जस्टिस यशवंत वर्मा पर महाभियोग की आंच, क्या फिर से दोहराएगा इतिहास?
तत्कालीन चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ रिपोर्ट प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को सौंपी है, जिसमें महाभियोग की सिफारिश की गई है. अब संभावना है कि सरकार मॉनसून सत्र में प्रस्ताव ला सकती है. हालांकि एनडीए के पास बहुमत है, विपक्ष की सहमति भी जरूरी मानी जा रही है.

दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा इस समय एक गंभीर संकट का सामना कर रहे हैं. उनके सरकारी आवास से भारी मात्रा में नकदी मिलने के बाद पूरे न्यायिक तंत्र में हलचल मच गई है. इस मामले की जांच के लिए हाल ही में रिटायर हुए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने तीन सदस्यीय समिति गठित की थी. जांच के बाद समिति ने अपनी रिपोर्ट संजीव खन्ना को सौंपी, जिसमें जस्टिस वर्मा को दोषी बताया गया.
इस रिपोर्ट के आधार पर तत्कालीन चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को रिपोर्ट भेजी है और महाभियोग की सिफारिश की है. अब यह चर्चा जोरों पर है कि केंद्र सरकार आगामी मॉनसून सत्र में संसद में कोई प्रस्ताव ला सकती है. हालांकि एनडीए को दोनों सदनों में बहुमत प्राप्त है, फिर भी सरकार इस संवेदनशील मामले पर विपक्ष की सहमति भी चाहती है ताकि पूरा कदम राजनीतिक रूप से संतुलित दिखे.
ज्यूडिशियल इतिहास में पांच महाभियोग प्रयास
स्वतंत्र भारत के न्यायिक इतिहास में अभी तक सिर्फ पांच जजों के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू हुई है. लेकिन इनमें से सिर्फ एक ही मामला संसद तक पूरी तरह पहुंचा. वह मामला था जस्टिस वी. रामास्वामी का, जो 1990 के दशक की शुरुआत में चर्चा में आए.
कैग की रिपोर्ट से खुला था रामास्वामी का मामला
अक्टूबर 1989 में जस्टिस वी. रामास्वामी को सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नति मिली थी. लेकिन कैग की रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रहते हुए उन्होंने तय सीमा से अधिक खर्च किए थे. इस आर्थिक गड़बड़ी को लेकर बार काउंसिल ने भी विरोध दर्ज कराया और फिर तत्कालीन चीफ जस्टिस सब्यसाची मुखर्जी ने जांच का आदेश दिया.
छुट्टी लेकर जांच से बचे, फिर संसद पहुंचा मामला
जांच के दौरान रामास्वामी ने छह हफ्ते की छुट्टी ले ली. रिपोर्ट आने पर केस सरकार को सौंपा गया और राज्यसभा में महाभियोग का प्रस्ताव पारित कर दिया गया. इसके बाद यह लोकसभा पहुंचा.
कांग्रेस ने वोटिंग से बनाई दूरी
लोकसभा में दो दिन में 16 घंटे की बहस के बाद वोटिंग हुई, लेकिन कांग्रेस ने अपने सांसदों को विवेकानुसार वोट देने की छूट दी. नतीजतन 196 सांसदों ने प्रस्ताव का समर्थन किया, जबकि 205 गैर-हाजिर रहे. इस तरह दो-तिहाई समर्थन न मिलने से रामास्वामी बच गए.
क्या जस्टिस वर्मा के साथ दोहराएगा इतिहास खुद को?
अब निगाहें इस पर टिकी हैं कि क्या यशवंत वर्मा के मामले में सरकार विपक्ष को साथ लेकर प्रस्ताव ला पाएगी या यह मामला भी वी. रामास्वामी की तरह बिना नतीजे के समाप्त हो जाएगा.


