कौन है श्रवण सिंह? मात्र 10 साल की उम्र में प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार से किया गया सम्मानित
Who is Shravan Singh: 10 साल का श्रवण सिंह अभी जो कक्षा 4 में पढ़ता है. उसने एक ऐसा कारनामा किया, जिसके लिए राष्ट्रपति मुर्मू ने उन्हें प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार देकर सम्मानित किया.

Who is Shravan Singh: पंजाब के फिरोजपुर जिले में रहने वाला 10 साल का श्रवण सिंह एक साधारण बच्चा है, जो कक्षा 4 में पढ़ता है. उसका गांव चक तरां वाली अंतरराष्ट्रीय सीमा से सिर्फ 2 किलोमीटर दूर है. मई 2025 में भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव के समय चलाए गए ऑपरेशन सिंदूर के दौरान श्रवण ने असाधारण साहस दिखाया.
उसने अपने गांव के पास तैनात भारतीय सैनिकों को रोजाना पानी, दूध, लस्सी, चाय और बर्फ पहुंचाई. जोखिम भरे माहौल में भी उसने यह काम खुद से शुरू किया, बिना किसी के कहे.
राष्ट्रपति से मिला सम्मान
26 दिसंबर 2025 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने श्रवण सिंह को प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार से सम्मानित किया. यह पुरस्कार बच्चों को बहादुरी और सेवा के लिए दिया जाता है. श्रवण ने कहा, “ऑपरेशन शुरू होने पर सैनिक हमारे गांव आए.
मैंने सोचा कि उनकी मदद करनी चाहिए. मुझे यह सम्मान मिलकर बहुत खुशी हुई, कभी सपने में भी नहीं सोचा था.” बता दें, इससे पहले भारतीय सेना ने भी मई में उन्हें सम्मानित किया था और उनकी शिक्षा का खर्च उठाने का वादा किया.
श्रवण का फौजी बनने का सपना
श्रवण के पिता ने बताया कि परिवार को उसके काम पर गर्व है. सैनिक भी उसे बहुत पसंद करते थे. श्रवण का सपना बड़ा होकर फौजी बनना है. वह कहता है, “मैं देश की सेवा करना चाहता हूं.” उसकी यह देशभक्ति छोटी उम्र में ही सबको प्रेरित कर रही है.
#WATCH | Delhi | A 'Pradhan Mantri Rashtriya Bal Puraskar' awardee says, "When Operation Sindoor began against Pakistan, soldiers came to our village. I thought I should serve them. I used to take milk, tea, buttermilk, and ice for them daily... I feel great to be awarded. I had… pic.twitter.com/q7Tcfr9ig4
— ANI (@ANI) December 26, 2025
ऑपरेशन सिंदूर की पृष्ठभूमि
ऑपरेशन सिंदूर मई 2025 में शुरू हुआ था. यह जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में अप्रैल में हुए आतंकी हमले का जवाब था, जिसमें 26 लोग मारे गए थे. भारतीय सेना ने पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर में आतंकी ठिकानों पर हमले किए.
इस दौरान सीमा पर तनाव बढ़ गया था, लेकिन श्रवण जैसे बच्चों की छोटी मदद ने सैनिकों का हौसला बढ़ाया. यह कहानी दिखाती है कि देश सेवा उम्र की मोहताज नहीं होती.


