क्या बांग्लादेश में फिर होगा तख्तापलट? सेना की गतिविधियों से बढ़ी आशंका
बांग्लादेश में अंतरिम प्रमुख सलाहकार मोहम्मद यूनुस की सत्ता अब खतरे में दिख रही है. देश में कानून व्यवस्था बिगड़ती जा रही है और चुनाव को लेकर असमंजस बना हुआ है. ऐसे में सेना ने सख्त रुख अपनाते हुए संकेत दिए हैं कि अगर स्थिति नहीं सुधरी, तो वह खुद नियंत्रण संभाल सकती है.

बांग्लादेश में सत्ता का समीकरण तेजी से बदल रहा है. मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस की स्थिति अब पहले जैसी मजबूत नहीं दिख रही है. कानून व्यवस्था लगातार खराब होती जा रही है और आम चुनाव की तारीख को लेकर असमंजस बना हुआ है. इस बीच सेना ने जो सख्त रुख अपनाया है, उससे यह अटकलें लगाई जा रही हैं कि कहीं बांग्लादेश एक बार फिर सैन्य दखल या
तख्तापलट की ओर तो नहीं बढ़ रहा?
माना जा रहा है कि मोहम्मद यूनुस के बढ़ते ‘दबदबे’ और उनकी विदेश नीति से सेना नाराज है. यूनुस ने चीन और पाकिस्तान से रिश्ते मज़बूत करने के साथ-साथ अमेरिका से भी बैकडोर कनेक्शन बनाए रखे. लेकिन अब जिस तरह से सेना खुद नियंत्रण की दिशा में कदम बढ़ा रही है, वह यूनुस के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकता है.
सेना के फैसले से बदला सत्ता का मूड
बांग्लादेश की सेना अब कानून व्यवस्था को देखते हुए देश की स्थिति पर नियंत्रण पाने की दिशा में सक्रिय होती दिख रही है. इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (ISPR) ने स्पष्ट कहा है कि, "ऐसी कोई भी कार्रवाई जो परेशानी का कारण बने, जनहित के खिलाफ हो या सशस्त्र बलों की छवि को नुकसान पहुंचाए, स्वीकार्य नहीं है." यह बयान अपने आप में यूनुस सरकार को चेतावनी जैसा माना जा रहा है.
चुनाव टालते-टालते फंसे यूनुस
यूनुस पर यह आरोप भी है कि उन्होंने जानबूझकर चुनाव टालते हुए सत्ता में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश की. उन्होंने न तो चुनाव की स्पष्ट तारीख बताई और न ही पारदर्शिता दिखाई. इससे जनता में आक्रोश बढ़ा है और सेना को भी राजनीतिक स्थिति को लेकर चिंता सताने लगी है. अब यह लगभग तय है कि अगर जल्द सुधार नहीं हुआ, तो सेना कोई बड़ा कदम उठा सकती है.
अमेरिका यात्रा से सेना प्रमुख ने बढ़ाई कूटनीतिक पकड़
बांग्लादेश के सेना प्रमुख जनरल वकर-उज-जमान ने हाल ही में अमेरिका का पांच दिवसीय दौरा किया, जहां उन्होंने अमेरिकी सुरक्षा अधिकारियों से बातचीत की. माना जा रहा है कि इस यात्रा के पीछे सिर्फ सैन्य सहयोग ही नहीं, बल्कि राजनीतिक बैलेंस भी एक प्रमुख उद्देश्य था. यूनुस भले ही देश में और विदेश में अपनी ताकत बढ़ाने की कोशिश कर रहे हों, लेकिन सेना प्रमुख भी शांत रहते हुए अपनी शक्ति बढ़ा रहे हैं.
जनता में निराशा, तख्तापलट की सुगबुगाहट?
बांग्लादेश की मौजूदा स्थिति ने देश को राजनीतिक अनिश्चितता के दलदल में धकेल दिया है. शेख हसीना के सत्ता से हटने के बाद यूनुस भले ही अंतरिम सत्ता में आए हों, लेकिन जनता को उनमें स्थायित्व नजर नहीं आ रहा. कानून व्यवस्था की बदहाली और चुनाव को लेकर बनी अनिश्चितता से आम लोग निराश हो चुके हैं. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या बांग्लादेश एक बार फिर सैन्य तख्तापलट की ओर बढ़ रहा है?
क्या यूनुस की रणनीति ही बन रही है उनकी कमजोरी?
चीन, पाकिस्तान और अमेरिका जैसे देशों के साथ एक साथ रिश्ते मजबूत करना यूनुस की चालाकी तो हो सकती है, लेकिन अब यह रणनीति उनकी कमजोरी बनती दिख रही है. सेना और जनता दोनों ही उनके इरादों पर शक कर रहे हैं. अगर हालात यूं ही बिगड़ते रहे तो यूनुस की सत्ता पर संकट और गहरा सकता है.


