Holi 2025: कब और किसने खेली थी पहली होली? जानें इसका पौराणिक इतिहास
Holi 2025: होली का इतिहास कई पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ है, जिनमें भक्ति, प्रेम और विजय की कहानियां समाहित हैं. यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत, प्रेम और रंगों का उत्सव है, जिसे पूरे भारत में उल्लास के साथ मनाया जाता है. आइए जानते हैं कि सबसे पहली होली किसने खेली थी.

Holi 2025: रंगों और उमंग का पर्व होली भारत के सबसे पुराने त्योहारों में से एक है. यह उत्सव फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि को पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. इस साल होली 14 मार्च 2025 को मनाई जाएगी. हालांकि, होली की सही उत्पत्ति को लेकर कोई प्रमाणित जानकारी नहीं है, लेकिन इसके पीछे कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं.
होली का उल्लेख हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद की कथा से लेकर राधा-कृष्ण की रंगों वाली होली, शिव-पार्वती और कामदेव की कहानी, पूतना वध और राक्षसी धुंधी से जुड़ी कथाओं में मिलता है. आइए, इन पौराणिक कथाओं को विस्तार से जानते हैं.
हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद की कथा
यह कथा सबसे ज्यादा प्रचलित है. दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने कठोर तपस्या कर ब्रह्मा जी से अमरता का वरदान प्राप्त कर लिया था. वह भगवान विष्णु का कट्टर विरोधी था, क्योंकि विष्णु ने उसके भाई हिरण्याक्ष का वध किया था. उसने अपने राज्य में विष्णु भक्ति पर रोक लगा दी, लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद स्वयं विष्णु का परम भक्त था.
हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के कई प्रयास किए, लेकिन हर बार वह बच गया. अंत में, उसने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए, क्योंकि उसे वरदान था कि आग उसे जला नहीं सकती. लेकिन विष्णु कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहा और होलिका जलकर भस्म हो गई. तभी से हर साल फाल्गुन पूर्णिमा की रात को होलिका दहन की परंपरा है.
राधा-कृष्ण और ब्रज की होली
भगवान श्रीकृष्ण और राधा की होली का विशेष महत्व है. एक कथा के अनुसार, बालकृष्ण ने अपनी माता यशोदा से पूछा कि वे इतने श्यामवर्ण के क्यों हैं, जबकि राधा इतनी गोरी हैं. इस पर माता ने कहा कि वे राधा को अपने रंग में रंग सकते हैं. इसके बाद कृष्ण अपने मित्रों के साथ गए और राधा व उनकी सखियों को रंगों में सराबोर कर दिया. तभी से वृंदावन, मथुरा और बरसाना में धूमधाम से होली खेली जाती है.
पूतना वध और होली का संबंध
कंस को जब यह भविष्यवाणी हुई कि उसकी बहन देवकी का आठवां पुत्र उसका संहार करेगा, तो उसने देवकी के सात पुत्रों को जन्म से पहले ही मार दिया. लेकिन भगवान श्रीकृष्ण जीवित बच गए और गोकुल में नंदबाबा के यहाँ पले. कंस ने बालकृष्ण को मारने के लिए पूतना नामक राक्षसी को भेजा, जो विषैले स्तनपान के जरिए बच्चों की हत्या कर देती थी. लेकिन श्रीकृष्ण ने उसे पहचान लिया और उसका वध कर दिया. ऐसा माना जाता है कि यह घटना फाल्गुन पूर्णिमा को हुई थी, इसलिए इस दिन को होली के रूप में मनाया जाने लगा.
शिव-पार्वती और कामदेव की कथा
एक मान्यता यह भी है कि संसार की पहली होली भगवान शिव ने खेली थी. कथा के अनुसार, भगवान शिव गहरी तपस्या में लीन थे. तभी देवी पार्वती को पाने के लिए कामदेव ने उनकी साधना भंग करने की चेष्टा की. क्रोधित शिव ने अपना तीसरा नेत्र खोल दिया और कामदेव भस्म हो गए. उनकी पत्नी रति ने जब शिव से विनती की, तो उन्होंने कामदेव को पुनः जीवन दिया. इस खुशी में सभी देवताओं ने रंग-गुलाल उड़ाकर उत्सव मनाया, जिसे आगे चलकर होली के रूप में मनाया जाने लगा.
राक्षसी धुंधी और होली की परंपरा
एक अन्य कथा के अनुसार, राजा पृथु के शासनकाल में धुंधी नामक राक्षसी थी, जो बच्चों को अपना शिकार बनाती थी. लेकिन उसे शरारतपूर्ण क्रीड़ाओं से भय था. फाल्गुन पूर्णिमा के दिन बच्चों ने एकजुट होकर हो-हल्ला मचाया, कीचड़ फेंका और आग जलाकर उसे नगर से भगा दिया. तभी से इस दिन होलिका दहन और धूलिवंदन की परंपरा चली आ रही है.
Disclaimer- ये आर्टिकल पौराणिक कथाओं पर आधारित है, JBT इसकी पुष्टि नहीं करता.


