परमाणु जंग के बाद जिंदगी बचाने के लिए कौनसी फसलें उगेंगी? वैज्ञानिकों ने किया चौंकाने वाला खुलासा!
परमाणु युद्ध के बाद ज़िंदगी बचाने के लिए क्या खाया जाएगा? वैज्ञानिकों ने रिसर्च के आधार पर बताया कि पालक और चुकंदर जैसी सब्जियां कम रोशनी में भी उग सकती हैं और इंसान को ज़रूरी

परमाणु युद्ध: भारत और पाकिस्तान जंग के मुहाने पर खड़े हैं. माहौल में तनाव है और परमाणु हथियारों की चर्चा तेज हो चुकी है. इसी बीच वैज्ञानिक अध्ययन सामने आया है जो बताता है कि अगर परमाणु जंग के कारण 'परमाणु सर्दी' आती है तो, इंसानों को जिंदा रहने के लिए कौन-सी फसलें उगानी चाहिए. परमाणु सर्दी का मतलब है ऐसा मौसम जिसमें सूरज की रोशनी धरती तक नहीं पहुंचती. वजह होती है-धमाकों के बाद उठी राख जो आसमान को ढक लेती है. इससे तापमान गिरता है और पौधो के बढ़ने में मुश्किल होती है. इस दौरान आम फसलें नहीं उगतीं. इस स्टोरी में आज हम आपको बताएंगे कि परमाणु सर्दी में कौनसी कौनसी सब्जियां उगेंगी.
पालक और चुकंदर बनेंगे जीवन रेखा
न्यूजीलैंड के पामर्स्टन नॉर्थ शहर में की गई रिसर्च बताती है कि परमाणु सर्दी के हालात में पालक और चुकंदर जैसी सब्जियां सबसे बेहतर साबित होंगी। ये कम रोशनी में भी उग सकती हैं और इंसानी शरीर को ज़रूरी पोषण दे सकती हैं। खासकर अगर आप किसी मिड-साइज़ शहर में रहते हैं तो ये फसलें ज़िंदगी बचा सकती हैं।
औद्योगिक पैमाने पर गेहूं और गाजर की सिफारिश
शोध में बताया गया है कि अगर शहर के बाहरी इलाकों में औद्योगिक स्तर पर फसल उगाई जाए तो 97% गेहूं और 3% गाजर का अनुपात सबसे उपयुक्त रहेगा। यह संयोजन भोजन की मात्रा और पोषण दोनों को संतुलित रखेगा।
भूख से मौत रोकने के लिए हुआ शोध
इस शोध का उद्देश्य सिर्फ एक था – यदि विश्वस्तरीय आपदा आ जाए तो कैसे कम ज़मीन में ज़्यादा और टिकाऊ खाना पैदा किया जा सके। वैज्ञानिकों का मानना है कि भविष्य की जंगों में भोजन सबसे बड़ी चुनौती होगी।
महामारी और सौर तूफान में भी कारगर तरीका
शोधकर्ताओं ने स्पष्ट किया कि यह तकनीक सिर्फ परमाणु युद्ध नहीं, बल्कि किसी भी वैश्विक आपदा जैसे भीषण महामारी या सूर्य से निकली विकिरण की स्थिति में भी मददगार साबित हो सकती है।
मैट बॉयड ने क्या कहा
इस अध्ययन में मुख्य लेखक एडाप्ट रिसर्च के संस्थापक मैट बॉयड ने बताया कि यह रिसर्च मौजूद राजनीति को ध्यान में रखकर नहीं की गई थी, लेकिन हैरानी की बात यह है कि आज हालात में यह रिसर्च बेहद ज्यादा प्रासंगिक बन गई.


