पाकिस्तान के एफ-16 बेड़े पर अमेरिका की नजर, क्या दोबारा होगा बालाकोट जैसा टकराव?
अमेरिका ने पाकिस्तान के F-16 लड़ाकू विमान पर बारीकी से नजर रख रहा है. इसके लिए ट्रंप ने 3439 करोड़ रुपये से अधिक की पैकेज को मंजूरी दी है. यह फंडिंग 2022 में स्वीकृत 450 मिलियन डॉलर के पिछले पैकेज का विस्तार है, जिसका उद्देश्य पाकिस्तान की वायुसेना को नियंत्रित ढंग से संचालित करना है. अमेरिका का दावा है कि मजबूत निगरानी तंत्र भविष्य में दुरुपयोग को रोकेगा.

अमेरिका ने हाल ही में पाकिस्तान के एफ-16 लड़ाकू जेट बेड़े को बनाए रखने और उन पर सख्त निगरानी रखने के लिए 397 मिलियन डॉलर के पैकेज को मंजूरी दी है. यह फंडिंग 2022 में स्वीकृत 450 मिलियन डॉलर के पिछले पैकेज का विस्तार है, जिसका उद्देश्य पाकिस्तान की वायु सेना को नियंत्रित ढंग से संचालित करना है. आपको बता दें कि यह वहीं एफ-16 है जिसको पाकिस्तानी एयरफोर्स ने भारत के खिलाफ इस्तेमाल किया था.
बालाकोट हवाई हमला और एफ-16 विवाद
दरअसल, 26 फरवरी 2019 को भारत ने पाकिस्तान के बालाकोट में स्थित जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी शिविरों पर एयर स्ट्राइक की थी. इसके जवाब में, पाकिस्तान ने अपने एफ-16 लड़ाकू विमानों को तैनात किया, जिससे भारतीय वायुसेना के साथ टकराव हुआ. भारत ने पाकिस्तान पर अमेरिकी शर्तों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया, क्योंकि एफ-16 को केवल आतंकवाद विरोधी अभियानों के लिए दिया गया था. बाद में अमेरिका ने पाकिस्तान को चेतावनी देते हुए कहा कि इन विमानों का गलत उपयोग अमेरिका के रणनीतिक हितों को नुकसान पहुंचा सकता है.
अमेरिका का नया निगरानी तंत्र
अमेरिका का कहना है कि इस बार पाकिस्तान के एफ-16 जेट्स के दुरुपयोग को रोकने के लिए सख्त निगरानी तंत्र अपनाया जाएगा.
तकनीकी सुरक्षा दल (TST): अमेरिकी वायुसेना और ठेकेदारों की एक टीम पाकिस्तान में तैनात रहेगी, जो एफ-16 के उपयोग पर चौबीसों घंटे नजर रखेगी.
सीमित पहुंच: एफ-16 को उन ठिकानों से दूर रखा जाएगा जहां चीन निर्मित जेएफ-17 विमान तैनात हैं.
परिचालन अनुमोदन: पाकिस्तान को किसी भी एफ-16 अभियान के लिए अमेरिका से पूर्व स्वीकृति लेनी होगी.
हथियार नियंत्रण: एडवांस्ड मीडियम-रेंज एयर-टू-एयर मिसाइल (AMRAAM) के इस्तेमाल पर सख्त नियंत्रण रहेगा.
बेस सीमाएं: एफ-16 केवल शाहबाज एयरबेस (जैकबाबाद) और मुशफ एयरबेस (सरगोधा) पर तैनात रहेंगे.
भारत की चिंताएं
भारत का मानना है कि बालाकोट हमले के बाद पाकिस्तान ने अंतिम उपयोग शर्तों का उल्लंघन किया था, इसलिए अमेरिका के आश्वासनों पर पूरी तरह भरोसा नहीं किया जा सकता. विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने 2022 में अमेरिका की इस फंडिंग को लेकर सवाल उठाए थे और इसे "परेशान करने वाला" करार दिया था.
क्या अमेरिका की निगरानी होगी सफल?
अमेरिका ब्लू लैंटर्न और गोल्डन सेंट्री जैसे वैश्विक निगरानी कार्यक्रमों पर भरोसा कर रहा है, लेकिन सवाल यह उठता है कि संकट की स्थिति में ये कितने प्रभावी होंगे.
भारत-अमेरिका संबंधों पर असर
अमेरिका को भारत और पाकिस्तान के बीच संतुलन साधने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. जहां अमेरिका भारत को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार मानता है, वहीं पाकिस्तान को भी आतंकवाद विरोधी अभियानों में सहयोगी बनाए रखना चाहता है.


