होसबले के विवादित बयान पर उपराष्ट्रपति धनखड़ का जवाब, संविधान की प्रस्तावना में बदलाव संभव नहीं
जगदीप धनखड़ ने कहा कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना में कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता. ये संविधान की आत्मा और नींव है.

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को कहा कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह संविधान की आत्मा और नींव है. उन्होंने कहा कि विश्व के अधिकांश देशों ने अपनी प्रस्तावना में कोई बदलाव नहीं किया है, लेकिन भारत में 1976 में 42वें संविधान संशोधन के जरिए ‘समाजवादी’, ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘अखंडता’ जैसे शब्दों को जोड़ा गया.
धनखड़ ने की बी.आर. अंबेडकर की भूमिका की सराहना
धनखड़ ने यह बात एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम के दौरान कही. उन्होंने डॉ. बी.आर. अंबेडकर की भूमिका की सराहना करते हुए कहा कि उन्होंने संविधान की रचना में अत्यंत परिश्रम किया था और मूल प्रस्तावना पर विशेष ध्यान दिया होगा. यह टिप्पणी ऐसे समय आई है जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने प्रस्तावना में जोड़े गए कुछ शब्दों की समीक्षा की मांग की है.
धनखड़ ने आपातकाल को भारतीय लोकतंत्र का सबसे अंधकारमय काल बताते हुए कहा कि उसी दौरान इन शब्दों को प्रस्तावना में जोड़ा गया था. उन्होंने इसे संविधान की मूल भावना के साथ "विश्वासघात" करार दिया और कहा कि इस पर खुलकर चर्चा होनी चाहिए.
दत्तात्रेय होसबले ने की सार्वजनिक बहस की मांग
आरएसएस के महासचिव दत्तात्रेय होसबले ने भी इस विषय पर सार्वजनिक बहस की मांग की है कि ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ जैसे शब्द संविधान की प्रस्तावना में बने रहने चाहिए या नहीं. उन्होंने इन्हें ‘राजनीतिक अवसरवाद’ और संविधान की आत्मा पर किया गया ‘जानबूझकर हमला’ बताया.
इस बयान के बाद राजनीतिक हलकों में तीखी प्रतिक्रिया देखी गई है. कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने आरएसएस के इस रुख की आलोचना की है. वहीं, केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह और भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने आरएसएस के रुख का समर्थन किया है.


