसले का इंतजार किया जा रहा है. यह निर्णय बेशक वक्फ के भविष्य और मुसलमानों के धार्मिक अधिकारों के लिए महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि इसके जरिए वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को लेकर एक नई दिशा तय हो सकती है. सरकार और याचिकाकर्ताओं के बीच लंबी बहस के बाद कोर्ट का निर्णय निश्चित रूप से धार्मिक और कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण होगा.


