शेख हसीना को हटाने वाली पार्टी में पड़ी फूट, तारिक रहमान की वापसी के बाद लगी इस्तीफों की झड़ी
बांग्लादेश में फरवरी चुनाव से पहले छात्र आंदोलन से बनी नेशनल सिटिजन पार्टी गंभीर संकट में है. कमजोर जमीनी पकड़, गठबंधन को लेकर फूट और तारिक रहमान की वापसी ने पार्टी की राजनीतिक प्रासंगिकता और भविष्य पर सवाल खड़े कर दिए हैं.

नई दिल्लीः बांग्लादेश में 12 फरवरी को प्रस्तावित आम चुनावों से पहले छात्र आंदोलन से जन्मी नेशनल सिटिजन पार्टी (NCP) गंभीर राजनीतिक उथल-पुथल के दौर से गुजर रही है. जिस पार्टी को 2024 के शेख हसीना विरोधी आंदोलनों के बाद पारंपरिक राजनीति के विकल्प और तीसरी शक्ति के रूप में देखा जा रहा था, वही अब अपने अस्तित्व को बचाने के लिए बड़े दलों के साथ समझौते की राह तलाशती नजर आ रही है.
छात्र आंदोलन से सत्ता की दहलीज तक
NCP की नींव उन छात्र नेताओं ने रखी थी, जिन्होंने 2024 के व्यापक आंदोलनों के बाद नोबेल विजेता मुहम्मद यूनुस के अंतरिम सरकार के प्रमुख बनने का मार्ग प्रशस्त किया था. शुरुआत में पार्टी ने खुद को भ्रष्टाचार-विरोधी, युवा-केंद्रित और सुधारवादी ताकत के रूप में पेश किया. हालांकि, समय के साथ उस पर यूनुस के संरक्षण में “किंग्स पार्टी” होने के आरोप भी लगने लगे.
जमीनी हकीकत
हालांकि NCP की सोशल मीडिया पर अच्छी-खासी मौजूदगी है, लेकिन जमीनी स्तर पर संगठन बेहद कमजोर साबित हुआ है. 350 सीटों वाली जतिया संसद में सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा अब सिमटकर केवल 30 से 50 सीटों की संभावित सौदेबाजी तक रह गया है. स्थानीय मीडिया के मुताबिक पार्टी अकेले दम पर चुनावी मुकाबला करने की स्थिति में नहीं है.
BNP या जमात? गठबंधन की दुविधा
रिपोर्ट्स के अनुसार, NCP या तो बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) या फिर जमात-ए-इस्लामी के साथ चुनावी तालमेल पर विचार कर रही है. जमात के साथ सीट बंटवारे को लेकर बातचीत हुई, लेकिन 50 सीटों की मांग को अव्यावहारिक बताते हुए चर्चा 30 सीटों तक सिमट गई. दूसरी ओर, BNP के कार्यकारी अध्यक्ष तारिक रहमान की वापसी के बाद पार्टी के भीतर BNP के साथ समझौते की आवाजें भी तेज हो गई हैं.
पार्टी के अंदर फूट
इन गठबंधन चर्चाओं ने NCP को भीतर से तोड़ना शुरू कर दिया है. पार्टी के संयुक्त सदस्य सचिव और चटग्राम इकाई प्रमुख मीर अरशादुल हक का इस्तीफा इसी संकट की बानगी माना जा रहा है. वे जमात से दूरी रखने वाले धड़े के प्रमुख नेता थे. उनके इस्तीफे ने यह साफ कर दिया कि NCP के भीतर मतभेद अब खुलकर सामने आ चुके हैं.
युवा राजनीति की कब्र का आरोप
जमात-NCP बातचीत को लेकर आरोप लगे हैं कि जमात हर सीट के बदले मोटी आर्थिक मदद दे सकती है. छात्र आंदोलन से जुड़े नेता अब्दुल कादर ने इसे युवा राजनीति की कब्र खोदने जैसा कदम बताया. उनका दावा है कि समझौते की स्थिति में NCP अधिकांश सीटों पर उम्मीदवार नहीं उतारेगी.
तारिक रहमान की वापसी से बदला सियासी समीकरण
इस पूरे घटनाक्रम के बीच BNP नेता तारिक रहमान की 17 साल बाद देश वापसी ने राजनीतिक माहौल बदल दिया है. उनके स्वागत में उमड़ी भारी भीड़ ने NCP की हालिया भारत-विरोधी प्रदर्शनों को हाशिये पर धकेल दिया. विशेषज्ञ मानते हैं कि तारिक की वापसी से BNP का पलड़ा भारी हुआ है और NCP की प्रासंगिकता पर सवाल खड़े हो गए हैं.
हिंसा, अस्थिरता और चुनावी चुनौती
देश में बढ़ती भीड़ हिंसा और अल्पसंख्यकों पर हमलों ने चुनावी माहौल को और जटिल बना दिया है. अंतरिम सरकार के बाद से अब तक सैकड़ों लोगों की मौत ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं. विश्लेषकों का मानना है कि अगर NCP टूटती है या किसी बड़े दल में विलीन होती है, तो यह न केवल पार्टी बल्कि बांग्लादेश की युवा राजनीति और आने वाले चुनावों के लिए भी निर्णायक मोड़ साबित होगा.


