दिल्ली ने तोड़ा इस्लामाबाद का भ्रम, परमाणु बम की आड़ में अब नहीं चलेगा आतंकवाद
ऑपरेशन सिंदूर केवल पहलगाम हमले की प्रतिक्रिया नहीं था, बल्कि यह संसद, मुंबई और पुलवामा जैसे हर आतंकी हमले का प्रतिशोध था. कुछ घंटों की सटीक और करारी कार्रवाई में भारत ने पाकिस्तान को झकझोर दिया, जिससे उसकी सेना के होश उड़ गए और वह पूरी तरह बैकफुट पर आ गई.

ऑपरेशन सिंदूर ने भारत की सैन्य नीति और रणनीतिक सोच में एक बड़ा बदलाव दिखाया है. इस ऑपरेशन का सबसे बड़ा संदेश यह था कि परमाणु हथियार होने के बावजूद भारत पाकिस्तान के भीतर घुसकर उसे सज़ा दे सकता है. यह पहली बार नहीं था जब भारत और पाकिस्तान, दोनों परमाणु सशस्त्र देश, तनाव की स्थिति में थे. 1999 के कारगिल युद्ध के समय भी दोनों देशों के पास परमाणु हथियार थे, लेकिन वह युद्ध केवल सीमित क्षेत्र में, सीमित उद्देश्य के साथ लड़ा गया था. उस समय भारत ने पाकिस्तान के भीतर कोई हमला नहीं किया था और दोनों देशों की परमाणु नीतियां नवविकसित थीं.
लेकिन ऑपरेशन सिंदूर की रणनीति अलग थी. पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने संयम छोड़ते हुए पाकिस्तान के पंजाब क्षेत्र में घुसकर उसके एयरबेस और डिफेंस सिस्टम को तहस-नहस कर दिया. यह हमला न केवल पाकिस्तान की सैन्य क्षमताओं को चुनौती था, बल्कि उसकी परमाणु नीति को भी सीधी चुनौती थी. भारत ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह अब 'परमाणु डर' के नाम पर आतंकवाद का शिकार नहीं बनेगा.
पाकिस्तान को मिला कड़ा सबक
भारत ने केवल पहलगाम हमले का बदला नहीं लिया, बल्कि यह प्रतिक्रिया वर्षों से हुए आतंकी हमलों—चाहे वह संसद पर हमला हो, मुंबई हमला या पुलवामा—का एक समग्र उत्तर था. कुछ ही घंटों की लड़ाई में भारत ने पाकिस्तान के 11 वायुसेना ठिकानों को निशाना बनाया और उन्हें पूरी तरह तबाह कर दिया. सबसे बड़ा झटका रावलपिंडी में हुआ, जहां पाकिस्तानी सेना का मुख्यालय (GHQ) है. भारत ने रावलपिंडी एयरबेस को नष्ट कर यह संदेश दिया कि वह पाकिस्तान के सैन्य हृदय में भी वार कर सकता है.
भारत की कार्रवाई से टूटी परमाणु भ्रम की दीवार
इस ऑपरेशन ने पाकिस्तान की ‘ब्लीड इंडिया’ नीति को भी तोड़ दिया, जो परमाणु हथियारों की आड़ में भारत को उकसाने और आतंक फैलाने की योजना पर आधारित थी. भारत ने सीमित, लेकिन सटीक और प्रभावशाली हथियारों से हमला कर यह दिखा दिया कि वह सिर्फ बचाव नहीं, बल्कि निर्णायक जवाबी हमला भी कर सकता है.


