14 महीने तक यातना, फिर हत्या: हिज़्बुल्लाह के हाथों सीआईए अधिकारी की दर्दनाक मौत
विलियम बकले लेबनान पहुंचे थे ताकि वह वहां सीआईए नेटवर्क का पुनर्निर्माण कर सकें. लेकिन अंततः वह देश को एक घायल और टूटे हुए व्यक्ति की तस्वीर के रूप में ही छोड़ पाए. एक ऐसी तस्वीर जिसे उनके अपहरणकर्ताओं ने यह दिखाने के लिए जारी किया कि अब वह इस दुनिया में नहीं रहे.

विलियम फ्रांसिस बकले, एक अनुभवी और सम्मानित सीआईए अधिकारी थे. 1984 में लेबनान के गृहयुद्ध के दौरान बेरूत से अपहरण के बाद 444 दिनों तक अमानवीय यातनाओं का शिकार बने. वह केवल लापता नहीं थे, बल्कि हिजबुल्लाह के कब्जे में कैद, प्रताड़ित और दुनिया से पूरी तरह कटे हुए थे.
बकले को 1983 में भेजा गया बेरूत
बकले को 1983 में बेरूत भेजा गया था, जहां उनका मिशन अमेरिकी दूतावास पर बम हमले के बाद सीआईए के ध्वस्त हो चुके खुफिया नेटवर्क को फिर से खड़ा करना था. लेकिन वहां का माहौल अत्यधिक खतरनाक हो चुका था. अमेरिका की इजरायल के प्रति नीति और क्षेत्रीय मिलिशिया की बढ़ती ताकत ने अमेरिकी एजेंटों को निशाना बना दिया.
16 मार्च 1984 को, जब बकले अपने अपार्टमेंट से निकले, तब हिजबुल्लाह से जुड़े आतंकवादियों ने उन्हें अगवा कर लिया. उन्होंने सभी सुरक्षा चेतावनियों को नजरअंदाज किया और अकेले बाहर निकले, जिससे उनका अपहरण आसान हो गया.
बेरूत हिल्टन
इसके बाद उन्हें कई जगहों पर रखा गया, अंततः एक भूमिगत स्थान पर भेजा गया जिसे “बेरूत हिल्टन” कहा जाता था. वहाँ उन्हें पीटा गया, दवाओं के प्रभाव में रखा गया, चिकित्सा सुविधाओं से वंचित किया गया और अंधेरे में कैद रखा गया. उन्होंने मानसिक रूप से खुद को जीवित रखने की कोशिश की.
लेकिन हर मानसिक सहनशक्ति की एक सीमा होती है. रिपोर्टों के मुताबिक, 3 जून 1985 की रात उनकी मौत हो गई. उनकी बॉडी कभी वापस नहीं मिली, लेकिन उनकी मृत्यु की तस्वीरें और सीआईए दस्तावेज हिजबुल्लाह ने सार्वजनिक कर दिए.
बकले की मौत ने सीआईए को झकझोरा
बकले की मौत ने न केवल सीआईए को झकझोर दिया बल्कि शत्रुतापूर्ण इलाकों में एजेंसी की रणनीतियों को भी बदल दिया. उनकी याद में लैंगली स्थित सीआईए मुख्यालय में मेमोरियल वॉल पर एक सितारा जोड़ा गया. उनकी विरासत एक चेतावनी बन गई कि कभी-कभी सबसे साहसी जासूस भी छाया युद्ध में खो जाते हैं और उनकी कहानी तब तक अधूरी रहती है जब तक दुनिया उनकी कुर्बानी को न समझे.


