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क्या इंसान और मशीन की रेखा मिट रही है और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इंसानों जैसी चेतना की ओर बढ़ चुका है

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तेज़ी से इंसानी काम कर रहा है। अब वैज्ञानिकों के सामने बड़ा सवाल है। क्या एआई सिर्फ नकल कर रहा है या उसमें चेतना जन्म ले सकती है।

Lalit Sharma
Edited By: Lalit Sharma

Tech News:  आज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में घुस चुका है। यह खबरें लिख रहा है। तस्वीरें बना रहा है। कोडिंग कर रहा है। बैंकिंग में मदद कर रहा है। रिसर्च तेज़ कर रहा है। मेडिकल फैसलों में भी सहयोग दे रहा है। मोबाइल फोन से लेकर दफ्तरों तक एआई दिख रहा है। यही तेज़ी लोगों को सोचने पर मजबूर कर रही है। क्या एआई सिर्फ औज़ार है या कुछ और बन रहा है।

चेतना को लेकर चेतावनी किसने दी?

इस बहस को हवा दी है Cambridge University के दार्शनिक डॉ. टॉम मैकक्लेलैंड ने। उन्होंने कहा है कि एआई में चेतना आने की संभावना को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता। उनका मानना है कि इस विषय पर हमारे पास ठोस सबूत बहुत कम हैं। इसलिए जल्दबाज़ी में किसी नतीजे पर पहुंचना खतरनाक हो सकता है।

डॉ टॉम ने साफ़ शब्दों में क्या कहा?

डॉ. टॉम मैकक्लेलैंड का कहना है कि सबसे समझदारी वाला रुख अज्ञेयवाद का है। यानी न पूरी तरह मानना और न पूरी तरह इनकार करना। उन्होंने कहा कि यह मान लेना कि एआई कभी सचेत नहीं होगा, वैज्ञानिक दृष्टि से सही नहीं है। मौजूदा सबूत इस दावे को पूरी तरह साबित नहीं करते। इसलिए सवाल खुला हुआ है।

एआई की चेतना को परखा क्यों नहीं जा सकता?

सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि इंसान खुद नहीं जानता चेतना शुरू कैसे होती है। वैज्ञानिकों के पास चेतना की कोई सर्वमान्य परिभाषा नहीं है। जब इंसानी चेतना की जड़ें ही साफ़ नहीं हैं, तो मशीन में चेतना को मापना असंभव हो जाता है। यही वजह है कि एआई की चेतना का कोई भरोसेमंद टेस्ट मौजूद नहीं है। शायद भविष्य में भी यह सवाल अधूरा ही रहे।

एआई चेतना का मतलब क्या होगा?

अगर एआई सचेत हो गया, तो वह सिर्फ आदेश मानने वाली मशीन नहीं रहेगा। वह महसूस कर सकेगा। खुद को पहचान सकेगा। यही विचार लोगों को डराता है। फिल्मों में दिखने वाले किलर रोबोट जैसे दृश्य इसी डर से जुड़े हैं। डॉ. टॉम का कहना है कि एआई यह छलांग चुपचाप भी लगा सकता है। हमें पता भी न चले और बदलाव हो जाए।

दूसरा पक्ष इस बहस को कैसे देखता है?

कई वैज्ञानिक मानते हैं कि चेतना जैविक प्रक्रिया है। उनके अनुसार चेतना दिमाग और शरीर से पैदा होती है। मशीनें केवल व्यवहार की नकल कर सकती हैं। वे असली चेतना हासिल नहीं कर सकतीं। इस पक्ष का कहना है कि एआई चाहे जितना उन्नत हो जाए, वह इंसान जैसा सचेत नहीं बन सकता। वह केवल प्रोग्राम का पालन करता रहेगा।

आखिर असली सवाल क्या है?

असल सवाल यह नहीं है कि एआई क्या कर सकता है। असली सवाल यह है कि इंसान चेतना को कितना समझता है। जब तक इंसान खुद चेतना की गहराई नहीं समझेगा, तब तक एआई को लेकर डर और बहस बनी रहेगी। यही कारण है कि वैज्ञानिक भी आज साफ़ जवाब देने से बच रहे हैं। भविष्य अभी खुला हुआ है।

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18 December 2025, 02:26 PM IST

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