कोई समझौता नहीं...9 घंटे तक चली अफगान-पाकिस्तान बैठक, धमकियों के बाद भी नहीं झुका तालिबान
तुर्की में पाकिस्तान और अफगानिस्तान की नौ घंटे लंबी उच्चस्तरीय वार्ता में सीमा पर तनातनी घटाने और सूचना साझाकरण पर सहमति बनी. आतंकवाद, TTP गतिविधियों, शरणार्थियों और फंसे ट्रकों पर चर्चा हुई. हालांकि औपचारिक समझौता नहीं हुआ, दोनों पक्ष मानवीय पहल और व्यापार बहाली के लिए आगे काम करने पर सहमत हुए.

नई दिल्लीः तुर्की की राजधानी इस्तांबुल में पाकिस्तान और अफगानिस्तान के प्रतिनिधियों के बीच हुई दूसरी उच्चस्तरीय राजनीतिक वार्ता लगभग नौ घंटे चली और इसमें दोनों पक्षों ने सीमा पर तनातनी घटाने पर सहमति जताई. हालांकि किसी औपचारिक समझौते पर दस्तखत नहीं हुए, पर बातचीत ने द्विपक्षीय रिश्तों में व्याप्त कड़वाहट को अस्थायी ढंग से कम किया और लाभान्वित पक्षों के मध्य संवाद की राह खोल दी.
क्या है पूरा मामला?
वार्ता में सबसे गर्म मुद्दा सीमापार होने वाली आतंकवादी गतिविधियां और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) का होना रहा. पाकिस्तान ने यह माँग उठाई कि अफगान धरती से पाकिस्तान में घुसपैठ और हमलों को रोकने के लिए एक कड़ा वेरीफिकेशन तंत्र बनाया जाए, जिससे हर संदिग्ध गतिविधि की निगरानी हो सके. काबुल ने इस प्रस्ताव पर ठोस असहमति जताई. उसने संयुक्त सीमा पेट्रोलिंग जैसे कदमों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया, लेकिन खुफ़िया जानकारी के आदान-प्रदान और ऐसे सहयोगी रास्तों की तलाश करने पर सकारात्मक रूख अपनाया. दोनों पक्षों ने कहा कि निगरानी और सूचना साझाकरण के लिए ‘आपसी सहमति वाले मैकेनिज़म’ पर चर्चा जारी रहेगी.
ये मुद्दे भी रहे हावी
वार्ता में अफगान शरणार्थियों की वापसी और सीमा पर फंसे लगभग 1,200 ट्रकों का मसला भी अहम रहा. पाकिस्तान ने व्यापारिक नुकसान का हवाला देते हुए सीमाएँ सीमित रूप से खोलने और चरणबद्ध वापसी की योजना का प्रस्ताव रखा. दूसरी ओर अफगान प्रतिनिधि ने चेतावनी दी कि जबरन वापसी मानवीय संकट को बढ़ा देगी और अफगान अर्थव्यवस्था पर भारी असर पड़ेगा. समाधान के रूप में तुर्की और कतर द्वारा एक संयुक्त व्यापार-सुरक्षा टास्क फ़ोर्स बनाने का संकेत मिला, जिसका उद्देश्य क्रमिक रूप से व्यापार बहाली और सुरक्षा गारंटी सुनिश्चित करना होगा.
पाकिस्तान के रक्षा मंत्री की गीदड़ भभकी
पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा मुहम्मद आसिफ ने कड़े शब्दों में चेतावनी दी कि अगर कूटनीतिक मार्ग से समझौता नहीं हुआ तो अन्य विकल्पों पर विचार किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि संघर्ष न चाहने के बावजूद, अगर वार्ता विफल रहती है तो सैन्य विकल्प भी खुलकर सामने आ सकते हैं. साथ ही उन्होंने बताया कि फिलहाल कतर में हुए युद्धविराम का पालन हो रहा है और तब से प्रत्यक्ष झड़पें नहीं हुई हैं.
दूसरी ओर तालिबानी प्रतिनिधियों ने सार्वजनिक रूप से किसी भी बाहरी हुक्म का पालन करने से इनकार किया और कहा कि वे बराबरी के स्तर पर वार्ता करते हैं. तालिबान ने पाकिस्तान के आरोपों को राजनीतिक प्रेरित बताया और यह स्पष्ट किया कि अफगानिस्तान ने किसी पाकिस्तानी आतंकवादी को आधिकारिक शरण नहीं दी है. साथ ही उन्होंने आगाह किया कि अगर पाकिस्तान किसी भी तरह की सीमा पार कार्रवाइयाँ करता है तो उसे इस्लामी अमीरात पर हमला माना जाएगा.
आगे की राह
हालांकि इस्तांबुल वार्ता ने तुरंत शांति की गारंटी नहीं दी, पर यह संवाद का संकेत है. दोनों पक्षों ने तनाव घटाने, सूचना साझाकरण और मानवीय पहलुओं पर चर्चा बढ़ाने पर सहमति जताई है. अब अगला चरण यह होगा कि तुर्की और कतर के साथ बनाए जाने वाले टास्क ग्रुप और द्विपक्षीय तकनीकी समूह सीमा सुरक्षा और व्यापार बहाली के ठोस फॉर्मूले पर कितनी जल्दी काम शुरू कर पाते हैं और क्या दोनों पक्ष उन प्रस्तावों को स्वीकार्य रूप देने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाएंगे.


