2000 के मानहानि केस में फंसीं मेधा पाटकर, अदालत में गैरहाजिरी पर जारी हुआ वारंट, दिल्ली पुलिस ने किया अरेस्ट
सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को दिल्ली पुलिस ने 23 साल पुराने मानहानि मामले में गिरफ्तार कर लिया है. यह मामला वर्ष 2000 से जुड़ा है, जब वर्तमान दिल्ली एल-जी वी.के. सक्सेना ने उनके खिलाफ "कायर" कहने और हवाला आरोपों को लेकर केस दर्ज कराया था.

सामाजिक कार्यकर्ता और नर्मदा बचाओ आंदोलन की अगुवा मेधा पाटकर को दिल्ली पुलिस ने गुरुवार को गिरफ्तार कर लिया। यह गिरफ्तारी 23 साल पुराने एक मानहानि केस में हुई है, जिसमें अदालत द्वारा गैर-जमानती वारंट जारी किया गया था। यह मामला वर्ष 2000 का है, जब मौजूदा दिल्ली उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना ने पाटकर के खिलाफ एक प्रेस विज्ञप्ति को लेकर मानहानि का मुकदमा दर्ज कराया था.
गिरफ्तारी के बाद मेधा पाटकर को शुक्रवार दोपहर साकेत कोर्ट में पेश किया जाएगा। यह मामला अब एक गंभीर कानूनी मोड़ पर आ पहुंचा है, जहां अदालत ने उनकी अनुपस्थिति और आदेश की अवहेलना पर सख्त रुख अपनाया है.
2000 से चला आ रहा विवाद
वर्ष 2000 में जब वी.के. सक्सेना गुजरात की एक एनजीओ के प्रमुख थे, तब मेधा पाटकर ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर उन्हें "कायर" कहा था और हवाला लेन-देन में शामिल होने का आरोप लगाया था। यह बयान उस समय नर्मदा बचाओ आंदोलन के दौरान दिया गया था। इसे लेकर सक्सेना ने दिल्ली की अदालत में मानहानि का मुकदमा दर्ज करवाया था.
₹10 लाख का जुर्माना
8 अप्रैल 2024 को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विशाल सिंह ने 70 वर्षीय पाटकर को मानहानि का दोषी करार दिया था। उन्हें ₹10 लाख के जुर्माने और प्रोबेशन बॉन्ड भरने की शर्त पर रिहा करने का आदेश दिया गया था। लेकिन जब मामला 24 अप्रैल को फिर अदालत में आया, तो पाया गया कि न तो पाटकर अदालत में पेश हुईं और न ही उन्होंने दिए गए निर्देशों का पालन किया.
अदालत का सख्त रुख
सक्सेना की ओर से अधिवक्ता गजिंदर कुमार ने अदालत को इस बात की जानकारी दी कि पाटकर ने न तो अदालत में हाजिरी दी और न ही जुर्माना अदा किया। इसके बाद कोर्ट ने दिल्ली पुलिस आयुक्त के माध्यम से गैर-जमानती वारंट जारी कर दिया। कोर्ट ने पाटकर के स्थगन की मांग को "शरारती और निराधार" बताते हुए चेतावनी दी कि अगर 3 मई तक शर्तें पूरी नहीं की गईं, तो पूर्व में दिखाई गई नरमी पर पुनर्विचार किया जाएगा.
पहले भी हो चुकी है सजा
यह कोई पहला मामला नहीं है जब मेधा पाटकर को इस केस में दोषी ठहराया गया हो। पिछले साल 24 मई को एक मजिस्ट्रेट अदालत ने पाटकर के बयानों को जानबूझकर सक्सेना की छवि खराब करने की साजिश माना था। कोर्ट ने यह भी कहा था कि पाटकर ने सक्सेना पर "गुजरात की जनता और संसाधनों को विदेशी हितों के हाथों गिरवी रखने" का आरोप लगाकर उनकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाई. इसके बाद 1 जुलाई को उन्हें पांच महीने की साधारण कैद की सजा सुनाई गई थी, जिसके खिलाफ उन्होंने सत्र न्यायालय में अपील दायर की थी.


