थमने वाला है रूस-यूक्रेन युद्ध! 3 साल बाद तुर्की में पहली बार मिले दोनों देश
Russia Ukraine Peace Talks: तीन साल बाद रूस और यूक्रेन के बीच पहली बार तुर्की में सीधी शांति वार्ता हुई. डोलमाबाहचे पैलेस में हुई इस बैठक में दोनों पक्षों ने आमने-सामने बैठकर युद्ध समाप्त करने के संभावित रास्तों पर चर्चा की. हालांकि, बड़े नतीजों की उम्मीद फिलहाल कम ही नजर आई.

Russia Ukraine Peace Talks: तीन साल बाद रूस और यूक्रेन के बीच पहली बार आमने-सामने शांति वार्ता तुर्की के इस्तांबुल में आयोजित की गई. डोलमाबाहचे पैलेस में हुई इस ऐतिहासिक बैठक को यूरोप के द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के सबसे घातक संघर्ष को समाप्त करने की दिशा में एक पहल माना जा रहा है. वार्ता का आयोजन ऐसे समय में हुआ है जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा दोनों पक्षों पर दबाव बनाया जा रहा है कि वे युद्ध समाप्त करने के लिए कोई ठोस रास्ता अपनाएं.
बैठक की शुरुआत में तुर्की के विदेश मंत्री हाकान फिदान ने रूसी और यूक्रेनी प्रतिनिधिमंडल को संबोधित किया. यूक्रेनी प्रतिनिधि जहां सैन्य वर्दी में उपस्थित थे, वहीं रूसी प्रतिनिधि औपचारिक सूट पहनकर पहुंचे. इस दृश्य ने ही बैठक की गंभीरता और जमीनी हकीकत को दर्शा दिया.
"शांति या विनाश, रास्ता आपके हाथों में है" -तुर्की
तुर्की के विदेश मंत्री हाकान फिदान ने स्पष्ट शब्दों में कहा, "हमारे सामने दो रास्ते हैं एक जो शांति की ओर ले जाएगा और दूसरा जो और अधिक विनाश और मृत्यु का कारण बनेगा. पक्ष तय करेंगे कि वे कौन-सा रास्ता चुनते हैं." उन्होंने यह भी कहा कि इस्तांबुल की वार्ता दोनों देशों के शीर्ष नेताओं की संभावित मुलाकात का आधार बन सकती है और तुरंत संघर्षविराम की आवश्यकता बेहद अहम है.
वार्ता की पृष्ठभूमि और राजनीतिक दबाव
रूस और यूक्रेन के बीच यह प्रत्यक्ष बातचीत मार्च 2022 के बाद पहली बार हुई है, जब रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया था. हालांकि इस बैठक से किसी बड़े ब्रेकथ्रू की उम्मीदें पहले से ही कम थीं, लेकिन अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप के उस बयान ने उम्मीदों को और कमजोर कर दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि जब तक उनकी और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की सीधी मुलाकात नहीं होती, तब तक कोई प्रगति नहीं होगी.
यूक्रेन की शर्तें
यूक्रेनी प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख ने कहा कि शांति की कोई भी प्रक्रिया तभी संभव है जब रूस 30 दिनों के लिए संघर्षविराम को स्वीकार करे, रूस द्वारा अपहृत किए गए यूक्रेनी बच्चों को वापस लौटाए, और सभी युद्धबंदियों की अदला-बदली के लिए तैयार हो.
रूस की चिंता
रूस की ओर से कहा गया कि वह कूटनीतिक माध्यमों से युद्ध समाप्त करना चाहता है और संघर्षविराम पर चर्चा के लिए तैयार है. लेकिन साथ ही उसने आशंका जताई कि यूक्रेन इस अंतराल का उपयोग अपनी सैन्य ताकत को बढ़ाने, नई सेनाएं जुटाने और पश्चिमी हथियार हासिल करने के लिए कर सकता है.
पुतिन की गैरमौजूदगी, जेलेंस्की की चुनौती
हालांकि पुतिन ने ही इस वार्ता का प्रस्ताव रखा था, लेकिन उन्होंने यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की की सीधी मुलाकात की चुनौती को नजरअंदाज करते हुए अपने स्थान पर मिड-लेवल अधिकारियों को भेजा. जवाब में यूक्रेन ने भी समान स्तर के प्रतिनिधियों को नामित किया.
इस दौरान अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो और ट्रंप के यूक्रेन दूत कीथ केलीग भी इस्तांबुल में मौजूद थे और कई कूटनीतिक वार्ताएं समानांतर रूप से चल रही थीं.
फ्रंटलाइन पर जारी संघर्ष और जमीनी हकीकत
इस्तांबुल में वार्ता शुरू होने के ठीक पहले, यूक्रेनी शहर ड्नीप्रो में हवाई हमलों और विस्फोटों की खबरें आईं. रूस ने पूर्वी यूक्रेन में एक और गांव पर कब्जा करने का दावा किया, जो उसकी धीमी लेकिन लगातार बढ़ती सैन्य बढ़त को दर्शाता है.
यूक्रेन के सेना प्रमुख ओलेक्सांद्र सर्स्की के अनुसार, रूस के लगभग 6.4 लाख सैनिक यूक्रेन में मौजूद हैं और यह युद्ध अब एक "थकावट की लड़ाई" में बदल गया है.
जेलेंस्की की आपत्तियां और रूस की मांगें
रूस का कहना है कि यह वार्ता 2022 की शुरुआत में इस्तांबुल में हुई असफल बातचीत की निरंतरता है. लेकिन यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की के चीफ ऑफ स्टाफ आंद्रेई यरमक ने इसे खारिज करते हुए कहा कि पिछली वार्ताओं की असफल रणनीति को दोहराना व्यर्थ है.
पुतिन अभी भी अपने पुराने रुख पर कायम हैं यूक्रेन को नाटो की सदस्यता से हटना होगा, तटस्थ राष्ट्र बनना होगा और कुछ क्षेत्रों पर रूसी नियंत्रण को मान्यता देनी होगी. यूक्रेन इन शर्तों को आत्मसमर्पण मानता है और अमेरिका सहित वैश्विक शक्तियों से सुरक्षा की गारंटी चाहता है.
लाखों प्रभावित, शहर तबाह
अब तक दोनों पक्षों के लाखों सैनिक हताहत हो चुके हैं. हजारों यूक्रेनी नागरिक मारे गए हैं, कई शहर पूरी तरह तबाह हो चुके हैं और करोड़ों लोगों को अपने घर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा है.
रूस इसे "विशेष सैन्य अभियान" कहता है, जबकि पश्चिमी देश और यूक्रेन इसे "साम्राज्यवादी भूमि हड़पने" की साजिश बताते हैं. रूस का तर्क है कि नाटो का विस्तार उसे उकसाने की एक योजना थी, जिससे खुद को सुरक्षित रखना आवश्यक हो गया.


