बुरी नजर का ताबीज या ट्रेंडी जूलरी? जानिए कैसे बदली 'एविल आई' की पहचान
आज के समय में आपने कई लोगों को नीली आंख जैसी आकृति वाली जूलरी, ब्रेसलेट या होम डेकोर आइटम्स में कुछ खास पहने या लगाए देखा होगा. इसे ही 'एविल आई' कहा जाता है. दावा किया जाता है कि यह ताबीज बुरी नजर, ईर्ष्या और नकारात्मक ऊर्जा से बचाता है. लेकिन क्या ये सिर्फ एक अंधविश्वास है या इसके पीछे कोई ऐतिहासिक और सांस्कृतिक वजह भी है? आइए जानते हैं.

बुरी नजर से बचाव के लिए एक खास नीले रंग की आंख, जिसे 'एविल आई' कहा जाता है, आजकल न सिर्फ धार्मिक मान्यताओं बल्कि फैशन का भी अहम हिस्सा बन चुकी है. यह प्रतीक भारत से लेकर तुर्की, ग्रीस और पश्चिमी देशों तक हर जगह दिखने लगा है. लोगों का मानना है कि यह ताबीज उन्हें नकारात्मक ऊर्जा और ईर्ष्या से बचाता है.
एविल आई का इतिहास 5000 साल पुराना
ऐसा नहीं है कि एविल आई कोई नया ट्रेंड है. BBC की रिपोर्ट्स के अनुसार, सीरिया के टेल ब्राक में खुदाई के दौरान इस नीली आंख की आकृति 3500 ईसा पूर्व की मूर्तियों में भी मिली है. भारतीय लोक संस्कृति से लेकर ग्रीक, तुर्की, यहूदी और मुस्लिम परंपराओं तक, हर किसी में इस प्रतीक का जिक्र मिलता है. यह माना जाता है कि किसी की ईर्ष्यालु दृष्टि से बचने के लिए इस प्रतीक का उपयोग किया जाता था.
क्या है नजर लगना और क्यों होती है इसकी मान्यता
भारतीय समाज में नजर लगना यानी किसी की बुरी ऊर्जा का प्रभाव, एक आम मान्यता है. जब कोई व्यक्ति बिना सराहना किए जलन भरी नजरों से किसी सुंदर वस्तु, व्यक्ति या बच्चे को देखता है, तो माना जाता है कि उसकी बुरी नजर उस पर असर डाल सकती है. भारत में काला टीका, मिर्च-नींबू, धागा या ताबीज पहनने जैसी परंपराएं इसी विश्वास का परिणाम हैं.
अंधविश्वास या मानसिक प्रभाव?
वैज्ञानिक नजरिए से नजर लगने की कोई ठोस पुष्टि नहीं है. इसे एक मनोवैज्ञानिक या सांस्कृतिक धारणा माना जाता है. लेकिन दुनिया के कई हिस्सों जैसे मध्य एशिया, यूरोप, ग्रीस और तुर्की में यह लोक मान्यता आज भी प्रचलित है.
ईरान, तुर्की, ग्रीस से फैशन तक की यात्रा
एविल आई की नीली आंख विशेष रूप से तुर्की और ग्रीस की परंपरा से जुड़ी है. वहां इसे 'नज़र बोनजू' या 'काको माटी' के नाम से जाना जाता है. इसे खास ग्लास से तैयार किया जाता है और इसमें नीला, सफेद और काले रंग की परतें होती हैं. यह प्रतीक अब सिर्फ एक सुरक्षात्मक ताबीज नहीं रहा, बल्कि मशहूर हस्तियों और फैशन ब्रांड्स का हिस्सा बन गया है.
फैशन की दुनिया में एविल आई की एंट्री
किम कार्दशियन, गिगी हदीद जैसे हॉलीवुड सितारों ने इसे ब्रेसलेट और हेडपीस के रूप में पहना है. डोल्से एंड गब्बाना, केन्जो जैसे हाई-एंड ब्रांड्स ने अपने कलेक्शंस में इस प्रतीक को शामिल किया है. अब यह हार, कंगन, अंगूठी, टैटू, फोन केस और यहां तक कि कपड़ों में भी नजर आता है.
धर्मों में नजर का जिक्र
इस्लाम में इसे 'Ayn-Al-Hasood' (ईर्ष्यालु की आंख) कहा गया है. यहूदी, ईसाई और बौद्ध परंपराओं में भी इसका उल्लेख मिलता है. हम्जा नामक ताबीज, जिसमें आंख बनी होती है, वह भी इसी विश्वास को दर्शाता है और यह मुस्लिमों, यहूदियों और ईसाइयों द्वारा पहना जाता है.
सदियों से बदलती मान्यताएं
सदियों से यह मान्यता चलती आ रही है कि किसी की नजर हमारे जीवन को प्रभावित कर सकती है. स्लाविक लोककथाओं से लेकर भारतीय ग्रामीण परंपराओं तक, नजर से बचने के लिए खुद को अंधा करने से लेकर ताबीज पहनने तक की कई कहानियां मौजूद हैं.
आखिर क्यों होती है नीली आंख की खासियत?
नीला रंग शांति और सकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है. वहीं, काली पुतली और सफेद आइरिस का संयोजन बुरी नजर को 'रिफ्लेक्ट' यानी लौटाने की प्रतीकात्मकता दर्शाता है. यही कारण है कि इस ताबीज में नीले, सफेद और काले रंगों का विशेष संयोजन होता है.
अंधविश्वास या ऊर्जा की ढाल?
भले ही इसे वैज्ञानिक प्रमाण न मिले हों, लेकिन सदियों की आस्था और मान्यताओं ने एविल आई को सिर्फ ताबीज नहीं, बल्कि सांस्कृतिक विरासत बना दिया है. आज यह फैशन से लेकर फेथ तक, हर क्षेत्र में एक अहम प्रतीक बन चुका है.


