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पाकिस्तान का पाखंड उजागर: कारगिल युद्ध मे मारे गए जवान को पहले पहचानने से किया इनकार, अब 26 साल बाद दिया सम्मान

कारगिल युद्ध में शहीद पाकिस्तानी कैप्टन करनाल शेर खान को अब वीरता का प्रतीक बताकर सम्मानित किया जा रहा है. हालांकि, पाकिस्तान ने पहले शेर खान को पहचानने से इनकार कर दिया था. भारत की मानवीय पहल ने उन्हें पहचान दिलाई और पाकिस्तान ने बाद में उन्हें निशान-ए-हैदर से सम्मानित किया, जो उसकी दोहरी नीति को उजागर करता है.

Yaspal Singh
Edited By: Yaspal Singh

1999 के कारगिल युद्ध में शहीद हुए पाकिस्तानी सेना के कैप्टन करनाल शेर खान को अब पाकिस्तान में वीरता का प्रतीक बताया जा रहा है. हैरानी की बात यह है कि जिस सैनिक के शव को पाकिस्तान ने युद्ध के बाद लेने से मना कर दिया था, आज उसी को राष्ट्रीय नायक का दर्जा दिया जा रहा है. यह घटनाक्रम पाकिस्तान की कथनी और करनी के अंतर को उजागर करता है.

पहले पहचान से इनकार, अब राष्ट्रीय श्रद्धांजलि

हाल ही में पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने खैबर पख्तूनख्वा के स्वाबी ज़िले में स्थित कैप्टन शेर खान की समाधि पर श्रद्धासुमन अर्पित किए. सेना ने उन्हें "अटूट साहस और देशभक्ति" का प्रतीक बताया. लेकिन 1999 में जब उनका शव भारत द्वारा सौंपा गया था, तब पाकिस्तान ने उनकी पहचान स्वीकारने से मना कर दिया था, जबकि उनकी जेब में पहचान से जुड़े दस्तावेज़ मिले थे.

भारत ने दिलाई पहचान

कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान ने अपनी पुरानी नीति अपनाई—अपने सैनिकों की मौजूदगी से इनकार करते हुए उन्हें "मुजाहिदीन" बताया. जब भारतीय सेना ने टाइगर हिल पर पाकिस्तानी सैनिकों को पराजित किया, तो वहां से कैप्टन शेर खान का शव मिला. उस समय ब्रिगेडियर एमपीएस बाजवा, जो 192 माउंटेन ब्रिगेड के कमांडर थे, ने खान के अद्भुत नेतृत्व और बहादुरी को मान्यता देते हुए प्रशस्ति पत्र लिखा और शव पाकिस्तान को सौंपा.

यह भारत की ओर से किया गया मानवीय और पेशेवर कार्य था जिसने कैप्टन खान को पहचान दिलाई और बाद में पाकिस्तान ने उन्हें मरणोपरांत निशान-ए-हैदर से सम्मानित किया—जो कि देश का सर्वोच्च सैन्य सम्मान है.

पाकिस्तान की पाखंड भरी रणनीति

युद्ध के समय पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस समिति (ICRC) के माध्यम से भारत द्वारा सौंपे जा रहे शवों को स्वीकार तो किया, लेकिन विशेष रूप से कैप्टन खान की पहचान को छिपाने की कोशिश की. वाशिंगटन में भारतीय दूतावास ने 15 जुलाई 1999 को बताया था कि पाकिस्तान को कैप्टन खान की पहचान की पूरी जानकारी थी, लेकिन उन्होंने जानबूझकर उसका खुलासा नहीं किया क्योंकि इससे कारगिल में पाकिस्तानी सेना की भागीदारी उजागर हो जाती.

श्रद्धांजलि में छिपा ऐतिहासिक विरोधाभास

आज जब पाकिस्तान के सैन्य अधिकारी कैप्टन खान की कब्र पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और सोशल मीडिया पर उन्हें "शौर्य और प्रेरणा का स्रोत" बताते हैं, तो यह विडंबना और भी गहरी हो जाती है. पाकिस्तान पहले जिस सच्चाई को छुपाना चाहता था, उसी को अब वह राष्ट्रीय गर्व की तरह प्रस्तुत कर रहा है.

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08 July 2025, 03:10 PM IST

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