किम जोंग उन के देश में पाक का नया कदम...उत्तर कोरिया में दूतावास खोलने की तैयारी, भारत को हो सकती है आपत्ति
पाकिस्तान उत्तर कोरिया में अपना दूतावास पुनः खोलने पर विचार कर रहा है. कोविड के बाद बंद यह मिशन अब प्योंगयांग से संदेश मिलने के बाद पुनः सक्रिय हो सकता है. भारत और अमेरिका ने इस कदम पर सुरक्षा चिंताएं जताई हैं.

नई दिल्ली : किम जोंग उन के नेतृत्व वाले उत्तर कोरिया में पाकिस्तान फिर से अपना दूतावास खोलने पर विचार कर रहा है. यह घटनाक्रम ऐसे समय पर सामने आया है जब वैश्विक सुरक्षा पर परमाणु हथियारों को लेकर चिंताएँ बढ़ रही हैं. पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार ने संसद में पुष्टि की कि प्योंगयांग की ओर से उन्हें एक संदेश मिला है, जिसमें दोनों देशों के बीच डिप्लोमैटिक मिशन खोलने का अनुरोध किया गया है. कोविड-19 महामारी के बाद से पाकिस्तान का दूतावास बंद है और फिलहाल इस प्रस्ताव पर विचार जारी है.
पाकिस्तान-उत्तर कोरिया में संबंध
भारत की आपत्ति और सुरक्षा चिंताएं
भारत ने पिछले वर्षों में पाकिस्तान और उत्तर कोरिया के बीच संभावित परमाणु संबंधों पर लगातार आपत्ति जताई है. 2017 में भारत ने प्योंगयांग के नेटवर्क की औपचारिक जांच की मांग की थी. 2022 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को बताया कि डीपीआरके के परमाणु और मिसाइल कार्यक्रमों में वृद्धि क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा है. भारत का यह मानना है कि पाकिस्तान और उत्तर कोरिया के बीच परमाणु तकनीक और मिसाइल सहयोग न केवल दक्षिण एशिया बल्कि वैश्विक सुरक्षा के लिए भी जोखिम पैदा कर सकता है.
कई देश परमाणु हथियारों का परीक्षण कर रहे
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में कहा कि पाकिस्तान और चीन समेत कई देश परमाणु हथियारों का परीक्षण कर रहे हैं. ट्रंप ने तीन दशक के बाद अमेरिका द्वारा परमाणु परीक्षण फिर से शुरू करने की योजना का औचित्य देते हुए कहा कि यह कदम प्रतिद्वंद्वी शक्तियों के साथ बराबरी के आधार पर लिया जा रहा है. ट्रंप ने विशेष रूप से रूस, चीन, उत्तर कोरिया और पाकिस्तान को उन देशों में शामिल किया जो परमाणु हथियारों के परीक्षण में सक्रिय हैं.
दूतावास खोलने का विचार, राजनीति में कई नई चुनौती
पाकिस्तान का उत्तर कोरिया में दूतावास खोलने पर विचार करना वैश्विक राजनीति में कई नई चुनौतियों और बहसों को जन्म दे सकता है. यह कदम अमेरिका, भारत और अन्य क्षेत्रीय शक्तियों के लिए सुरक्षा और कूटनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है. साथ ही, यह घटना दक्षिण एशिया और पूर्व एशिया में परमाणु असमानता और संभावित सैन्य प्रतिस्पर्धा को लेकर गंभीर चिंताएँ पैदा करती है.


