बिहार: ओवैसी के सियासी दांव से उलझा महागठबंधन, लालू-राहुल के बीच फंसा फैसला
पिछले बिहार विधानसभा चुनाव में ओवैसी की AIMIM ने 5 सीटें जीतकर शानदार प्रदर्शन किया था. खासकर सीमांचल क्षेत्र में महागठबंधन को भारी नुकसान हुआ. इसके बाद आरजेडी और कांग्रेस ने उन्हें बीजेपी की ‘बी टीम’ कहकर निशाना बनाना शुरू कर दिया था.

बिहार विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां तेज हो चुकी हैं और अब एक बार फिर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने अपनी सक्रियता से सियासी समीकरणों में हलचल मचा दी है. ओवैसी की पार्टी ने महागठबंधन में शामिल होने की औपचारिक इच्छा जताई है, जिससे राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन के सामने असमंजस की स्थिति बन गई है.
AIMIM की बिहार यूनिट के अध्यक्ष अख्तरुल ईमान ने RJD प्रमुख लालू यादव को चिट्ठी लिखकर महागठबंधन में शामिल होने की अपील की है. उनका तर्क है कि इससे मुस्लिम और धर्मनिरपेक्ष वोटों का बंटवारा नहीं होगा और BJP को लाभ नहीं मिल पाएगा. AIMIM ने दावा किया है कि अगर पार्टी को गठबंधन में जगह मिलती है तो ये 2025 में महागठबंधन की सरकार बनाने की दिशा में बड़ा कदम साबित होगा.
पिछली बार का AIMIM प्रदर्शन बना डर की वजह
2020 के विधानसभा चुनाव में AIMIM ने सीमांचल क्षेत्र की 5 सीटों पर जीत दर्ज की थी. यह वही इलाका है जहां मुस्लिम आबादी का अच्छा खासा प्रभाव है. AIMIM के चलते उस समय महागठबंधन बहुमत से 12 सीट पीछे रह गया था. बाद में RJD ने AIMIM के 4 विधायकों को तोड़कर अपने खेमे में शामिल कर लिया था.
कांग्रेस का डर: "बीजेपी की B टीम"?
कांग्रेस AIMIM को लेकर आशंकित है. उसे लगता है कि ओवैसी को साथ लेना BJP की "हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण" रणनीति को फायदा पहुंचा सकता है. कांग्रेस और RJD की अंदरूनी चिंता ये भी है कि अगर ओवैसी के प्रस्ताव को ठुकरा दिया जाए, तो वो खुद को सेकुलर वोटों का रक्षक बताते हुए अलग चुनाव लड़ सकते हैं, जिससे फिर महागठबंधन को नुकसान होगा.
जवाब में देरी, पर फैसला करीब
अभी तक AIMIM के प्रस्ताव का महागठबंधन की ओर से कोई आधिकारिक जवाब नहीं आया है. सूत्रों के मुताबिक, गठबंधन की कोशिश है कि ऐसा जवाब तैयार किया जाए जिससे सीधा इनकार न करना पड़े, लेकिन AIMIM भी साथ न आ पाए. इस मसले पर राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के बीच 9 जुलाई को पटना में अहम बैठक होनी है, जिसमें फैसला लिया जा सकता है.
क्या ओवैसी फिर नुकसान पहुंचाएंगे?
ओवैसी का यह प्रस्ताव चुनावी रणनीति है या वोटों की 'सेकुलरिटी' की चिंता—यह बहस का विषय है. लेकिन उनका यह कदम बीजेपी विरोधी खेमे के लिए दोधारी तलवार बन गया है. AIMIM का यह दांव आने वाले चुनावों में निर्णायक साबित हो सकता है, खासकर सीमांचल जैसी मुस्लिम बहुल सीटों पर.
नतीजा जो भी हो, महागठबंधन के लिए यह अग्निपरीक्षा है
अब देखना यह है कि AIMIM को साथ लेकर महागठबंधन वोटों को जोड़ने में कामयाब होता है या ओवैसी को दरकिनार करके एक बार फिर उसी गलती को दोहराता है जो 2020 में भारी पड़ी थी. बिहार की सियासत एक बार फिर मोड़ पर है और हर कदम रणनीति से भरा हुआ.


