चार बड़े शहरों में पीटीआई की विशाल लामबंदी ने फौज और सरकार दोनों को दे डाली है कड़ी चुनौती
पाकिस्तान में पीटीआई ने इमरान खान की रिहाई के लिए बड़ा आंदोलन शुरू कर दिया है। पार्टी फिर से उनके पुराने 20 हजार वाले फार्मूले को लागू कर सेना और सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश कर रही है।

International News: पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ ने इमरान खान की रिहाई के लिए बड़ा आंदोलन शुरू कर दिया है। पार्टी के कार्यकर्ता इस्लामाबाद और रावलपिंडी की सड़कों पर लगातार जुट रहे हैं। उनका कहना है कि यह आंदोलन तब तक रुकेगा नहीं, जब तक शहबाज शरीफ की सरकार गिर नहीं जाती। पीटीआई नेताओं का दावा है कि अब पार्टी इमरान खान के पुराने 20 हजार वाले फार्मूले पर चलने को तैयार है। यह वही फार्मूला है जो 1992 में इमरान खान ने फौज की ताकत तोड़ने के लिए अपने नजदीकी साथियों को बताया था। पार्टी का मानना है कि अगर दबाव बढ़ा तो सरकार और सेना दोनों पीछे हट सकते हैं।
### इमरान का 20 हजार का प्लान क्या?
1992 की टाइम्स मैगज़ीन की रिपोर्ट में इमरान खान का एक बयान सामने आया था। इसमें उन्होंने कहा था कि ताकतवर फौज को पीछे हटाने का सिर्फ एक तरीका है। उन्होंने कहा था कि जब फौज देश पर पूरी तरह हावी हो जाए, तो उसे कमजोर करने के लिए चार बड़े शहरों में भीड़ खड़ी करनी होती है। उनके मुताबिक, अगर पीटीआई सिर्फ 20 हजार लोग हर शहर में खड़े कर दे, तो फौज खुद पीछे हट जाएगी। इमरान ने यह फार्मूला अपने शुरुआती राजनीतिक समय में बताया था, और आज उनकी पार्टी इसे फिर से अपनाने की बात कर रही है।
क्यों चार बड़े शहर ही चुने गए?
इमरान खान के मुताबिक, इस रणनीति में चार शहर सबसे अहम हैं—इस्लामाबाद, रावलपिंडी, कराची और लाहौर। इस्लामाबाद देश की राजधानी है जहाँ हुकूमत बैठती है। रावलपिंडी फौज का मुख्यालय है और इसी शहर में सेना प्रमुख असीम मुनीर का दफ्तर है। लाहौर पंजाब की राजनीतिक राजधानी है, और कराची पाकिस्तान का आर्थिक दिल माना जाता है जहाँ नेवी भी सक्रिय रहती है। इमरान का मानना है कि अगर इन चार शहरों में 20-20 हजार लोग जुट जाएँ, तो फौज और सरकार किसी भी हालात को संभाल नहीं पाएगी। इससे दोनों पर जबरदस्त दबाव बनेगा।
क्या पीटीआई के पास इतनी भीड़ है?
पीटीआई नेताओं का कहना है कि पार्टी के पास अभी भी वह ताकत मौजूद है कि वह चारों शहरों में इतनी भीड़ इकट्ठा कर सके। 2022 में सत्ता से हटाए जाने के बाद भी इमरान खान की लोकप्रियता कम नहीं हुई। बड़ी संख्या में युवा, खासकर शहरी क्षेत्रों में, अभी भी उन्हें अपना नेता मानते हैं। पीटीआई को लगता है कि अगर पार्टी इमरान के इस फार्मूले को पूरी ताकत से लागू करे, तो सरकार और सेना दोनों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। हालांकि मौजूदा हालात को देखते हुए यह कदम जोखिम भरा भी माना जा रहा है।
इमरान की लड़ाई का आखिरी दौर?
2022 में इमरान खान और फौज के बीच जब टकराव बढ़ा तो उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया गया। उन्होंने खुलकर कहा कि उनकी सरकार गिराने के पीछे फौज और अमेरिका दोनों की भूमिका थी। इसके बाद हालात और बिगड़े और 2023 में उन्हें जेल भेज दिया गया। उनके ऊपर भ्रष्टाचार और अराजकता फैलाने के आरोप लगाए गए। जेल में बंद इमरान पर कई बार समझौते के आरोप लगे, लेकिन उन्होंने हर बार कहा कि वह असीम मुनीर से कोई सौदा नहीं करेंगे। यह टकराव अब और गहरा होता जा रहा है।
जेल से भी क्यों नहीं रुक रहे इमरान?
इमरान खान जेल से लगातार बयान जारी करते रहे हैं। वह हर सप्ताह सरकार और सेना प्रमुख दोनों पर हमला बोलते रहते हैं। वह कहते हैं कि पाकिस्तान की राजनीति सेना के इशारों पर चल रही है और इसे खत्म करना जरूरी है। लेकिन हालात उनके लिए पहले से ज्यादा कठिन हो चुके हैं। सेना प्रमुख असीम मुनीर को अब संसद से और भी ज्यादा अधिकार मिले हैं। वह जल्द ही नौसेना, हवाई सेना और थल सेना की कमान को एकीकृत तरीके से संभालने की तैयारी कर रहे हैं। ऐसे में इमरान की लड़ाई और कठिन हो गई है।
क्या यह इमरान का अंतिम दांव है?
पीटीआई का यह आंदोलन एक बार फिर पाकिस्तान की सड़कों को अशांत कर सकता है। पार्टी इसे इमरान खान के अंतिम मौके के रूप में देख रही है। अगर यह आंदोलन ताकत पकड़ता है तो सरकार और सेना दोनों पर दबाव बढ़ेगा। लेकिन अगर यह असफल रहा तो इमरान खान की राजनीति को सबसे बड़ा झटका लग सकता है। उनके लिए यह आंदोलन भविष्य तय करने वाला कदम साबित हो सकता है। आने वाले कुछ दिनों में पता चल जाएगा कि इमरान का 20 हजार वाला फार्मूला आज भी उतनी ही ताकत रखता है या हालात बदल चुके हैं।


