आज है मार्गशीर्ष मास का पहला सोम प्रदोष व्रत, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त और विधि
सोमवार को पड़ने वाला प्रदोष व्रत, यानी सोम प्रदोष व्रत, भगवान शिव की पूजा का सबसे खास और फलदायी उपवास माना जाता है. ये त्रयोदशी तिथि पर रखा जाता है और जब ये सोमवार से टकराता है, तो इसका महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है.

नई दिल्ली: मार्गशीर्ष महीना हिंदू पंचांग में अत्यंत शुभ और देवताओं का प्रिय माना गया है. इस पूरे माह में जहां भगवान श्रीकृष्ण की विशेष आराधना की जाती है, वहीं त्रयोदशी तिथि पर रखा जाने वाला प्रदोष व्रत भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा प्राप्त करने का सर्वोत्तम अवसर माना गया है. मान्यता है कि प्रदोष काल में शिवपूजन करने से साधक की हर मनोकामना पूर्ण होती है और जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं.
नवंबर 2025 का पहला प्रदोष व्रत आज सोमवार, 17 नवंबर 2025 को रखा जा रहा है. यह व्रत कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर पड़ रहा है और सोमवार के दिन होने के कारण इसे सोम प्रदोष व्रत कहा जाएगा. शास्त्रों के अनुसार, सोमवार और प्रदोष व्रत के संयोग से इस दिन का महत्व कई गुना बढ़ जाता है.
सोम प्रदोष व्रत का महत्व
मान्यता है कि सोम प्रदोष व्रत रखने से साधक को दोगुना फल प्राप्त होता है. कहा जाता है कि “जो व्यक्ति सोम प्रदोष के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा करता है, उसे दोनों व्रतों का पुण्य मिलता है, मनोकामनाएं जल्दी पूरी होती हैं, और जीवन में आने वाली बाधाएं दूर हो जाती हैं.” इस दिन बेलपत्र, अक्षत, चंदन, धूप-दीप और गंगाजल से किए गए शिवाभिषेक को विशेष रूप से शुभ माना गया है.
शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार आज प्रदोष व्रत के अवसर पर शिवपूजन का सर्वोत्तम समय प्रदोष काल में रहेगा. यह पावन अवधि सूर्यास्त के तुरंत बाद आरंभ होती है और लगभग डेढ़ घंटे तक चलती है. आज प्रदोष काल का शुभ समय शाम 4:55 बजे से रात 7:32 बजे तक रहेगा.
प्रदोष काल में पूजा का महत्व
प्रदोष व्रत में पूजा का सबसे पवित्र समय प्रदोष काल ही माना जाता है, जो सूर्यास्त के बाद का लगभग डेढ़ घंटे का समय होता है. मान्यता है कि इसी दौरान भगवान शिव अपने भक्तों पर विशेष कृपा बरसाते हैं. इसलिए इसी समय में किया गया जलाभिषेक, पूजन और प्रदोष स्तोत्र का पाठ अत्यंत शुभ और मंगलकारी माना गया है.
पूजा विधि
प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें.
स्वच्छ और हल्के रंग के वस्त्र पहनें.
व्रत का संकल्प लें.
प्रदोष काल में पूजा आरंभ करें.
पूजा स्थल पर शिवलिंग स्थापित करें या मंदिर जाएं.
भगवान शिव और माता पार्वती पर जल एवं गंगाजल छिड़कें.
दीपक जलाएं, धूप अर्पित करें.
रौली, चावल, चंदन, अक्षत, फूल अर्पित करें.
शिवलिंग पर गंगाजल, दूध, दही, शहद, घी से अभिषेक करें.
बेलपत्र, धतूरा और फल अर्पित करें.
“ॐ नमः शिवाय” मंत्र का कम से कम 108 बार जप करें.
शिव प्रदोष स्तोत्र, शिव चालीसा और महामृत्युंजय मंत्र का पाठ करें.
शिवजी और माता पार्वती की आरती करें.
व्रत का पारण रात्रि में या अगले दिन प्रातः किया जाता है.
Disclaimer: ये धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है, JBT इसकी पुष्टि नहीं करता.


