अभी नहीं लगेगा टैरिफ का नया झटका, US-China में बनी बात
अमेरिका और चीन ने व्यापारिक टकराव को टालते हुए फिलहाल टैरिफ नहीं बढ़ाने का फैसला किया है. दोनों देशों ने अगले कुछ महीनों तक मौजूदा शुल्क दरें बरकरार रखने और संवाद जारी रखने पर सहमति जताई है.

चीन और अमेरिका के बीच व्यापारिक तनाव को लेकर फिलहाल राहत की खबर आई है. दोनों देश इस बात पर सहमत हुए हैं कि वर्तमान टैरिफ स्तर को बनाए रखा जाएगा. अमेरिका चीनी उत्पादों पर 30% शुल्क लगाएगा, जबकि चीन अमेरिकी वस्तुओं पर 10% टैरिफ लागू रखेगा. यह सहमति स्टॉकहोम में हुई दो दिवसीय बातचीत के बाद बनी, जिसमें दोनों देशों के वरिष्ठ व्यापार प्रतिनिधि शामिल हुए.
हालांकि इस वार्ता में कोई बड़ी आर्थिक सफलता या नए समझौते की घोषणा नहीं की गई, लेकिन यह कदम व्यापारिक रिश्तों को स्थिर करने की दिशा में अहम माना जा रहा है. अमेरिकी अधिकारियों के मुताबिक, टैरिफ में संभावित बदलाव पर अंतिम फैसला राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लेंगे.
अगले 90 दिनों तक टैरिफ स्थिर रहने की उम्मीद
अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने जानकारी दी कि 12 अगस्त को समाप्त हो रहे व्यापार युद्धविराम को बढ़ाने या हटाने का निर्णय ट्रंप द्वारा लिया जाएगा. उन्होंने कहा कि अगले तीन महीनों में अमेरिका और चीन के बीच एक और बैठक हो सकती है. वार्ता के बाद अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि जैमीसन ग्रीर ने भी माना कि बातचीत रचनात्मक रही, लेकिन अंतिम निर्णय राष्ट्रपति ट्रंप के हाथ में होगा.
चीन ने भी जताई सकारात्मकता
चीनी प्रमुख वार्ताकार ली चेंगगांग ने कहा कि दोनों देशों के बीच आर्थिक मसलों पर रचनात्मक चर्चा हुई है और दोनों पक्षों ने मौजूदा टैरिफ स्तर को बनाए रखने पर सहमति जताई है. उन्होंने बताया कि भविष्य में संवाद जारी रखने की प्रतिबद्धता भी दोनों देशों ने दोहराई है.
बंद दरवाजों के पीछे चली लंबी बातचीत
वार्ता का पहला दिन स्वीडन के प्रधानमंत्री कार्यालय में गुजरा, जहां लगभग पांच घंटे तक बंद कमरे में चर्चा हुई. मंगलवार को फिर बातचीत शुरू हुई, जिसमें स्वीडिश प्रधानमंत्री उल्फ क्रिस्टर्सन ने अमेरिकी प्रतिनिधियों से मुलाकात की.
टिकटॉक और ताइवान पर कोई चर्चा नहीं
बेसेंट ने यह स्पष्ट किया कि इस व्यापार वार्ता में टिकटॉक या ताइवान जैसे संवेदनशील मुद्दों पर कोई चर्चा नहीं हुई. उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि अगर चीन प्रतिबंधित रूसी तेल की खरीद जारी रखता है, तो उसे अमेरिका की ओर से उच्च टैरिफ का सामना करना पड़ सकता है.


