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जस्टिस वर्मा को हटाने की तैयारी तेज, केंद्र ने सभी दलों से ली राय

जस्टिस वर्मा ने घर से जले नोट मिलने के मामले में खुद को निर्दोष बताया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट समिति ने उन्हें दोषी ठहराया. इसी दौरान उनका तबादला इलाहाबाद हाईकोर्ट कर दिया गया. उन्हें इस्तीफा देने के लिए कहा गया, मगर उन्होंने इनकार कर दिया, जिससे विवाद और गहरा गया.

Dimple Yadav
Edited By: Dimple Yadav

दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास से भारी मात्रा में जले हुए नोट मिलने के मामले ने राजनीतिक और न्यायिक दोनों ही स्तरों पर बड़ा बवाल मचा दिया है. इस गंभीर मामले को लेकर केंद्र सरकार अब जस्टिस वर्मा को पद से हटाने पर विचार कर रही है. सूत्रों की मानें तो सरकार ने इस संबंध में सभी प्रमुख राजनीतिक दलों से बातचीत की है ताकि हटाने को लेकर आम सहमति बनाई जा सके.

सरकार की योजना है कि जल्द ही जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव संसद में लाया जाए. हालांकि यह अभी स्पष्ट नहीं है कि यह प्रस्ताव लोकसभा में लाया जाएगा या राज्यसभा में. इसके लिए एक समिति का गठन किया जाएगा जो जांच रिपोर्ट तैयार करेगी, जिसके आधार पर संसद में इस मामले पर चर्चा होगी. संसद के नियमों के अनुसार इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिए तीन महीने का समय निर्धारित है.

जस्टिस वर्मा पर सियासी सहमति की कोशिश

इस पूरे विवाद की शुरुआत तब हुई जब 14 मार्च की रात दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश रहते जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास पर आग लगने के बाद वहां से अधजली नकदी बरामद हुई. इस मामले की जांच के लिए पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू की अगुवाई में तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया, जिसने 10 दिनों तक विस्तृत जांच की. इस दौरान 55 गवाहों से पूछताछ की गई और घटनास्थल का भी दौरा किया गया. समिति ने अपनी 64 पेज की रिपोर्ट में पाया कि जस्टिस वर्मा और उनके परिवार का उस स्टोर रूम पर गुप्त या सक्रिय नियंत्रण था, जहां से जले हुए नोट मिले. रिपोर्ट में इस बरामदगी को न्यायिक कदाचार माना गया और सुझाव दिया गया कि उन्हें तत्काल पद से हटाया जाना चाहिए.

केंद्र सरकार ने सभी दलों से की बातचीत

इस मामले में पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग चलाने की सिफारिश की थी. हालांकि जस्टिस वर्मा ने खुद को निर्दोष बताते हुए इस्तीफा देने से इनकार किया है. विवाद के दौरान उन्हें दिल्ली हाईकोर्ट से इलाहाबाद हाईकोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया है.

विपक्ष को साथ लेने में जुटी केंद्र सरकार

सरकार अब इस मामले को गंभीरता से ले रही है और राजनीतिक दलों के समर्थन से जस्टिस वर्मा को पद से हटाने की दिशा में कदम उठाने की तैयारी कर रही है. अगले संसद सत्र में इस विषय पर निर्णायक कार्रवाई हो सकती है, जिससे यह विवाद और अधिक उजागर हो सकता है.

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03 July 2025, 01:13 PM IST

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