भारत में कैंसर की स्थिति भयावह, अमेरिका और चीन के बाद सबसे ज्यादा मौतें, विशेषज्ञों ने बताए 3 अहम उपाय
कैंसर एक ऐसी बीमारी है जो तेजी से भारत में गंभीर स्वास्थ्य संकट बनती जा रही है. हर साल लाखों लोग इस घातक बीमारी की चपेट में आते हैं, लेकिन सबसे चिंताजनक बात यह है कि ईलाज के बाद हर 5 में से 3 मरीजों की मौत हो जाती है. कैंसर खासकर महिलाओं पर इसका प्रभाव ज्यादा देखा जा रहा है.

भारत में कैंसर से होने वाली मौतों में तेजी से वृद्धि हो रही है, और विशेषज्ञों के अनुसार, आने वाले दो दशकों में यह संकट और भी गहरा सकता है. हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, भारत में हर पांच में से तीन कैंसर पीड़ितों की मौत हो जाती है. सबसे चिंताजनक बात यह है कि महिलाओं पर इस बीमारी का सबसे अधिक प्रभाव पड़ रहा है.
द लैंसेट द्वारा किए गए एक विश्लेषण में यह पाया गया है कि भारत कैंसर से संबंधित मौतों में दुनिया में तीसरे स्थान पर है, जहां स्तन और गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. वहीं, पुरुषों में मौखिक कैंसर सबसे आम है. इस गंभीर स्थिति के पीछे कौन-से कारण हैं और महिलाओं को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, आइए विस्तार से जानते हैं.
भारत में कैंसर से जुड़ी भयावह स्थिति
भारत में कैंसर के मामलों में हर साल 2 प्रतिशत की वृद्धि हो रही है, जो कि जनसंख्या की उम्र बढ़ने और स्वास्थ्य सेवाओं की सीमित उपलब्धता के कारण हो रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में कैंसर से संबंधित मौतों की दर अमेरिका और चीन के बाद सबसे अधिक है. अमेरिका में कैंसर से होने वाली मौतों का अनुपात चार में से एक है, जबकि चीन में यह आंकड़ा दो में से एक का है.
क्या है विशेषज्ञों की राय
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुंच, समय पर निदान न हो पाना और जागरूकता की कमी इसके मुख्य कारण हैं. बीएलके-मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल के मेडिकल ऑन्कोलॉजी विभाग के वरिष्ठ निदेशक डॉ. सज्जन राजपुरोहित के अनुसार, "भारत में अभी भी कैंसर का समय पर पता लगाने के लिए पर्याप्त स्क्रीनिंग कार्यक्रम नहीं हैं, जिससे मरीज उन्नत अवस्था में ही डॉक्टरों के पास पहुंचते हैं."
महिलाओं पर कैंसर का सबसे अधिक प्रभाव क्यों?
विशेषज्ञों के अनुसार, भारत में महिलाओं को कैंसर से जुड़े कई अतिरिक्त जोखिमों का सामना करना पड़ता है. ये जोखिम मुख्य रूप से निम्नलिखित कारणों से बढ़ते हैं:
1. देर से निदान
कई महिलाएं सामाजिक कलंक, वित्तीय निर्भरता और जागरूकता की कमी के कारण समय पर चिकित्सा सहायता नहीं ले पाती हैं. इससे कैंसर का पता देर से चलता है, जब उपचार के सीमित विकल्प बचते हैं.
2. स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुंच
ग्रामीण और अर्ध-शहरी इलाकों में महिलाओं के लिए विशेषज्ञ ऑन्कोलॉजिस्ट और उन्नत चिकित्सा सुविधाओं की कमी बनी हुई है. इससे इलाज की प्रक्रिया और भी जटिल हो जाती है.
3. वित्तीय और सामाजिक बाधाएं
महिलाओं का स्वास्थ्य अक्सर परिवार में प्राथमिकता नहीं होता, खासकर निम्न आय वर्ग में. आर्थिक तंगी के चलते कई महिलाएं नियमित मेडिकल जांच नहीं करा पातीं, जिससे निदान देर से होता है और मृत्यु दर बढ़ जाती है.
क्या किया जा सकता है?
विशेषज्ञों का मानना है कि इस संकट से निपटने के लिए तूरंत कार्रवाई की आवश्यकता है.
समय पर पहचान और स्क्रीनिंग कार्यक्रम: स्तन, गर्भाशय ग्रीवा और मौखिक कैंसर के लिए बड़े पैमाने पर स्क्रीनिंग प्रोग्राम शुरू किए जाने चाहिए.
जागरूकता अभियान: लोगों को कैंसर के लक्षण, निवारक उपायों और उपचार विकल्पों के बारे में शिक्षित करना जरूरी है. स्वास्थ्य सेवा में सुधार: ग्रामीण और अर्ध-शहरी इलाकों में कैंसर देखभाल की सुविधाएं बढ़ाई जानी चाहिए.
सरकारी और निजी भागीदारी: सरकार और निजी संस्थानों को मिलकर कैंसर रोकथाम के लिए बेहतर योजनाएं लागू करनी चाहिए.


