अरबों से लेकर इजराइल तक... जानिए कितनी बार जंग लड़ा, कितनी बार जीता या हारा ईरान
Iran War History: ईरान का इतिहास जंगों और संघर्षों से भरा पड़ा है. अरबों, मंगोलों और तुर्कों से लेकर अब इजरायल तक, इसने सैकड़ों युद्ध झेले हैं. कभी विजेता बना, तो कभी बुरी तरह हार का सामना किया. लेकिन एक चीज जो हर दौर में कायम रही वह थी इसकी फारसी संस्कृति, जिसे कोई मिटा नहीं सका.

Iran War History: ईरान के युद्धों की कहानी सिर्फ खून और बारूद की नहीं, बल्कि संस्कृति, राजनीति और शक्ति संघर्ष की दास्तान भी है. इस देश ने सदियों से एक के बाद एक आक्रमणों का सामना किया, कभी जीत हासिल की तो कभी करारी शिकस्त खाई. आज जब एक बार फिर ईरान और इजरायल के बीच जंग का माहौल बन रहा है, ऐसे में इतिहास के वे पन्ने पलटे जा रहे हैं जो बताते हैं कि यह धरती पहले भी सैकड़ों बार जंग देख चुकी है. अरबों से लेकर मंगोलों और तुर्कों तक ने इस पर आक्रमण किए, लेकिन ईरान हर बार अपनी सांस्कृतिक पहचान को बचाए रखने में सफल रहा.
ईरान ने इतिहास में कई युद्ध लड़े, कई बार हारा और कई बार जीता, लेकिन अपनी सांस्कृतिक पहचान को कभी मिटने नहीं दिया. आज फिर वही जंग का माहौल है, लेकिन यह भी इतिहास के किसी पन्ने का हिस्सा बन जाएगा. सवाल यह नहीं कि कौन जीतेगा, बल्कि यह है कि कौन कितना कुछ खोएगा.
अरबों का आक्रमण और सासानी साम्राज्य का पतन
सातवीं सदी में ईरान सासानी साम्राज्य के अधीन था, जो काफी शक्तिशाली माना जाता था. लेकिन अरबों ने इस पर हमले शुरू किए. Battle of Dhi Qar में सासानी सेना को हार का सामना करना पड़ा, जिसने अरब सेनाओं का हौसला बढ़ा दिया. इसके बाद Battle of al-Qadisiyyah में फारसी सेनापति रुसतुम और अरब सेनापति साद इब्न अबी वक़्क़ास के बीच निर्णायक युद्ध हुआ. सासानी राजधानी कटेसिफ़ोन के पतन के साथ ही फारसी सत्ता का अंत होने लगा.
Battle of Jalula और Battle of Nahavand जैसे युद्धों में भी सासानी हारते चले गए. अंततः 651 ईस्वी में अंतिम सम्राट यज्देगिर्द-III की हत्या के साथ ही सासानी साम्राज्य का पूर्ण पतन हो गया और इस्लामी शासन की नींव पड़ी.
इस्लामी काल और फारसी संस्कृति का समावेश
अरबों ने ईरान पर कब्जा कर लिया, लेकिन धीरे-धीरे फारसी संस्कृति का प्रभाव इस्लामी सत्ता पर हावी होता गया. प्रशासन, भाषा और साहित्य में फारसी रंग घुल गया. यही वह काल था जब शिया इस्लाम की नींव पड़ी, जिसने ईरान को इस्लामी दुनिया में विशिष्ट पहचान दी.
तुर्कों का उदय और सेल्जूक साम्राज्य
11वीं सदी में तुर्की मूल के सेल्जूक तुर्कों ने फारसी सत्ता को चुनौती दी. Battle of Dandanaqan में उन्होंने गज़नवी शासक मसूद को हराया और ईरान के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया. उन्होंने फारसी भाषा को दरबारी भाषा बनाए रखा. विद्वान उमर खय्याम, अल-ग़ज़ाली और निज़ाम अल-मुल्क इसी दौर में उभरे. इस काल को फारसी-इस्लामी संस्कृति का स्वर्ण युग माना जाता है.
मंगोलों का आतंक और इलखानिद साम्राज्य
13वीं सदी में मंगोल शासक चंगेज खान ने ईरान पर धावा बोला. 1219 से 1260 के बीच भयंकर तबाही मची. निशापुर जैसे शहर में लाखों लोगों की हत्या हुई. बाद में हुलागू खान ने अब्बासी खलीफा को मारकर इलखानिद साम्राज्य की स्थापना की. हालांकि, मंगोल भी फारसी संस्कृति को अपनाने लगे और इस्लाम स्वीकार किया.
इराक-ईरान युद्ध और इजरायल का समर्थन
22 सितंबर 1980 को इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन ने ईरान पर हमला कर दिया. यह आठ साल तक चलने वाला खतरनाक युद्ध था. लाखों बेगुनाह मारे गए. दिलचस्प बात यह रही कि इस दौरान इजरायल ईरान के साथ खड़ा था. 7 जून 1981 को इजरायल ने बगदाद के पास इराक के न्यूक्लियर रिएक्टर पर हमला किया, जिससे वह पूरी तरह बर्बाद हो गया.
उस समय इज़रायल को डर था कि इराक परमाणु हथियार बनाकर उस पर हमला कर सकता है ठीक वही डर जो आज इज़रायल को ईरान को लेकर है. आयतुल्ला खुमैनी का इज़रायल के प्रति कड़ा रुख भी इस संघर्ष की एक बड़ी वजह था.
कौन दोस्त, कौन दुश्मन?
इतिहास ने यह साबित किया है कि राजनीति में कोई स्थायी मित्र या शत्रु नहीं होता. "यहां न कोई स्थाई दोस्त है, न ही दुश्मन. सबके अपने हित हैं." कभी अमेरिका ईरान के खिलाफ इराक के साथ था, आज वही अमेरिका ईरान को घेरने की रणनीति बना रहा है. कल को यही देश दोस्त भी बन सकते हैं.


