भारत की चुप्पी और सेना की हलचल ने पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर में मचा दिया है हड़कंप
पहलगाम हमले के बाद भारत की खामोशी से पाकिस्तान अधिकृत खश्मीर की नीलम घाटी में हलचल मच गई. यहां सन्नाटा अब डर नहीं बल्कि किसी बड़ी कार्रवाई का आर्लम बनता जा रहा है. जब एक सीमांत क्षेत्र में जिंदगी ठहर जाए, तो समझिए जंग कहीं न कहीं दस्तक दे रही है.भारत ने अभी कुछ नहीं कहा, पर सब कुछ साफ दिखाई दे रहा है.

नई दिल्ली. पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की नीलम घाटी, जो एलओसी से महज तीन किलोमीटर दूर है, अब पूरी दुनिया की नजरों में आ चुकी है. 22 अप्रैल को पहलगाम में 26 निर्दोष लोगों की हत्या के बाद भारत की चुप्पी और सेना की मूवमेंट ने इस घाटी को नए सिरे से केंद्र में ला दिया है. इस घाटी में अब सन्नाटा सिर्फ मौसम का नहीं, एक रणनीतिक तैयारी का हिस्सा लग रहा है. यहां आर्मी ट्रक घूमते हैं, आम नागरिक घरों में छुपे हैं और दुकानें हमेशा के लिए बंद हो चुकी हैं, जब एक सीमांत क्षेत्र में जिंदगी ठहर जाए, तो समझिए जंग कहीं न कहीं दस्तक दे रही है.भारत ने अभी कुछ नहीं कहा, पर सब कुछ साफ दिखाई दे रहा है.
हर अंधेरा अब छुपने की नहीं, बचने की है कोशिश
पाकिस्तान की ओर से नीलम घाटी में रात के समय बिजली काट दी जाती है. मकसद है कि कोई ड्रोन या सैटेलाइट यहां की तस्वीर न ले सके. लेकिन सवाल उठता है—अगर सब कुछ ठीक है, तो छुपाने की ज़रूरत क्यों? दरअसल, पाकिस्तान जानता है कि भारत अब उसे केवल लफ्ज़ों से जवाब नहीं देगा. बिजली काटना, कैमरे छुपाना, और मीडिया को ब्लॉक करना—ये सब उसी डर का हिस्सा है जो एक रणनीतिक चूक की सज़ा से जुड़ा है. यहां अंधेरा सिर्फ रात का नहीं है, बल्कि सच्चाई पर डाले गए पर्दे का भी है.
बाज़ार सूने, सड़कों पर सेना, और दिलों में बेचैनी
नीलम घाटी में अब कोई भी सामान्य गतिविधि नहीं दिखती. सड़कों पर सैलानियों की जगह अब पाकिस्तानी सेना के ट्रक दिखाई देते हैं. होटल खाली हैं, दुकानें बंद, और बच्चों की हंसी तक गायब है. वहां अब हर गली में एक ऐसा सन्नाटा फैला है, जो आने वाले खतरे की आहट सुन चुका है. डर अब सिर्फ लोगों के दिल में नहीं, उस वादियों में भी समा गया है जहां कभी टूरिस्ट फोटो खिंचवाते थे. अब वहां सिर्फ एक सवाल गूंजता है—भारत कब जवाब देगा?
सरकारी अफसर छुट्टी पर नहीं, डर पर हैं तैनात
पाकि ने नीलम घाटी में तैनात सभी सरकारी कर्मचारियों की छुट्टियां रद्द कर दी हैं. उन्हें तुरंत ड्यूटी पर लौटने का आदेश है. आमतौर पर ऐसा आदेश आपदा के समय आता है, लेकिन इस बार ये आदेश भविष्य की एक अघोषित आपदा की आशंका से जुड़ा है. घाटी में प्रशासन खुद मान रहा है कि हालात सामान्य नहीं हैं. यह आदेश डर का आधिकारिक दस्तावेज बन गया है. पाकिस्तान की सरकार जानती है कि भारत का धैर्य अब जवाब में बदलने वाला है.
जब मां-बाप बच्चों को पहाड़ियों में छिपाने लगे
घाटी के गांवों में अब लाउडस्पीकरों से इमरजेंसी अलर्ट सुनाई दे रहे हैं. बच्चे स्कूल नहीं, बंकरों में जा रहे हैं. मां-बाप जंगलों की ओर भाग रहे हैं, बच्चों को हमले से बचाया जा सके. ये कोई रूटीन अलर्ट नहीं है, ये डर का ट्रेलर है. जो घाटी कभी हरे भरे पेड़ों और बहती नदियों के लिए जानी जाती थी, वहां अब हर झाड़ी एक छुपने की जगह बन गई है. यहां अब हर नागरिक एक सैनिक की तरह जी रहा है—बिना हथियार, लेकिन पूरी सतर्कता के साथ.
पाकिस्तान की हड़बड़ी: जवाब से पहले ही बिछा दिया बारूद
पाकिस्तान की सेना ने घाटी में अतिरिक्त जवान तैनात कर दिए हैं. चप्पे-चप्पे पर सर्चलाइट, रडार और ड्रोन की गतिविधियां बढ़ा दी गई हैं. एक और दिलचस्प बात—यह सब तब हो रहा है जब भारत की ओर से कोई औपचारिक प्रतिक्रिया तक नहीं आई. यही हड़बड़ी पाकिस्तान की घबराहट दिखाती है. यह वही घबराहट है, जो कारगिल से पहले भी थी. फर्क बस इतना है कि इस बार भारत मौन है, लेकिन उसकी चुप्पी भी दुश्मन को कंपा रही है.
क्या नीलम घाटी अगली सर्जिकल स्ट्राइक का बनेगी मैदान ?
सवाल सिर्फ भारत के जवाब का नहीं, उसकी दिशा का भी है, क्या भारत इस बार सीधे उस जगह को निशाना बनाएगा, जहां से हमले की योजना बनी. नीलम घाटी ईसी वक्त ग्लोबल रडार पर है-चीन, अमेरिका, यूएन सभी इसे देख रहे हैं. पर असली चुप्पी भारत की है, और वही सबसे ज्दाया खतरनाक है, क्योंकि भारत जब बोलता है, दुनिया सुनती है. और जब जवाब देता है. नक्शे तक बदल जाते हैं.


