आखिर क्यों चीन ने निकाली सबसे बड़ी सैन्य परेड... जिनपिंग के इस कदम के पीछे क्या है जापान से जुड़ा इतिहास?
शी जिनपिंग की सैन्य परेड केवल एक सैन्य शक्ति का प्रदर्शन नहीं बल्कि यह चीन की वैश्विक महात्वाकांक्षाओं, गौरवशाली इतिहास और जापान के साथ दशकों पुरानी कटुता को उजागर करने का एक शानदार मंच है. इस परेड के पीछे छिपे इतिहास और इसके गहरे निहितार्थों को रोचक और सरल तरीके से समझें.

China Victory Parade 2025: चीन की राजधानी बीजिंग के तियानआनमेन चौक पर आज भव्य सैन्य परेड का आयोजन किया गया. यह आयोजन द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार और चीन की जीत की 80वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में हुआ. परेड का मकसद केवल सैन्य शक्ति का प्रदर्शन भर नहीं बल्कि इतिहास को पुनर्जीवित कर राष्ट्रीय गौरव और राजनीतिक नैरेटिव को मजबूत करना भी है. राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेतृत्व में आयोजित इस परेड ने यह स्पष्ट संदेश दिया कि चीन अपनी ऐतिहासिक उपलब्धियों को आधुनिक रणनीतिक शक्ति से जोड़ते हुए वैश्विक मंच पर खुद को महाशक्ति के रूप में स्थापित करना चाहता है. हजारों सैनिकों, सैकड़ों टैंकों, मिसाइलों और 100 से अधिक लड़ाकू विमानों की भागीदारी ने इसे 2015 की परेड से भी अधिक भव्य बना दिया.
जापान-चीन संबंधों का ऐतिहासिक संदर्भ
चीन और जापान के बीच तनावपूर्ण रिश्ते कोई नई बात नहीं है. इनका इतिहास 19वीं सदी से ही संघर्ष और अविश्वास से भरा रहा है.
प्रथम सिनो-जापानी युद्ध (1894-1895): कोरिया पर नियंत्रण की जंग में जापान की जीत ने ताइवान सहित कई क्षेत्रों पर कब्जा सुनिश्चित किया और चीन की कमजोरी उजागर हुई.
द्वितीय सिनो-जापानी युद्ध (1937-1945): जापान के आक्रमण के खिलाफ चीन का यह प्रतिरोध युद्ध द्वितीय विश्व युद्ध का अहम हिस्सा रहा.
नानजिंग नरसंहार (1937-1938): जापानी सेना द्वारा लाखों चीनी नागरिकों और सैनिकों की निर्मम हत्या अब भी दोनों देशों के रिश्तों पर गहरा असर डालती है.
जापान का आत्मसमर्पण (3 सितंबर 1945): इसी दिन को चीन विक्ट्री ओवर जापान डे के रूप में मनाता है, जो राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है.
शी जिनपिंग की रणनीति और परेड का महत्व
शी जिनपिंग ने इस परेड को चीन की सैन्य और कूटनीतिक ताकत का प्रदर्शन बताया. इसमें हाइपरसोनिक मिसाइलें, ड्रोन और अत्याधुनिक हथियार शामिल किए गए. परेड ने चीन की वैश्विक महत्वाकांक्षाओं को रेखांकित करते हुए यह संदेश दिया कि देश किसी भी बाहरी चुनौती का सामना करने के लिए तैयार है. इस आयोजन में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग-उन और ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन सहित 26 देशों के नेता या सैन्य प्रमुख शामिल हुए. यह उपस्थिति चीन के बढ़ते कूटनीतिक प्रभाव का सबूत मानी जा रही है, विशेषकर ग्लोबल साउथ के देशों में.
जापान की आपत्ति और कूटनीतिक प्रभाव
जापान ने इस परेड का विरोध करते हुए कई देशों से इसमें शामिल न होने की अपील की. टोक्यो का मानना है कि चीन जानबूझकर जापान-विरोधी भावनाओं को भड़का रहा है. वहीं, बीजिंग ने इसे इतिहास को याद करने और शांति का आह्वान करार दिया.
जापान ने अपने 2025 के रक्षा श्वेत पत्र में चीन को सबसे बड़ी रणनीतिक चुनौती बताया है. हाल के वर्षों में चीनी सैन्य विमान और नौसैनिक जहाज जापान के हवाई और समुद्री क्षेत्र में घुसपैठ करते रहे हैं जिससे तनाव और बढ़ा है.
इतिहास को हथियार बनाने की कोशिश
शी जिनपिंग, रूसी राष्ट्रपति पुतिन की तरह इतिहास का इस्तेमाल घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समर्थन जुटाने के लिए कर रहे हैं. आर्थिक सुस्ती और रोजगार संकट के बीच, राष्ट्रवाद और देशभक्ति को बढ़ावा देना उनकी रणनीति का अहम हिस्सा है. 2014 में चीन की संसद ने 3 सितंबर को विजय दिवस घोषित किया था. तब से यह परेड चीन की राजनीतिक परियोजना का अभिन्न हिस्सा बन गई है जो न केवल जापान बल्कि पश्चिमी देशों और ताइवान के खिलाफ भी कड़ा संदेश देती है.
ताइवान विवाद और ऐतिहासिक नैरेटिव
चीन का दावा है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ताइवान पर उसकी वैधता साबित होती है. हालांकि, पश्चिमी देश और ताइवान इस दावे को खारिज करते हैं. ताइवान की डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (DPP) बीजिंग पर इतिहास तोड़-मरोड़कर पेश करने का आरोप लगाती है. ताइवान के राष्ट्रपति लाई ने तो बीजिंग की इस परेड में अपने अधिकारियों की भागीदारी तक पर रोक लगा दी है.
घरेलू और वैश्विक संदेश
बीजिंग की यह परेड केवल ऐतिहासिक स्मरण नहीं, बल्कि चीन की दीर्घकालिक भू-राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है. घरेलू स्तर पर यह पार्टी के नेतृत्व को मजबूत करने का माध्यम है वहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह चीन को द्वितीय विश्व युद्ध के विजेता और मौजूदा वैश्विक व्यवस्था के स्तंभ के रूप में पेश करने की कोशिश है.


