भारत पर दबाव की कोशिश बेकार, पुतिन का सीधा इशारा किसकी ओर?
भारत-अमेरिका संबंधों में हाल के तनावपूर्ण दौर के बीच रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा है कि आज की दुनिया भारत को 77 वर्ष पहले वाले देश की नजर से देखने की भूल न करें.

भारत-अमेरिका संबंधों में हाल के तनावपूर्ण दौर के बीच रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा है कि आज की दुनिया भारत को 77 वर्ष पहले वाले देश की नजर से देखने की भूल न करें. उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि 150 करोड़ की आबादी वाला भारत अपनी ताकत, आत्मनिर्भरता और व्यापक प्रगति के साथ अब एक नए युग में प्रवेश कर चुका है.
पीएम मोदी को लेकर क्या बोले पुतिन?
पुतिन ने यह भी संदेश दिया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर किसी भी देश का दबाव काम नहीं करेगा. उन्होंने बिना अमेरिका का नाम लिए कहा कि भारत किसी के आगे झुकने वाला राष्ट्र नहीं है और वह अपने हितों के अनुसार वैश्विक साझेदारियाँ तय करता है.
एक इंटरव्यू में पुतिन ने कहा कि भारत ने हाल के वर्षों में विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय विकास किया है और वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक मजबूत शक्ति के रूप में उभरा है. रूस से रियायती दाम पर कच्चा तेल खरीदने पर अमेरिका की ओर से उठाए जाने वाले सवालों पर उन्होंने कहा कि वे अपने सहयोगी देशों या राष्ट्राध्यक्षों का व्यक्तिगत मूल्यांकन नहीं करते. उन्होंने टिप्पणी करते हुए कहा कि चरित्र-निर्णय का अधिकार उन देशों के नागरिकों का है, जिन्होंने उन्हें चुनकर सत्ता सौंपी है.
ऊर्जा कारोबार से जुड़े सवाल पर उन्होंने महत्वपूर्ण खुलासा करते हुए कहा कि अमेरिका आज भी अपने परमाणु संयंत्रों के लिए रूस से यूरेनियम खरीद रहा है. उन्होंने कहा कि यदि अमेरिका अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए रूस पर निर्भर रह सकता है, तो भारत द्वारा रूसी ऊर्जा खरीदने पर किसी को आपत्ति करने का कोई आधार नहीं है. पुतिन ने यह भी कहा कि वे इस मुद्दे पर अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप से संवाद करने के लिए तैयार हैं.
भारत की यात्रा पर पुतिन
पुतिन वर्तमान में भारत की यात्रा पर हैं, जहां दोनों देशों के बीच रणनीतिक, आर्थिक और तकनीकी सहयोग पर व्यापक चर्चा हो रही है. हालांकि भारत का नजरिया केवल समझौतों तक सीमित नहीं है; उसका उद्देश्य अस्थिर वैश्विक व्यवस्था के बीच स्थिर कूटनीतिक संतुलन बनाए रखना भी है. रूस भारत के लिए कई स्तरों पर महत्वपूर्ण साझेदार बना हुआ है. कच्चे तेल का भरोसेमंद स्रोत, वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं से सुरक्षा का माध्यम और चीन के प्रभाव को संतुलित करने में एक अहम भू-राजनीतिक सहयोगी.
ध्यान देने योग्य बात यह है कि यूक्रेन युद्ध से पहले भारत केवल 2.5% कच्चा तेल रूस से आयात करता था, लेकिन प्रतिबंधों और यूरोपीय देशों की दूरी के बाद यह आंकड़ा बढ़कर लगभग 35% तक पहुंच गया. इससे भारत की ऊर्जा नीति में बड़ा बदलाव आया है और रूस भारत की ऊर्जा सुरक्षा रणनीति में केंद्रीय भूमिका निभाने लगा है.


