लोकसभा स्पीकर को नजरअंदाज! मसूरी दौरे पर ओम बिरला से नहीं मिला देहरादून DM
लोकसभा स्पीकर ओम बिरला की जून में मसूरी यात्रा के दौरान देहरादून के डीएम साविन बंसल ने प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया. उन्होंने न तो फोन उठाया, न ही कॉल बैक किया. इस असहयोगात्मक रवैये को लेकर लोकसभा सचिवालय ने उत्तराखंड सरकार से शिकायत की और स्पष्टीकरण मांगा है.

उत्तराखंड के मसूरी में 12 जून को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के दौरे के दौरान देहरादून के जिलाधिकारी साविन बंसल के कथित प्रोटोकॉल उल्लंघन को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. लोकसभा सचिवालय और कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय की ओर से उत्तराखंड सरकार को दो पत्र लिखे गए, जिनमें कहा गया कि डीएम बंसल ने स्पीकर के दौरे के दौरान अपेक्षित सम्मान और सहयोग नहीं दिखाया.
लोकसभा सचिवालय ने आरोप लगाया कि दौरे के दौरान स्पीकर के कार्यालय ने डीएम से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन उचित जवाब नहीं मिला. यहां तक कि स्पीकर के आगमन और प्रस्थान के समय भी डीएम एयरपोर्ट पर मौजूद नहीं थे. बाद में स्पीकर कार्यालय ने मुख्यमंत्री कार्यालय से संपर्क किया, जिसके बाद डीएम ने उनसे बात की.
उत्तराखंड के प्रोटोकॉल विभाग
इस मामले में उत्तराखंड के प्रोटोकॉल विभाग के सचिव विनोद कुमार सुमन ने 25 जून को डीएम साविन बंसल को पत्र लिखकर स्पष्टीकरण मांगा है. पत्र में कहा गया है कि बंसल का व्यवहार असहयोगात्मक और असभ्य था और उन्होंने बार-बार कॉल करने के बावजूद फोन नहीं उठाया. इससे साफ है कि प्रोटोकॉल का पालन नहीं हुआ और लोकसभा अध्यक्ष को उनके पद के अनुरूप सम्मान नहीं दिया गया.
कौन हैं साविन बंसल?
साविन बंसल 2009 बैच के उत्तराखंड कैडर के आईएएस अधिकारी हैं. मूल रूप से हरियाणा के रहने वाले बंसल ने 2008 में UPSC परीक्षा पास की थी. उन्होंने एनआईटी कुरुक्षेत्र से बीटेक किया है और यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन से रिस्क डिजास्टर मैनेजमेंट में पोस्ट ग्रेजुएशन किया है.
ओम बिरला के दौरे पर प्रोटोकॉल उल्लंघन
बंसल अल्मोड़ा और नैनीताल के जिलाधिकारी के रूप में भी काम कर चुके हैं. उन्हें वर्ष 2021 में यूनाइटेड किंगडम की प्रतिष्ठित कॉमनवेल्थ स्कॉलरशिप के लिए चुना गया था, और वह उस वर्ष भारत से इस स्कॉलरशिप के लिए चुने गए इकलौते आईएएस अधिकारी थे. फिलहाल उत्तराखंड सरकार इस मामले की जांच में जुटी है और डीएम से विस्तृत रिपोर्ट मांगी गई है. मामला संवेदनशील है क्योंकि यह न केवल प्रशासनिक मर्यादाओं बल्कि लोकसभा अध्यक्ष जैसे संवैधानिक पद के सम्मान से भी जुड़ा है.


