मौत के बाद अंतिम संस्कार नहीं, शव के साथ जिंदगी बिताई जाती है… जानिए इस देश के खास समुदाय की अनोखी परंपरा
Toraja Death rituals Indonesia : इंडोनेशिया के तोराजा समुदाय में मृत्यु को जीवन का अंत नहीं, बल्कि अगली यात्रा माना जाता है. यहां शव को ममी बनाकर वर्षों तक घर में रखा जाता है और अंतिम संस्कार को एक महंगा उत्सव माना जाता है. पारिवारिक सदस्यों को मृतकों के साथ बात करना, उन्हें खाना खिलाना और कपड़े पहनाना परंपरा का हिस्सा है. अंतिम संस्कार में लाखों रुपये खर्च होते हैं, इसलिए यह प्रक्रिया वर्षों तक टल सकती है.

Toraja Death rituals Indonesia : दुनिया की ज्यादातर संस्कृतियों में मृत्यु के बाद शव को या तो जला दिया जाता है या दफनाया जाता है. लेकिन इंडोनेशिया के तोराजा समुदाय में मौत को जीवन के अंत की बजाय एक अगली यात्रा की शुरुआत माना जाता है. यहां जब कोई व्यक्ति मरता है तो उसका अंतिम संस्कार तुरंत नहीं किया जाता, बल्कि शव को सुरक्षित रखकर सालों तक घर में ही रखा जाता है, मानो वह अब भी जीवित हो.
शवों को ममी बनाकर घर में रखा जाता है
अंतिम संस्कार नहीं, एक महंगा उत्सव
इस समुदाय में अंतिम संस्कार को एक भव्य उत्सव के रूप में देखा जाता है एक ऐसा आयोजन जिसमें सिर्फ भावना नहीं, भारी-भरकम खर्च भी जुड़ा होता है. रिपोर्ट्स के अनुसार, तोराजा समाज में अंतिम संस्कार पर 500,000 डॉलर (लगभग 4 करोड़ रुपये) तक खर्च किया जा सकता है. यह समारोह अक्सर 5 दिनों तक चलता है, जिसमें सैकड़ों लोगों को आमंत्रित किया जाता है, भैंसों और सूअरों की बलि दी जाती है, और मृतक के लिए एक विशेष झोपड़ी बनाकर उसे अंत में जलाया जाता है.
शव को ममी के रूप में घर में रखा जाता
तोराजा समाज के लोग अंतिम संस्कार की इतनी अधिक लागत वहन करने के लिए अक्सर सालों तक तैयारी करते हैं. कई बार परिवार अपनी पूरी जिंदगी इस एक आयोजन के लिए पैसे जमा करने में बिता देता है. जब तक जरूरी धन इकट्ठा नहीं होता, शव को ममी के रूप में घर में रखा जाता है. इस दौरान उसे सम्मान और देखभाल मिलती है, जैसा एक जीवित व्यक्ति को दी जाती है.
मृतकों के साथ जीने की परंपरा
तोराजा समुदाय में "मृतकों के साथ जीना" सिर्फ एक रिवाज नहीं, बल्कि आस्था का हिस्सा है. यहां मृत्यु को एक भावनात्मक विदाई नहीं, बल्कि सामाजिक पुनर्मिलन का अवसर माना जाता है. वे मानते हैं कि मृतक की आत्मा तब तक मुक्त नहीं होती जब तक उसका विधिवत संस्कार न हो जाए. इसलिए अंतिम संस्कार की पूरी प्रक्रिया को धार्मिक अनुष्ठानों, पारिवारिक एकता और पूर्वजों के सम्मान से जोड़कर देखा जाता है.
मृतकों की 'पुनरावृत्ति यात्रा'
तोराजा समुदाय में "मा'निने" नामक उत्सव हर दो साल में आयोजित होता है. इसमें परिवार अपने प्रियजन की ममी को कब्र से निकालते हैं, उन्हें नहलाते हैं, नए कपड़े पहनाते हैं, और उनके साथ पारिवारिक समारोह मनाते हैं. यह सिर्फ परंपरा नहीं, बल्कि भूत और वर्तमान के बीच पुल बनाने का प्रयास है, जिससे युवा पीढ़ी को अपने पूर्वजों से जोड़ा जा सके.
जब तक जीवनसाथी जीवित, तब तक शव सुरक्षित
कई बार, जब किसी दंपति में एक की मृत्यु हो जाती है, तो दूसरे साथी की मृत्यु तक शव को सुरक्षित रखा जाता है, ताकि दोनों का अंतिम संस्कार एक साथ किया जा सके. इसे "पूया" कहा जाता है एक धार्मिक और सामाजिक मान्यता, जिसमें यह विश्वास किया जाता है कि परलोक की यात्रा साथ ही पूरी होनी चाहिए. यह परंपरा भले ही आधुनिक नजरों से विचित्र या डरावनी लगे, लेकिन यह इस बात का प्रमाण है कि हर संस्कृति मृत्यु को अलग तरीके से देखती है कोई शोक के रूप में, तो कोई सम्मान और पुनर्मिलन के उत्सव के रूप में.


