देखते रह गए दुनिया के वैज्ञानिक, समुद्र के पानी से चीन निकाल रहा यूरेनियम, परमाणु बनाने में आएगा काम
चीन ने समुद्र के खारे पानी से यूरेनियम निकालने के लिए एक अत्याधुनिक और सस्ती तकनीक विकसित की है. यह तकनीक न केवल ऊर्जा दक्षता में बेहतरीन है, बल्कि चीन को यूरेनियम की आपूर्ति में बाहरी देशों पर निर्भर होने से भी मुक्त कर सकती है.

चीन के वैज्ञानिकों ने समुद्र के खारे पानी से यूरेनियम निकालने की एक नई और अत्याधुनिक तकनीक का विकास किया है, जो न सिर्फ बेहद सस्ती है, बल्कि ऊर्जा दक्षता के मामले में भी बहुत प्रभावी साबित हो रही है. यह खोज चीन के परमाणु ऊर्जा मिशन के लिए एक बड़ी सफलता मानी जा रही है, क्योंकि इससे अब चीन को यूरेनियम की आपूर्ति के लिए बाहरी देशों पर निर्भर होने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी. इस नई तकनीक से चीन को अपनी परमाणु ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में मदद मिल सकती है, जिससे वह परमाणु शक्ति के क्षेत्र में एक कदम और आगे बढ़ सकता है.
समुद्रों में उपलब्ध यूरेनियम की मात्रा पारंपरिक खनन से मिलने वाले यूरेनियम से हजारों गुना अधिक है, लेकिन उसे निकालने की प्रक्रिया अब तक चुनौतीपूर्ण रही है. इस नई तकनीक के माध्यम से चीन को उम्मीद है कि वह समुद्र के पानी से यूरेनियम निकालने में आत्मनिर्भर हो सकता है और इससे उसकी परमाणु ऊर्जा क्षमताओं में भी वृद्धि हो सकती है.
समुद्र में यूरेनियम की विशाल मात्रा
समुद्रों में अनुमानित 4.5 अरब टन यूरेनियम है, जो पारंपरिक खनन से मिलने वाले यूरेनियम से हजार गुना ज्यादा है. हालांकि, समुद्र के पानी में यह यूरेनियम बहुत पतले (डायल्यूटेड) रूप में पाया जाता है, जिससे इसे निकालने में पहले काफी मुश्किलें आ रही थीं. अब तक वैज्ञानिकों ने समुद्र के पानी में डुबोकर या विशेष पॉलिमर का उपयोग कर यूरेनियम को सोखने की कोशिश की थी, लेकिन ये तरीके महंगे और ऊर्जा खपत वाले साबित हो रहे थे.
नई तकनीक ने पुरानी समस्याओं का समाधान किया
चीन के हुनान यूनिवर्सिटी के शुआंगयिन वांग और उनकी टीम ने एक नई तकनीक विकसित की है, जो पुराने इलेक्ट्रोकेमिकल सिस्टम से कहीं अधिक प्रभावी और सस्ती है. इस प्रणाली में दो कॉपर इलेक्ट्रोड्स (एक पॉजिटिव और एक नेगेटिव) का इस्तेमाल किया जाता है, जो समुद्र के पानी से यूरेनियम को अपनी ओर आकर्षित करते हैं. इस तकनीक का उपयोग करते हुए, एक प्रयोग में सिर्फ 40 मिनट में 100 फीसदी यूरेनियम निकाला गया, जबकि पुराने तरीके इससे केवल 10 प्रतिशत यूरेनियम ही निकाल पाते थे.
कम लागत और अधिक लाभ
नई तकनीक की सबसे बड़ी विशेषता इसकी कम लागत है. इस तकनीक के माध्यम से एक किलो यूरेनियम निकालने में सिर्फ 83 डॉलर का खर्च आता है, जबकि पुराने तरीकों में यही खर्च 205 डॉलर से 360 डॉलर तक होता था. इससे लागत में लगभग चार गुना की कमी आई है. इसके अलावा, ऊर्जा की खपत भी 1000 गुना कम पाई गई है, जिससे यह तकनीक पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद साबित हो सकती है.
औद्योगिक स्तर पर इस तकनीक का विस्तार
अब तक इस तकनीक का परीक्षण छोटे स्तर पर किया गया है, लेकिन इसके सफल परिणामों के बाद इसे बड़े पैमाने पर लागू किया जा सकता है. 100 लीटर समुद्री पानी में हुए एक प्रयोग में लगभग 90 प्रतिशत यूरेनियम निकाला जा सका. अगर इसे बड़े पैमाने पर लागू किया गया, तो समुद्र से यूरेनियम निकालने का काम एक पूर्ण विकसित उद्योग बन सकता है.
चीन की न्यूक्लियर आत्मनिर्भरता
चीन की सरकारी न्यूक्लियर कंपनियां इस तकनीक को बड़े पैमाने पर विकसित करने के लिए काम कर रही हैं. 2019 में, चीन की एक सरकारी न्यूक्लियर कंपनी ने रिसर्च संस्थानों के साथ मिलकर सीवॉटर यूरेनियम एक्सट्रैक्शन टेक्नोलॉजी इनोवेशन अलायंस बनाई थी, जिसका उद्देश्य 2035 तक डेमो प्लांट स्थापित करना और 2050 तक बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू करना है. अगर यह तकनीक सफल हो जाती है, तो चीन को यूरेनियम के लिए अन्य देशों पर निर्भर होने की आवश्यकता नहीं होगी. इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के अनुसार, चीन 2030 तक अमेरिका और यूरोप को पीछे छोड़कर सबसे बड़ी न्यूक्लियर क्षमता वाला देश बन सकता है.


