भारत रूस की रक्षा दोस्ती ने ऑपरेशन सिंदूर में युद्ध का रुख मोड़ा, पुतिन दौरे से बढ़ेगी ताकत
पाकिस्तान के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर के दौरान रूसी टेक्नोलॉजी ने भारत की सैन्य क्षमता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, अब मोदी–पुतिन शिखर सम्मेलन में रक्षा सहयोग को और मजबूती मिलने की उम्मीद है।

New Delhi: ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत को रूस से मिले सैन्य सहयोग ने युद्ध क्षेत्र में निर्णायक बढ़त दिलाई। मिसाइल सिस्टम, एयर डिफेंस, फाइटर जेट्स और इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर जैसी तकनीकों में रूस का योगदान भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण रहा। रिपोर्ट्स के मुताबिक रूस की मदद से भारत ने मुकाबले में खुद को इक्कीस साबित किया। अब रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत आने वाले हैं और अनुमान है कि दोनों देश रक्षा सहयोग को नए स्तर पर ले जाएंगे। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह मुलाकात भारत-रूस रक्षा मित्रता में एक ऐतिहासिक मोड़ ला सकती है।
क्या एस-400 ने युद्ध में साबित की ताकत?
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान रूस निर्मित एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम ने अद्भुत प्रदर्शन किया। इस प्रणाली ने शत्रु विमानों और मिसाइल हमलों को अत्यधिक सटीकता से रोका। भारत ने 2018 में रूस से पांच स्क्वैड्रन खरीद का सौदा किया था, जिसमें से तीन की आपूर्ति हो चुकी है। रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते बाकी दो स्क्वैड्रन अभी लंबित हैं। सूत्रों के मुताबिक पीएम मोदी और राष्ट्रपति पुतिन बैठक में बाकी आपूर्ति तेज कराने और अतिरिक्त पांच स्क्वैड्रन खरीदने पर चर्चा करेंगे। एस-400 को भारत के लिए “एयर शील्ड” माना जा रहा है।
क्या सुखोई-57 पर भी समझौता हो सकता है?
रूस भारत को पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान सुखोई-57 की पेशकश कई बार कर चुका है। कयास लगाए जा रहे हैं कि इस बार इस अनुमानित सौदे पर गंभीर बातचीत हो सकती है। ये जेट हवाई प्रभुत्व, स्टेल्थ क्षमता और लंबी दूरी की मारक क्षमता के लिए जाने जाते हैं। एक्सपर्ट्स के अनुसार यदि भारत सुखोई-57 को शामिल करता है, तो यह भारतीय वायुसेना की ताकत में एक बड़ा इज़ाफा होगा। रूस इस क्षेत्र में भारत को रणनीतिक सहयोगी मानता है और तकनीकी स्थानांतरण में भी रुचि दिखा रहा है।
क्या भारत-रूस रक्षा साझेदारी नई नहीं, पुरानी बुनियाद पर है?
रक्षा विश्लेषकों का कहना है कि भारत और रूस के बीच सहयोग दशकों पुराना है। 1970 के दशक से भारतीय वायुसेना रूसी मिसाइलों और विमानों पर निर्भर रही। मिग-21, मिग-23, मिग-27, मिग-29 और मिग-25 जैसे विमानों ने भारत की रक्षा क्षमता को नई ऊंचाई दी। टी-90 टैंकों ने थल सेना की शक्ति में अहम योगदान दिया। नीति आयोग के सदस्य और प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. वीके सारस्वत के अनुसार रूस की टेक्नोलॉजी ने हर युद्ध परिस्थिति में भारत को मजबूती दी।
ब्राह्मोस क्यों है भारत-रूस दोस्ती का प्रतीक?
भारत और रूस ने मिलकर ब्राह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल विकसित की, जिसका नाम ब्रह्मपुत्र और रूसी नदी मोस्कवा से लिया गया। विशेषज्ञों के अनुसार ब्राह्मोस दुनिया की सबसे तेज क्रूज मिसाइलों में से एक है और यह शत्रु क्षेत्र में लक्ष्यों को असाधारण सटीकता के साथ नष्ट करती है। डॉ. सारस्वत का कहना है कि ब्राह्मोस ने युद्ध में भारत को निर्णायक सामरिक बढ़त दी है। इसके अलावा सीधे हमले के मामलों में सुखाई विमानों की दक्षता भी अद्वितीय मानी जाती है।
मोदी-पुतिन सम्मेलन से क्या उम्मीदें हैं?
नई दिल्ली में होने वाले मोदी-पुतिन सम्मेलन में सैन्य समझौतों पर मुख्य रूप से फोकस रहने की संभावना है। भारत रूस से एस-400 के अतिरिक्त स्क्वैड्रन, नई पीढ़ी की मिसाइलें और उन्नत लड़ाकू विमानों की खरीद पर चर्चा करेगा। इसके साथ ही इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर, उपग्रह निगरानी और संयुक्त उत्पादन पर भी बात आगे बढ़ सकती है। विशेषज्ञों के अनुसार यह बैठक भारत-रूस रणनीतिक साझेदारी को “युद्ध सहयोग से तकनीकी भागीदारी” के स्तर तक ले जा सकती है।
ऑपरेशन सिंदूर ने क्या तय कर दिया भारत का रक्षा भविष्य?
ऑपरेशन सिंदूर में मिली सफलता ने यह संदेश दिया कि जब तकनीक और मित्रता मिलती है, तो युद्ध की दिशा बदल सकती है। भारत ने साबित किया कि सही रक्षा साझेदार होने पर कोई भी चुनौती पार की जा सकती है। अब भारत न सिर्फ रूस से हथियार ले रहा है बल्कि तकनीकी साझेदारी की ओर भी बढ़ रहा है। विशेषज्ञ मानते हैं कि आने वाले समय में भारत-रूस का रक्षा गठजोड़ एशिया के शक्ति संतुलन को भी प्रभावित कर सकता है।


