भारत-पाक से लेकर रूस-यूक्रेन और इज़राइल-हमास तक, ट्रंप की शांति की कोशिशें कितनी कारगर रहीं?
ट्रंप खुद को दुनिया में शांति लाने वाला लीडर साबित करना चाहते हैं लेकिन उनके सीज़फायर वाले दावे कितने पक्के हैं? भारत-पाक से लेकर रूस-यूक्रेन तक, हर मोर्चे पर उनकी रणनीति पर सवाल उठने लगे हैं... जानिए क्यों उनके शांति मिशन को लेकर दुनिया उलझन में है.

Trump Peace Mission: दुनिया भर में जब-जब जंग का माहौल गर्म हुआ, अमेरिका ने बीच में आकर खुद को 'शांति का दूत' बताया. डोनाल्ड ट्रंप जब से व्हाइट हाउस में दोबारा लौटे हैं, वो लगातार ये दावा कर रहे हैं कि वो दुनिया को शांति की राह पर ले जा रहे हैं. लेकिन क्या वाकई ऐसा हो रहा है? क्या उनके प्रयास कारगर साबित हो रहे हैं या फिर ये सिर्फ दिखावे की कोशिशें हैं? आइए जानते हैं.
भारत-पाक सीज़फायर – शुरुआत ज़ोरदार, अंजाम फीका
ट्रंप ने हाल ही में ऐलान किया कि भारत और पाकिस्तान के बीच उनकी मध्यस्थता से फुल सीज़फायर हो गया है. लेकिन ये दावा चंद घंटों में ही धराशायी हो गया जब पाकिस्तान की ओर से सीमा उल्लंघन की खबरें सामने आ गईं. नतीजा ये हुआ कि भारत में लोगों ने ट्रंप की "शांति नीति" पर ही सवाल उठाने शुरू कर दिए.
रूस-यूक्रेन जंग – 24 घंटे का दावा, महीनों की खामोशी
ट्रंप ने अपने चुनाव प्रचार में कहा था कि अगर वो राष्ट्रपति बनते हैं, तो 24 घंटे में रूस-यूक्रेन युद्ध खत्म कर देंगे. लेकिन हकीकत ये है कि अब तक सिर्फ 30 दिन का एक अस्थायी युद्ध विराम ही हो पाया है. इससे ज़्यादा कुछ नहीं बदला.
इज़राइल-हमास – शांति की बात, लेकिन फिर शुरू हुई बमबारी
जनवरी में अमेरिका, मिस्र और कतर की कोशिशों से इज़राइल और हमास के बीच सीज़फायर हुआ था. लेकिन 18 मार्च को इज़राइल ने फिर से गाज़ा पर बमबारी शुरू कर दी. ट्रंप प्रशासन तब से इस मामले में कोई ठोस हल नहीं निकाल सका, जिससे उनकी कूटनीति पर फिर सवाल खड़े हुए.
हूती विद्रोह – यमन में न ट्रंप की चली, न अमेरिका की धमकी
यमन में हूती विद्रोहियों को रोकने के लिए अमेरिका ने बमबारी की, लेकिन कोई खास असर नहीं पड़ा. हूती विद्रोही आज भी लाल सागर और इज़राइल-अमेरिकी सैन्य ठिकानों को निशाना बना रहे हैं. ओमान की मदद से एक सीज़फायर जरूर हुआ, लेकिन हूती सिर्फ अमेरिका पर हमले रोकने को तैयार हुए — इज़राइल पर नहीं.
बड़ी बातें, छोटे नतीजे
ट्रंप खुद को दुनिया में शांति लाने वाला नेता साबित करना चाहते हैं, लेकिन अब तक के उनके प्रयास आधे-अधूरे ही साबित हुए हैं. चाहे भारत-पाक हो या रूस-यूक्रेन, हर जगह उनकी कोशिशें या तो कमज़ोर पड़ी हैं या लंबे समय तक टिक नहीं पाईं.
क्या ट्रंप की कूटनीति में दम है?
ट्रंप समर्थक मानते हैं कि उनके अचानक और कड़े फैसले ही उनकी ताकत हैं. वहीं आलोचकों का कहना है कि उनके फैसले नासमझी और अहंकार से भरे होते हैं. सवाल यही है — क्या सिर्फ दावे करने से दुनिया में अमन आएगा, या इसके लिए ज़मीन पर भी ठोस काम करना पड़ेगा?


