पेरिस समझौते से अमेरिका की विदाई पक्की! ट्रम्प ने खाई कसम
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक बार फिर पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका को बाहर निकालने का फैसला लिया है. संयुक्त राष्ट्र जलवायु प्रमुख ने सोमवार को कहा कि ऐतिहासिक पेरिस समझौते के लिए "दरवाजे खुले हैं", जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने दूसरी बार अपने देश को इस समझौते से बाहर निकालने की कसम खाई है।

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने सोमवार को एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका को बाहर निकालने का निर्णय लिया. यह निर्णय ट्रम्प के पहले दिन की कार्यकारी कार्रवाइयों में से एक था. पेरिस जलवायु समझौते का उद्देश्य वैश्विक तापमान को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक न बढ़ने देना था, लेकिन अमेरिका के इस फैसले ने जलवायु विशेषज्ञों और पर्यावरण संगठनों में चिंता पैदा कर दी है.
जलवायु समझौते से बाहर निकलने की वजह
पेरिस जलवायु समझौते के तहत दुनिया भर के देशों ने मिलकर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने का संकल्प लिया था. संयुक्त राज्य अमेरिका, जो पहले सबसे बड़े उत्सर्जक देशों में से था, अब इस समझौते से बाहर निकल जाएगा. व्हाइट हाउस के बयान में कहा गया कि अमेरिका के आर्थिक और पर्यावरणीय उद्देश्यों के अनुरूप इस समझौते में शामिल होने का कोई लाभ नहीं था और यह अमेरिकी करदाताओं के पैसे को ऐसे देशों को भेजने जैसा था जिन्हें इसकी जरूरत नहीं थी.
अमेरिका का पेरिस समझौते से बाहर निकलने का फैसला
ट्रम्प प्रशासन ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि यह फैसला तत्काल प्रभाव से लागू होगा और अमेरिकी राजदूत संयुक्त राष्ट्र में वापसी की लिखित अधिसूचना प्रस्तुत करेंगे. इस कदम से अमेरिका अब उन देशों में शामिल हो जाएगा जो पेरिस समझौते का हिस्सा नहीं हैं, जैसे कि लीबिया, यमन और ईरान. हालांकि, इस फैसले से जलवायु विशेषज्ञों में चिंता है कि यह अन्य देशों को भी जलवायु नीति से बाहर कर सकता है और वैश्विक जलवायु संकट को और बढ़ा सकता है.
जलवायु संकट और अमेरिका की भूमिका
जलवायु समूहों ने ट्रम्प के इस कदम की कड़ी निंदा की है. यूनियन ऑफ कंसर्न्ड साइंटिस्ट्स की नीति निदेशक रेचल क्लीटस ने कहा, "पेरिस समझौते से बाहर निकलना एक हास्यास्पद कदम है, जो ट्रम्प के विज्ञान-विरोधी और जीवाश्म ईंधन को बढ़ावा देने वाले एजेंडे को दर्शाता है." विशेषज्ञों का मानना है कि इस फैसले से वैश्विक तापमान में वृद्धि और भी तेज हो सकती है, जो विनाशकारी बाढ़, तूफान और जंगल की आग जैसी प्राकृतिक आपदाओं को जन्म दे सकती है.
संयुक्त राज्य अमेरिका की जिम्मेदारी और वैश्विक प्रतिक्रिया
पेरिस समझौते से बाहर निकलने के बावजूद, संयुक्त राज्य अमेरिका अब भी कार्बन उत्सर्जन में प्रमुख योगदान देता है. कार्बन ब्रीफ द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, अमेरिका अब तक के कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का 20% जिम्मेदार है. सिएरा क्लब के कार्यकारी निदेशक बेन जेलस ने कहा, "हमारे पास यह नैतिक जिम्मेदारी है कि हम जलवायु संकट से निपटने के लिए उदाहरण प्रस्तुत करें."
ट्रम्प के अन्य जलवायु कदम और उनके परिणाम
ट्रम्प प्रशासन ने बाइडेन प्रशासन द्वारा किए गए कई जलवायु प्रयासों को पलटने का भी संकेत दिया है, जिसमें बिजली संयंत्रों के लिए उत्सर्जन सीमाएँ और इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने वाली नीतिया शामिल हैं. इसके अलावा, ट्रम्प ने "राष्ट्रीय ऊर्जा आपातकाल" घोषित करने की कसम खाई है, और संघीय एजेंसियों से जलवायु नीतियों को समाप्त करने के निर्देश दिए हैं, जो खाद्य और ईंधन की लागत को बढ़ाते हैं.


