पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन की मांग: सुप्रीम कोर्ट करेगा सुनवाई, मुर्शिदाबाद हिंसा बना मुद्दा
पश्चिम बंगाल में बढ़ती हिंसा और वक्फ कानून पर विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी. याचिकाकर्ता राष्ट्रपति शासन की मांग कर रहे हैं. क्या कोर्ट इस मामले में दखल देगा? जानें पूरी जानकारी....

New Delhi: पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन की मांग को लेकर एक याचिका अब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए जाएगी. इस याचिका में मुर्शिदाबाद और अन्य जिलों में हिंदू समुदाय पर हुए कथित हमलों का जिक्र किया गया है और राज्य सरकार द्वारा इन घटनाओं पर नकेल न कसने का आरोप लगाया गया है. याचिकाकर्ताओं ने अनुच्छेद 355 के तहत केंद्र सरकार से राज्य की स्थिति पर रिपोर्ट पेश करने और हिंसा की जांच के लिए एक विशेष समिति बनाने की अपील की है.
हिंसा की जड़ में वक्फ कानून का विरोध: क्या बढ़ी सांप्रदायिक तनाव?
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में 2021 के विधानसभा चुनावों के बाद पश्चिम बंगाल में हुई हिंसा और वक्फ कानून के विरोध में हिंसा का हवाला दिया गया है. याचिकाकर्ता देवदत्त माजी और मणि मुंजाल ने आरोप लगाया कि राज्य में हाल के महीनों में हिंदू समुदाय को निशाना बनाकर हिंसक घटनाएं बढ़ी हैं. इन हिंसक घटनाओं के बाद, राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग उठी है.
सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया: राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग पर सवाल
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस मामले पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं से पूछा कि क्या वे चाहते हैं कि अदालत राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए निर्देश दे. पीठ ने यह भी टिप्पणी की कि हालिया फैसलों के बाद इसे आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है, जिसमें विधायी और कार्यकारी क्षेत्र के मामलों में अतिक्रमण की बातें उठाई गईं.
धनखड़-सुप्रीम कोर्ट विवाद और भाजपा की प्रतिक्रिया
यह मामला उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ द्वारा सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ की गई टिप्पणियों के बाद और भी गरमा गया है. धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट को 'सुपर पार्लियामेंट' तक कह दिया था और सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुच्छेद 142 के तहत दिए गए असाधारण आदेशों को लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ 'परमाणु मिसाइल' बताया था. भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों की आलोचना की, लेकिन पार्टी प्रमुख जेपी नड्डा ने पार्टी का रुख स्पष्ट करते हुए कहा कि भाजपा हमेशा न्यायपालिका का सम्मान करती है.
हिंसा की जांच और केंद्रीय बलों की तैनाती की मांग
याचिकाकर्ताओं ने अदालत से 2022 से 2025 तक राज्य में हुई हिंसाओं की जांच करने और हिंसा प्रभावित इलाकों में केंद्रीय बलों की तैनाती की मांग की है. याचिका में विशेष रूप से मुर्शिदाबाद की हिंसा का जिक्र किया गया है, जिसमें हिंदू समुदाय को निशाना बनाया गया था. इसके अलावा, 6 अप्रैल को कोलकाता में रामनवमी के मौके पर हुई हिंसा और बीरभूम में होली के दौरान हुए हमले का भी उल्लेख किया गया है. याचिका में संदेशखली की घटनाओं का भी हवाला दिया गया है, जिसमें आरोप है कि तृणमूल कांग्रेस के स्थानीय नेता शाहजहां शेख ने यौन उत्पीड़न और जमीन हड़पने के मामले में शामिल रहे हैं.
केंद्र से रिपोर्ट की मांग: अनुच्छेद 355 का हवाला
याचिकाकर्ताओं ने केंद्र से संविधान के अनुच्छेद 355 के तहत राज्य की स्थिति पर रिपोर्ट की मांग की है. इस अनुच्छेद के तहत केंद्र सरकार का कर्तव्य है कि वह राज्य को बाहरी आक्रमण और आंतरिक अशांति से बचाए और यह राष्ट्रपति शासन का आधार हो सकता है.


