दुनिया का सबसे ताकतवर रॉकेट स्टारशिप फिर फेल, उड़ते ही टूटा मस्क का सपना
एलन मस्क के मंगल मिशन को बड़ा झटका लगा है. स्पेसएक्स का स्टारशिप रॉकेट, जिसे दुनिया का सबसे ताकतवर रॉकेट कहा जाता है, अपनी नौवीं टेस्ट उड़ान में 30 मिनट बाद फेल हो गया. नियंत्रण खोने के बाद यह रॉकेट आसमान में बिखर गया. देखें वीडियो और जानें पूरी कहानी.

SpaceX Starship setback for Elon Musk: एलन मस्क की महत्वाकांक्षी योजना — इंसानों को चांद और मंगल पर बसाने की को एक और बड़ा झटका लगा है. मस्क की कंपनी स्पेसएक्स का मेगा रॉकेट ‘स्टारशिप’ अपने नौवें टेस्ट लॉन्च में भी सफल नहीं हो पाया. टेक्सास के स्टारबेस से लॉन्च होने के मात्र 30 मिनट बाद यह रॉकेट अनियंत्रित हो गया और मिशन समय से पहले खत्म हो गया.
मंगलवार शाम 7:36 बजे (स्थानीय समय) बिना किसी क्रू के लॉन्च हुआ यह रॉकेट उड़ान के 30 मिनट बाद ही अंतरिक्ष में नियंत्रण खो बैठा. रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, रॉकेट के ऑनबोर्ड ईंधन सिस्टम में रिसाव हुआ जिससे यह अपने तय मार्ग से भटक गया और धरती के वायुमंडल में अनचाहे रूप से लौट आया. स्पेसएक्स ने इसे "रैपिड अनशेड्यूल्ड डिसअसेंबली" बताया, जो तकनीकी भाषा में असफल विस्फोट को सूचित करता है.
स्पेसएक्स ने क्या कहा?
स्पेसएक्स ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'X' पर बयान जारी करते हुए कहा, “हर टेस्ट से हमें सीख मिलती है. आज की उड़ान हमें स्टारशिप को और बेहतर बनाने में मदद करेगी ताकि हम अपने मंगल मिशन के लक्ष्य को पा सकें.” लेकिन लगातार हो रही इन असफल उड़ानों ने मस्क के सपने की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं.
पहले भी असफल रहा है स्टारशिप
इससे पहले हुई दो टेस्ट उड़ानों में भी स्टारशिप के ऊपरी हिस्से में आग लग गई थी और उसके मलबे ने टेक्नोलॉजी की जटिलता को उजागर किया था. स्टारशिप को खासतौर पर चांद, मंगल जैसे ग्रहों तक इंसानों और भारी सामान को ले जाने के लिए डिजाइन किया गया है, लेकिन अब तक की उड़ानें सफल नहीं रही हैं.
एलन मस्क का ‘मंगल मिशन’ बना चुनौती
करीब 400 फीट ऊंचा यह रॉकेट, जिसमें 33 रैप्टर इंजन वाला सुपर हेवी बूस्टर और छह इंजनों वाला स्पेसक्राफ्ट शामिल है, मस्क के मंगल कॉलोनी मिशन और नासा के ‘आर्टेमिस’ प्रोजेक्ट की उम्मीद है. लेकिन बार-बार की असफलताओं और अरबों डॉलर के निवेश के बावजूद इसका सफल होना अब एक बड़ी चुनौती बन गया है.
क्या अब भी ‘चंदा मामा’ दूर नहीं?
जहां एक ओर मस्क इसे गेम-चेंजर बताते हैं, वहीं आलोचक इसे महंगे सपनों का पीछा करार दे रहे हैं. बार-बार फेल हो रहे टेस्ट से यह सवाल उठ रहा है कि क्या वाकई इंसान अगले दशक में मंगल पर बस सकेगा, या फिर यह सपना आने वाले वक्त में भी सिर्फ कल्पना ही रह जाएगा?


