कश्मीर से कन्याकुमारी रेल कनेक्टविटी...कैसे पूरा हुआ 140 साल पुराना सपना? सामने थीं कई चुनौतियां
उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल लिंक परियोजना भारतीय रेलवे की सबसे कठिन और महत्वाकांक्षी पहाड़ी रेल परियोजना मानी जाती है. यह परियोजना न केवल इंजीनियरिंग की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह राष्ट्रीय एकता और सामाजिक-आर्थिक विकास का प्रतीक भी है.

1884 में जम्मू-कश्मीर के महाराजा प्रताप सिंह ने ब्रिटिश सरकार को पत्र लिखकर राज्य को भारतीय रेलवे नेटवर्क से जोड़ने का प्रस्ताव रखा था. उनका यह सपना विभाजन और अन्य कारणों से अधूरा रह गया. लेकिन 141 वर्षों बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस परियोजना का उद्घाटन कर उस सपने को साकार किया.
महाराजा की कश्मीर को रेल से जोड़ने की योजना
दीवान के माध्यम से अंग्रेजों को दिए गए अपने प्रस्ताव के साथ, महाराजा प्रताप सिंह ने 1890 के दशक के प्रारंभ में कश्मीर घाटी तक रेल मार्ग के लिए बीहड़ इलाके का सर्वेक्षण करने के लिए ब्रिटिश इंजीनियरों को नियुक्त किया. महाराजा ने तीन मार्ग प्रस्तावित किये थे: एबटाबाद से श्रीनगर, जो कभी नहीं बना, जम्मू से श्रीनगर विद्युत चालित मार्ग, तथा जम्मू से सियालकोट मार्ग, जो विभाजन और स्वतंत्रता के बाद से बंद पड़ा है.
जम्मू तक जाने वाली लाइन सियालकोट जिले (अब पाकिस्तान में) के सुचेतगढ़ से उत्तर पश्चिमी रेलवे (NWR) का विस्तार थी, जो लुधियाना और पठानकोट के माध्यम से वर्तमान में इस्तेमाल किए जाने वाले उत्तरी रेलवे के मार्ग से अलग थी. सियालकोट-जम्मू मार्ग को मार्च 1890 में खुला घोषित किया गया था. लेकिन पांच दशक बाद 1947 में जम्मू और कश्मीर राज्य की पहली रेलवे लाइन खो गई. जल्द ही स्वतंत्रता आंदोलन ने गति पकड़ ली, फिर प्रथम विश्व युद्ध शुरू हो गया और परियोजना आगे बढ़ पाती, इससे पहले ही महाराजा प्रताप सिंह का निधन हो गया.
जम्मू-उधमपुर-श्रीनगर रेलवे परियोजना
यह विचार लगभग नौ दशक बाद पुनर्जीवित हुआ, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1983 में जम्मू-उधमपुर-श्रीनगर रेलवे लाइन की आधारशिला रखी. तब तक जम्मू लुधियाना और पठानकोट के माध्यम से भारतीय रेलवे से फिर से जुड़ चुका था, जिससे विभाजन के बाद सियालकोट लाइन पाकिस्तान में चली जाने के बाद भारतीय राज्य का अलगाव समाप्त हो गया. 1983 में इस परियोजना की अनुमानित लागत 50 करोड़ रुपये थी और इसे पांच साल में पूरा किया जाना था. लेकिन 13 साल में केवल 11 किलोमीटर रेल लाइन का निर्माण हो सका, जिसमें 19 सुरंगें और 11 पुल शामिल थे, जिसकी लागत 300 करोड़ रुपये थी.
बढ़ती चली गई लागत
उसके बाद, प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा और आईके गुजराल के कार्यकाल में 2,500 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत वाली उधमपुर-कटरा-बारामुल्ला रेलवे परियोजना शुरू की गई. इसका निर्माण 1997 में शुरू हुआ, लेकिन चुनौतीपूर्ण भूगर्भीय, स्थलाकृतिक और मौसम संबंधी परिस्थितियों के कारण इसमें बार-बार देरी हुई. घाटी तक रेलवे लाइन के सामरिक महत्व को देखते हुए 2002 में इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया गया. 2005 तक 55 किलोमीटर लंबा जम्मू-उधमपुर खंड खोल दिया गया.
