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हिंदू महिला अगवा, धर्मांतरण कर मुस्लिम से निकाह… सिंध में इंसाफ की तलाश में परिवार

पाकिस्तान के सिंध प्रांत में एक हिंदू महिला को अगवा कर जबरन इस्लाम कबूल करवाया गया और मुस्लिम व्यक्ति से निकाह करवा दिया गया. परिवार न्याय की गुहार लगा रहा है, लेकिन पुलिस कार्रवाई से कतरा रही है. यह घटना अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार की शर्मनाक मिसाल है.

Dimple Yadav
Edited By: Dimple Yadav

पाकिस्तान के सिंध प्रांत से एक बार फिर अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय की महिला के अपहरण और जबरन धर्मांतरण का मामला सामने आया है. मीरपुरखास ज़िले के दिघरी इलाके की रहने वाली एक विवाहित महिला को अगवा कर पहले इस्लाम कबूल करवाया गया और फिर उसे एक मुस्लिम व्यक्ति से शादी करने के लिए मजबूर किया गया. पीड़िता के परिवार ने आरोप लगाया है कि उनकी बिना मर्जी के जबरन यह सब कराया गया है.

अपहृत महिला के पति और चार बच्चों ने स्थानीय एनजीओ ‘दरावर इत्तेहाद पाकिस्तान’ के दफ्तर पहुंचकर अपनी व्यथा साझा की. यह संगठन सिंध में अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए काम करता है. संगठन के प्रमुख शिवा काछी ने बताया कि पीड़िता को शहबाज खशखेली नामक व्यक्ति ने अगवा किया और धर्म परिवर्तन करवा कर उससे शादी कर ली. उन्होंने कहा, "ये न केवल एक महिला के अधिकारों का हनन है, बल्कि पूरे अल्पसंख्यक समुदाय की सुरक्षा पर बड़ा सवाल है."

पुलिस पर निष्क्रियता के आरोप

इस मामले में स्थानीय पुलिस की भूमिका भी सवालों के घेरे में है. शिवा काछी और महिला के पति ने आरोप लगाया कि पुलिस ने अब तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं की है और ना ही वे सहयोग कर रहे हैं. मजबूरन अब परिवार को अदालत का दरवाज़ा खटखटाना पड़ रहा है. महिला के पति ने कहा, "यह कैसा इंसाफ है कि एक विवाहित महिला को अगवा कर उसकी मर्जी के बिना धर्म बदला जाता है और निकाह करा दिया जाता है? क्या पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के लिए कोई कानून नहीं बचा?"

धर्मांतरण की बढ़ती घटनाएं

पाकिस्तान में जबरन धर्म परिवर्तन के मामले अब आम होते जा रहे हैं. खासकर नाबालिग और विवाहित हिंदू लड़कियों को निशाना बनाकर इस्लाम कबूल करवाना और फिर मुस्लिम पुरुषों से शादी करवा देना एक पैटर्न बन चुका है. मानवाधिकार संगठनों ने कई बार इन मामलों को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाया है, मगर पाक सरकार अब तक मूकदर्शक बनी हुई है.

कानून बनते हैं लेकिन लागू नहीं होते

2019 में सिंध विधानसभा में जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ एक विधेयक पेश किया गया था, लेकिन कट्टरपंथी ताकतों के दबाव में उसे खारिज कर दिया गया. इससे साफ है कि पाकिस्तान में धार्मिक स्वतंत्रता केवल कागजों पर है. हकीकत में अल्पसंख्यकों को सुरक्षा और सम्मान देने का कोई प्रयास नहीं हो रहा.

अल्पसंख्यकों की आवाज़ कौन सुनेगा?

इस घटना ने एक बार फिर पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय, विशेषकर हिंदुओं की स्थिति को लेकर गंभीर चिंता खड़ी कर दी है. सवाल यह है कि आखिर कब तक इन समुदायों की महिलाएं इस तरह बेबस होती रहेंगी? और कब पाकिस्तान सरकार इस पर ठोस कदम उठाएगी?

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29 May 2025, 10:54 AM IST

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