टैरिफ से लेकर टेक तक अटका इंडिया-US समझौता! वॉशिंगटन से खाली हाथ लौटी भारतीय टीम

भारत की ट्रेड टीम वॉशिंगटन से बिना किसी डील के लौटी है, क्योंकि टैरिफ, डिजिटल नियमों और मार्केट एक्सेस पर बड़ी असहमति अब भी इस द्विपक्षीय समझौते को अटका रही है।

Lalit Sharma
Edited By: Lalit Sharma

इंटरनेशनल न्यूज़: भारत का प्रतिनिधिमंडल जो एक लंबे समय से लंबित ट्रेड डील को आगे बढ़ाने के लिए वॉशिंगटन गया था, किसी ठोस सहमति के बिना लौट आया है। मुख्य विवाद टैरिफ ढांचे, नियामक अड़चनों और बौद्धिक संपदा की मांगों को लेकर हैं। बहुप्रतीक्षित इंडिया-US ट्रेड वार्ता इस सप्ताह किसी बड़े परिणाम के बिना समाप्त हो गई, क्योंकि प्रमुख मुद्दे अब भी सुलझ नहीं पाए। वाणिज्य मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों की अगुआई में भारतीय टीम ने अमेरिकी अधिकारियों से कई दौर की बैठकें कीं।

हालांकि, टैरिफ को लेकर मतभेद, कृषि बाज़ार तक पहुंच और टेक क्षेत्र की नीतियों पर टकराव ने दोनों देशों को किसी व्यापक समझौते से दूर रखा। यह उस डील में एक और देरी है, जो सालों से राजनयिक प्रयासों का हिस्सा रही है। दोनों पक्षों ने आशा ज़ाहिर की लेकिन ये भी माना कि आगे और काम बाकी है। अमेरिका की डिजिटल व्यापार पर विशेष रियायतों की नई मांगें रुकावट बनीं। वहीं, भारत का कहना है कि किसी भी समझौते को संतुलित और घरेलू हितों की सुरक्षा करने वाला होना चाहिए।

टैरिफ अब भी बड़ी बाधा

अमेरिका चाहता है कि भारत विभिन्न वस्तुओं पर टैरिफ घटाए। उसका जोर कृषि उत्पादों, मेडिकल डिवाइसेज़ और टेक आयात पर है। भारत का मानना है कि ऐसा करने से घरेलू उद्योगों और खाद्य सुरक्षा को नुकसान पहुंचेगा। भारत ने एकतरफा कई व्यापार-सुलभ कदम उठाए हैं, लेकिन अमेरिका से वैसी प्रतिक्रिया नहीं मिली। इसी कारण यह मुद्दा दोनों देशों के रिश्तों में सबसे पेचीदा बना हुआ है।

डिजिटल नियमों पर नई आपत्ति

अमेरिका ने भारत के डिजिटल नियमों पर चिंता जताई, जिनमें डेटा लोकलाइजेशन और ई-कॉमर्स नीति शामिल है। अमेरिकी कंपनियों का मानना है कि ये नियम प्रतिस्पर्धा को बाधित करते हैं। भारत इन नीतियों को उपभोक्ता संरक्षण और डेटा संप्रभुता के लिए ज़रूरी बताता है। दोनों देशों में डिजिटल निर्भरता बढ़ने के साथ ये टकराव भी गहराया है। भारत ने डेटा गवर्नेंस पर चरणबद्ध संवाद का प्रस्ताव दिया, लेकिन कोई संयुक्त बयान नहीं आ पाया।

आईपी अधिकार फिर चर्चा में

बौद्धिक संपदा अधिकारों पर फिर से बहस तेज हुई, खासतौर पर दवाओं और टेक सेक्टर को लेकर। अमेरिका चाहता है कि भारत आईपी कानूनों को और सख्त करे। भारत का कहना है कि उसकी नीतियां WTO मानकों के अनुरूप हैं और सस्ती दवाओं तक पहुंच सुनिश्चित करती हैं। भारत ने वैक्सीन निर्माण में अपनी वैश्विक भूमिका भी दोहराई। हालांकि, किसी ठोस नतीजे तक नहीं पहुंचा गया।

कृषि पर टकराव बरकरार

अमेरिका चाहता है कि उसके कृषि उत्पादों को भारत में अधिक पहुंच मिले, जिसमें डेयरी और जीएम फसलें शामिल हैं। भारत ने खाद्य सुरक्षा और किसानों के हितों का हवाला देते हुए ऐतराज़ जताया। अमेरिकी पक्ष कहता है कि नीति विज्ञान आधारित होनी चाहिए, न कि संरक्षणवादी। दोनों पक्ष तकनीकी स्तर पर चर्चा जारी रखने पर सहमत हुए, लेकिन यह स्पष्ट है कि कृषि उदारीकरण इतनी जल्दी नहीं हो पाएगा।

सरकारी खरीद और सब्सिडी

सरकारी खरीद नीतियों और सब्सिडी सीमा पर भी गहन चर्चा हुई। अमेरिका चाहता है कि उसके व्यवसायों को भारत में समान अवसर मिलें। भारत ने WTO नियमों और अपने विकासशील देश के दर्जे का हवाला दिया। भारतीय पक्ष का कहना है कि सरकारी खरीद की नीतियों से स्थानीय एमएसएमई को फायदा मिलना चाहिए। कृषि और ऊर्जा में सब्सिडी ढांचे पर भी बात हुई, लेकिन सिर्फ फ्रेमवर्क तक ही सहमति बनी।

वीज़ा नियम अब भी उलझे

भारत ने कुशल पेशेवरों, विशेषकर आईटी और इंजीनियरिंग क्षेत्र के लिए वीज़ा नियमों में ढील की मांग की। अमेरिका ने यह मुद्दा माना लेकिन घरेलू क़ानूनी अड़चनों का हवाला दिया। भारतीय कंपनियों ने वीज़ा प्रोसेस में देरी और कठिन शर्तों की शिकायत की। दोनों पक्षों ने इसपर फिर से चर्चा की बात की लेकिन कोई समयसीमा तय नहीं हुई। भारत के लिए यह अहम मुद्दा बना रहेगा।

अगले दौर की तारीख तय नहीं

बातचीत सौहार्दपूर्ण रही, लेकिन अगली बैठक की तारीख तय नहीं हो सकी। दोनों देश अब आंतरिक समीक्षा करेंगे। रोडमैप की कमी ने डील की प्रगति को लेकर संदेह बढ़ा दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि दोनों देशों के राजनीतिक कार्यक्रम अब देरी का कारण बन सकते हैं। हालांकि, अधिकारियों ने कहा कि संवाद जारी रहेगा। इस महीने के अंत में एक संयुक्त बयान आने की उम्मीद है।

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04 July 2025, 06:26 PM IST

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