इस बीच, कश्मीर घाटी रेलवे पर काम एक द्वीप नेटवर्क की तरह अलग-थलग होकर शुरू हुआ, जो शेष भारतीय रेलवे से कटा हुआ था. 119 किलोमीटर लंबे बारामुल्ला-श्रीनगर-अनंतनाग-काजीगुंड खंड को 2009 में पूरा करके चालू कर दिया गया, जिससे घाटी के भीतर संपर्क स्थापित हुआ. हालांकि, व्यापक भारतीय रेलवे ग्रिड के साथ एकीकरण अभी भी मुश्किल बना हुआ है, क्योंकि चुनौतीपूर्ण उधमपुर-श्रीनगर-बारामुल्ला रेलवे लाइन (USBRL) परियोजना धीमी गति से आगे बढ़ रही है.
2014 में हुआ उधमपुर कटरा सेक्शन का उद्घाटन
जुलाई 2014 में उधमपुर-कटरा खंड का उद्घाटन किया गया, जिससे वैष्णो देवी तीर्थयात्रियों को सीधी रेल पहुंच प्राप्त हुई और कश्मीर को शेष भारत से जोड़ने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम उठाया गया. अगस्त 2023 तक यह कार्य पूरा नहीं हो सका, जब बनिहाल-संगलदान खंड का उद्घाटन हो जाएगा, तथा उसके बाद 2024 तक कटरा-संगलदान खंड का अंतिम खंड पूरा हो जाएगा, जिससे घाटी के रेलवे अलगाव का अंतर समाप्त हो जाएगा.
आतंकवाद ने कश्मीर रेलवे परियोजना में भी गंभीर बाधाएं खड़ी कीं, जिसमें निर्माण स्थलों और श्रमिकों को निशाना बनाकर कई हमले किए गए. 2004 में, आतंकवादियों ने अनंतनाग के पास एक निर्माण स्थल पर हमला किया, जिसमें कई मजदूर घायल हो गए. ऐसी धमकियों के बावजूद कड़ी सुरक्षा के बीच काम जारी रहा. 2013 में बनकर तैयार हुई बनिहाल-काजीगुंड सुरंग कुछ सबसे संवेदनशील इलाकों से होकर गुज़री, फिर भी इंडियन रेलवे कंस्ट्रक्शन इंटरनेशनल लिमिटेड (इरकॉन) के इंजीनियर और कर्मचारी डटे रहे.
इंजीनियरिंग की अद्भुत उपलब्धियां
USBRL परियोजना में 36 सुरंगें और 943 पुल हैं, जिनमें से चेनाब ब्रिज और अंजी खड्ड ब्रिज प्रमुख हैं. चेनाब ब्रिज नदी तल से 359 मीटर ऊंचा है, दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे आर्च ब्रिज है. वहीं, अंजी खड्ड ब्रिज 473.25 मीटर लंबा और 196 मीटर ऊंचा है, भारत का पहला केबल-स्टेड रेलवे ब्रिज है.
भूगर्भीय और सुरक्षा चुनौतियों का समाधान
इस परियोजना में निर्माण कार्य के दौरान कई भूगर्भीय और सुरक्षा संबंधित चुनौतियों का सामना करना पड़ा. सुरंगों की खुदाई के दौरान पानी का रिसाव, भूस्खलन और अस्थिर चट्टानों जैसी समस्याओं का समाधान करने के लिए भारतीय रेलवे ने 'हिमालयन टनलिंग मेथड' अपनाई. इसके अलावा, आतंकवाद प्रभावित क्षेत्रों में भी काम जारी रखा गया, जहां सुरक्षात्मक उपायों के साथ निर्माण कार्य सम्पन्न हुआ.
विकास और कनेक्टिविटी में वृद्धि
इस रेल लिंक के उद्घाटन से जम्मू और कश्मीर के बीच यात्रा समय में कमी आई है. अब श्रीनगर और जम्मू के बीच यात्रा समय लगभग तीन से तीन और आधे घंटे तक सीमित हो गया है. इसके अलावा, वंदे भारत एक्सप्रेस जैसी आधुनिक ट्रेन सेवाओं की शुरुआत से पर्यटन, व्यापार और रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी.
राष्ट्रीय एकता का प्रतीक
USBRL परियोजना न केवल एक इंजीनियरिंग उपलब्धि है, बल्कि यह भारत की राष्ट्रीय एकता का प्रतीक भी है. यह परियोजना जम्मू-कश्मीर को शेष भारत से जोड़ने का कार्य करती है, जिससे क्षेत्रीय असमानताओं को कम किया जा सकेगा और सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस परियोजना के उद्घाटन के बाद कहा, "यह कार्यक्रम भारत की एकता और दृढ़ इच्छाशक्ति का भव्य उत्सव है. माता वैष्णो देवी के आशीर्वाद से कश्मीर अब भारत के विशाल रेलवे नेटवर्क से जुड़ गया है."


