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पद्म विभूषण डॉ. जयंत नार्लीकर का पुणे में निधन, विज्ञान जगत में शोक की लहर

Jayant Narlikar: प्रसिद्ध खगोल भौतिकशास्त्री और विज्ञान लेखक डॉ. जयंत नार्लीकर का मंगलवार को पुणे में 87 वर्ष की आयु में निधन हो गया. पद्म विभूषण से सम्मानित नार्लीकर विज्ञान को आम जनता तक पहुंचाने और भारत में खगोल विज्ञान को मजबूत आधार देने के लिए जाने जाते थे.

Shivani Mishra
Edited By: Shivani Mishra

Jayant Narlikar: भारत के प्रसिद्ध खगोल भौतिकशास्त्री, विज्ञान लेखक और पद्म विभूषण से सम्मानित डॉ. जयंत विष्णु नार्लीकर का मंगलवार को पुणे में निधन हो गया. 87 वर्षीय डॉ. नार्लीकर विज्ञान के क्षेत्र में अपने असाधारण योगदान के लिए जाने जाते थे और विज्ञान को आम जनता तक पहुँचाने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई.

परिवार के सदस्यों ने जानकारी दी कि डॉ. नार्लीकर का निधन नींद में शांतिपूर्वक हुआ. उनके परिवार में तीन बेटियाँ हैं. पारिवारिक सूत्रों के अनुसार, उनका अंतिम संस्कार बुधवार को पुणे में किया जाएगा.

ब्रह्मांड के रहस्यों को समझाने वाले वैज्ञानिक

डॉ. नार्लीकर ब्रह्मांड विज्ञान (कॉस्मोलॉजी) और विज्ञान के प्रचार-प्रसार के क्षेत्र में अग्रणी माने जाते थे. उन्होंने न केवल उच्चस्तरीय अनुसंधान को बढ़ावा दिया, बल्कि कई महत्वपूर्ण वैज्ञानिक संस्थानों की स्थापना में भी अहम भूमिका निभाई और कई पीढ़ियों के वैज्ञानिकों को मार्गदर्शन दिया.

बनारस से कैम्ब्रिज तक का सफर

19 जुलाई 1938 को जन्मे डॉ. नार्लीकर का बचपन बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) परिसर में बीता, जहां उनके पिता विष्णु वासुदेव नार्लीकर गणित विभाग के प्रमुख थे. इसके बाद उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में गणित की पढ़ाई की और वहाँ के प्रतिष्ठित टायसन मेडल से सम्मानित किए गए. उन्होंने मैथमेटिकल ट्राइपॉस में 'रैंगलर' की उपाधि प्राप्त की, जो वहां के सबसे प्रतिभाशाली छात्रों को दी जाती है.

भारत लौटकर की बड़ी शुरुआत

1972 में भारत लौटने के बाद उन्होंने टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) में सैद्धांतिक खगोल भौतिकी समूह का नेतृत्व किया. 1989 तक उनके नेतृत्व में यह समूह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्यातिप्राप्त हो गया.

IUCAA की स्थापना और नेतृत्व

1988 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने पुणे विश्वविद्यालय परिसर में इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिज़िक्स (IUCAA) की स्थापना की जिम्मेदारी डॉ. नार्लीकर को सौंपी. वे इसके संस्थापक निदेशक बने और 2003 में सेवानिवृत्ति तक इस पद पर रहे. बाद में वे इसी संस्थान से एमेरिटस प्रोफेसर के रूप में जुड़े रहे.

विज्ञान लेखन और विज्ञान प्रसार में भी अग्रणी

डॉ. नार्लीकर ने विज्ञान लेखन और विज्ञान संप्रेषण में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. 1996 में उन्हें यूनेस्को द्वारा 'कालींगा पुरस्कार' से सम्मानित किया गया, जो लोकप्रिय विज्ञान लेखन के लिए दिया जाता है. इसके अलावा 2012 में थर्ड वर्ल्ड अकादमी ऑफ साइंसेज ने उन्हें विज्ञान में उत्कृष्टता के लिए सम्मानित किया.

वे विज्ञान पर आधारित कई पुस्तकों और लेखों के लेखक थे, साथ ही विज्ञान कथाओं (साइंस फिक्शन) के लिए भी प्रसिद्ध थे. उन्होंने टीवी और रेडियो कार्यक्रमों के माध्यम से आम जनता के बीच जटिल वैज्ञानिक विषयों को सरल भाषा में प्रस्तुत किया.

सम्मान और उपलब्धियां

डॉ. नार्लीकर को 1965 में मात्र 26 वर्ष की उम्र में पद्म भूषण से नवाजा गया था. इसके बाद 2004 में उन्हें पद्म विभूषण मिला. महाराष्ट्र सरकार ने 2011 में उन्हें राज्य का सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'महाराष्ट्र भूषण' प्रदान किया. उनकी आत्मकथा, जो मराठी में लिखी गई, को 2014 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला.

वे 2021 में नासिक में आयोजित मराठी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता करने वाले थे, लेकिन स्वास्थ्य कारणों से शामिल नहीं हो सके.

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20 May 2025, 12:58 PM IST

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