ऑफिस के बाद नहीं देना होगा ईमेल-कॉल्स का जवाब, लोकसभा में पेश हुआ राइट टू डिस्कनेक्ट बिल, जानें क्या मिलेंगे अधिकार
एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले ने राइट टू डिस्कनेक्ट बिल 2025 पेश किया, जो कर्मचारियों को ऑफिस समय बाद काम से दूर रहने का अधिकार देगा. संसद में मेन्स्ट्रुअल लीव, NEET छूट, मृत्युदंड समाप्ति और पत्रकार सुरक्षा से जुड़े बिल भी पेश किए गए.

नई दिल्लीः राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) की सांसद सुप्रिया सुले ने शुक्रवार को संसद के पटल पर एक अहम प्रस्ताव रखते हुए राइट टू डिस्कनेक्ट बिल 2025 पेश किया. यह बिल आधुनिक कार्य संस्कृति से जुड़े उस बढ़ते तनाव को संबोधित करता है, जिसमें कर्मचारियों से ऑफिस घंटे खत्म होने के बाद भी कॉल और ईमेल का जवाब देने की अपेक्षा की जाती है. बिल का उद्देश्य ऐसा सिस्टम तैयार करना है, जो कर्मचारियों को छुट्टियों या निर्धारित काम के समय के बाद पूरी तरह काम से ‘डिस्कनेक्ट’ होने का कानूनी अधिकार प्रदान करे.
यह बिल एक प्राइवेट मेंबर बिल के रूप में पेश किया गया है. संसद में ऐसे बिल किसी भी लोकसभा या राज्यसभा सदस्य द्वारा लाए जा सकते हैं, बशर्ते वे समझते हों कि किसी विशेष विषय पर सरकार को कानून बनाना चाहिए. आमतौर पर, प्राइवेट मेंबर बिलों पर चर्चा होती है और सरकार की प्रतिक्रिया के बाद उन्हें वापस ले लिया जाता है, इसलिए इनके कानून में बदलने की संभावना कम होती है. फिर भी, ये बिल महत्वपूर्ण मुद्दों को राष्ट्रीय बहस के केंद्र में लाने का बड़ा माध्यम होते हैं.
काम के बाद कॉल और ईमेल का जवाब न देने की आजादी
सुप्रिया सुले द्वारा लाए गए इस बिल में एम्प्लॉय वेलफेयर अथॉरिटी बनाने का प्रस्ताव है. यह अथॉरिटी मजदूरों और नौकरीपेशा लोगों के अधिकारों की रक्षा करेगा और कंपनियों में एक संतुलित कार्य वातावरण सुनिश्चित करने की दिशा में काम करेगा. अगर बिल पारित होता है, तो कर्मचारी यह कह सकेंगे कि वे ऑफिस समय के बाहर किए गए कॉल या ईमेल का जवाब देने के लिए बाध्य नहीं हैं.
भारत में कोरोना महामारी के बाद वर्क फ्रॉम होम और हाइब्रिड मॉडल का चलन बढ़ा, जिसके कारण काम और निजी जीवन की सीमाएं धुंधली हो गई हैं. कई कर्मचारी लगातार मानसिक दबाव में रहते हैं, क्योंकि उनसे 24 घंटे उपलब्ध रहने की अपेक्षा की जाती है. ऐसे में यह बिल एक बड़ी राहत के तौर पर उभर सकता है.
महिलाओं के लिए मासिक धर्म से जुड़े अधिकारों की मांग
संसद में शुक्रवार को महिलाओं से जुड़े कई महत्वपूर्ण बिल भी पेश किए गए. कांग्रेस सांसद कडियाम काव्या ने मेन्स्ट्रुअल बेनिफिट्स बिल 2024 पेश किया, जिसमें महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान कार्यस्थल पर बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराने की मांग की गई है.
इसके अलावा लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) की सांसद शंभवी चौधरी ने भी एक महत्वपूर्ण प्राइवेट मेंबर बिल प्रस्तुत किया. इस बिल में महिलाओं और छात्राओं के लिए पेड मेन्स्ट्रुअल लीव को कानूनी अधिकार बनाने और मासिक धर्म के दौरान स्वास्थ्य संबंधी अन्य लाभ सुनिश्चित करने की बात कही गई है. यह विषय लंबे समय से समाज में चर्चा का केंद्र रहा है, लेकिन इसे कानून के स्तर पर आगे बढ़ाने का प्रयास हाल ही में तेजी से हुआ है.
NEET से छूट का प्रस्ताव
कांग्रेस सांसद मणिक्कम टैगोर ने तमिलनाडु के लिए मेडिकल प्रवेश परीक्षा NEET से छूट का प्रस्ताव रखा. राज्य लंबे समय से NEET का विरोध करता रहा है और इसी मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में भी एक याचिका दायर की गई है.
मृत्युदंड समाप्त करने का प्रस्ताव
डीएमके सांसद कनिमोझी करुणानिधि ने मृत्युदंड को पूरी तरह समाप्त करने का बिल पेश किया. हालांकि इस विषय पर पहले भी बहस हो चुकी है, केंद्र सरकारें इसे कठोर अपराधों के लिए आवश्यक मानती रही हैं.
पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कानून
निर्दलीय सांसद विशालदादा प्रकाशबापू पाटिल ने पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और उनके खिलाफ होने वाली हिंसा को रोकने के लिए पत्रकार (हिंसा रोकथाम एवं सुरक्षा) बिल 2024 प्रस्तुत किया.


