'उसने इसे अपराध नहीं माना', सुप्रीम कोर्ट ने नाबालिग से संबंध के दोषी को दी राहत
सुप्रीम कोर्ट ने एक असाधारण फैसले में POCSO (पॉक्सो) कानून के तहत दोषी ठहराए गए युवक को सजा से राहत दी है. यह युवक 15 साल की लड़की के साथ रिश्ते में था, जो अब उसकी पत्नी है. अदालत ने माना कि लड़की ने इसे अपराध नहीं माना, बल्कि आज वह अपने पति को बचाने के लिए पुलिस और न्यायिक व्यवस्था से लड़ रही है.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए POCSO एक्ट के तहत दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति को सजा नहीं देने का आदेश दिया, हालांकि उसकी दोषसिद्धि को बरकरार रखा गया. अदालत ने अपने विशेष अधिकारों का प्रयोग करते हुए संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत यह आदेश दिया. यह मामला एक 15 वर्षीय लड़की से संबंधों से जुड़ा है, जो अब आरोपी की पत्नी बन चुकी है.
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पीड़िता की मनोस्थिति और सामाजिक परिस्थितियों को आधार बनाकर निर्णय सुनाया. बेंच ने टिप्पणी की, “पीड़िता ने इसे जघन्य अपराध नहीं माना. उसने सूचित निर्णय नहीं लिया. समाज ने उसे ठुकरा दिया, कानून ने साथ नहीं दिया और परिवार ने छोड़ दिया. अब वह अपने पति को बचाने की कोशिश कर रही है.”
समाज और कानून दोनों ने पीड़िता को छोड़ा अकेला
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि यह मामला हमारी न्यायिक प्रणाली की खामियों को उजागर करता है. अदालत ने कहा, “यह कानूनी अपराध नहीं, बल्कि इसके परिणाम थे, जिन्होंने पीड़िता को मानसिक और सामाजिक रूप से तोड़ दिया. उसे पुलिस और न्यायिक तंत्र से लड़कर अपने पति को बचाने की जद्दोजहद करनी पड़ी.”
क्यों दिया गया विशेष फैसला?
संविधान का अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को ऐसे विशेष अधिकार देता है, जिसके तहत वह ‘पूरी न्याय की पूर्ति’ के लिए कोई भी आदेश पारित कर सकती है. अदालत ने माना कि इस मामले में पीड़िता की वर्तमान स्थिति, सामाजिक बहिष्कार और मानसिक पीड़ा को देखते हुए दोषी को सजा देना न्यायसंगत नहीं होगा.
पश्चिम बंगाल सरकार को दिए गए निर्देश
शीर्ष अदालत ने इस केस में आगे की कार्रवाई करते हुए पश्चिम बंगाल सरकार और महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय को स्पष्ट निर्देश दिए. अदालत ने कहा कि किशोरों के बीच बनने वाले यौन संबंधों के मामलों में संवेदनशीलता से काम लिया जाए.
यौन शिक्षा और POCSO जागरूकता पर जोर
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि स्कूलों में यौन शिक्षा को बढ़ावा दिया जाए, ताकि किशोर सही निर्णय ले सकें. साथ ही POCSO एक्ट की जानकारी और इसके तहत अनिवार्य रिपोर्टिंग के महत्व को जनजागरूकता के माध्यम से फैलाया जाए.
अदालत की टिप्पणी ने झकझोरा
इस केस की सुनवाई के दौरान बेंच ने कहा कि सजा सुनाने का मुद्दा परेशानी का सबब है. पीड़िता ने इसे जघन्य अपराध नहीं माना. पीड़िता सोच-समझकर फ़ैसला नहीं ले पाई. समाज ने उसे दोषी ठहराया, कानूनी व्यवस्था ने उसे विफल कर दिया, परिवार ने उसे छोड़ दिया. वह अपने पति को बचाने की कोशिश कर रही है.
क्या अब वक्त है POCSO में बदलाव का?
यह फैसला यह सवाल खड़ा करता है कि क्या POCSO एक्ट को समय के अनुरूप और संवेदनशील बनाना चाहिए, खासकर तब जब दोनों पक्षों की सहमति हो और सामाजिक रिश्तों में विवाह जैसी परिस्थिति उत्पन्न हो गई हो.


