क्यों आया PM-CM से जुड़ा नया बिल? गृह मंत्री अमित शाह ने दिया दो टूक जवाब
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक नए विधेयक की चर्चा की, जिसके तहत प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री अगर गंभीर आरोपों में 30 दिन से ज्यादा हिरासत में रहें तो उन्हें पद से हटाया जाएगा. यह कानून नैतिक प्रशासन को बढ़ावा देने की कोशिश है, लेकिन विपक्ष ने इसे लोकतंत्र और मौलिक अधिकारों पर हमला बताया है.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह इन दिनों केरल का दौरा कर रहे हैं. इसी दौरान उन्होंने एक महत्वपूर्ण कानून प्रस्ताव पर चर्चा की, जिसके अनुसार अगर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या कोई मंत्री गंभीर आपराधिक आरोपों में 30 दिनों से अधिक हिरासत में रहे, तो उन्हें स्वतः पद से हटाया जाए.
केजरीवाल की घटना से उठे सवाल
अमित शाह ने एक चैनल इंटरव्यू में यह उदाहरण देते हुए कहा कि दिल्ली के पूर्व CM जेल जाने के बावजूद भी सरकार चला रहे थे, अगर उन्होंने जेल जाने के बाद इस्तीफा दे दिया होता, तो इस बिल की जरूरत ही नहीं होती. यह सवाल उन्होंने विपक्ष को चुनौती देने के स्वर में उठाया कि जनता क्या स्वीकार करेगी: जेल में बैठे नेता से सरकार चलाने को या जिम्मेदारीपूर्ण नेतृत्व को?
कानूनी रूपरेखा और समझदारी
यह बिल संविधान में इस तरह का पहला प्रयास है, जो कहता है कि यदि कोई पदाधिकारी ऐसी धाराओं के तहत गिरफ़्तार और हिरासत में रहे, जिनमें 5 वर्ष या उससे अधिक की सज़ा निर्धारित है, तो 31वें दिन तक उन्हें इस्तीफ़ा देना अनिवार्य होगा—अन्यथा उन्हें स्वचालित रूप से पद से हटाया जा सकता है. हालांकि जमानत मिलने पर पुनः नियुक्ति संभव होगी.
130वां संविधान संशोधन
अनुच्छेद 75, 164 और 239AA में नई क्लॉज जोड़कर प्रधान मंत्री, मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों को 30 दिनों की लगातार हिरासत के बाद पद से हटाया जा सकेगा.
केंद्रीय मामलों में, राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह पर, अन्य राज्यों में राज्यपाल मुख्यमंत्री की सलाह पर हटाने के लिए अधिकृत होंगे. अगर सलाह नहीं दी गई, तो पद स्वतः समाप्त हो जाएगा
जमानत मिलने के बाद पुनः नियुक्ति की अनुमति है
विपक्ष का कड़ा विरोध
विपक्ष ने इस बिल की कड़ी आलोचना की है. कांग्रेस ने इसे 'भ्रष्टाचार का बहाना' कहते हुए लोकतांत्रिक संवैधानिक मूल्यों पर इसे खतरा बताया है. त्रिनामूल कांग्रेस (TMC) ने इसे “अधिनायकवादी” करार दिया. सीपीएम ने इसे मौलिक अधिकारों की अस्वीकृति माना. विपक्ष का तर्क है कि यह विधेयक तथाकथित राजनीतिक बदले की संभावित मिसाल है
संसद में विधेयक की स्थिति
यह विधेयक सदन में पेश किया गया और विवाद इकट्ठा हुआ. लोकसभा और राज्यसभा दोनों में इसे संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को भेजा गया है. इस समिति में दोनों सदनों से लगभग 31 सदस्य होंगे, जो विस्तृत अध्ययन के बाद अंतिम सुझाव प्रस्तुत करेंगे
आगे क्या संभावनाएं?
बिल पास होने पर यह उच्च पदों पर बैठे लोगों को न्यायिक हिरासत के दौरान पद संभालने से रोकेगा, जिससे सार्वजनिक विश्वास में सुधार हो सकता है. लेकिन विपक्षी दल इसे संवैधानिक मूल्य और न्यायिक निष्पक्षता पर खतरा मानते हैं. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, इस विधेयक की सफलता के लिए व्यापक बहुमत आवश्यक होगा.


