कलमा क्या है? आतंकियों ने इस्लाम के नाम पर की 'नापाक' हरकत, धर्मगुरुओं ने बताया गुनाह
पहलगाम आतंकी हमले की दर्दनाक कहानी ने देश को झकझोर कर रख दिया है. इस हमले में आतंकियों ने पर्यटकों से जबरन 'कलमा' पढ़ने को कहा और इनकार करने पर गोलियों से भून दिया.

पहलगाम हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया है. आतंकी हमले की जिस तरह की जानकारी सामने आ रही है, वह रूह कंपा देने वाली है. बताया जा रहा है कि आतंकियों ने पर्यटकों से जबरन 'कलमा' पढ़ने को कहा और ऐसा न करने वालों को गोली मार दी. सवाल ये उठता है कि क्या इस्लाम जबरन किसी से कलमा पढ़वा सकता है? धर्मगुरुओं और इस्लामिक स्कॉलर्स ने इस पर साफ-साफ जवाब दिया है. नहीं! ऐसा करना इस्लाम के खिलाफ है.”
इस्लाम के नाम पर की गई इस बर्बरता की हर तरफ निंदा हो रही है. जानकारों का कहना है कि अगर आतंकी 'कलमा' का सही मतलब समझते, तो कभी भी ऐसी हरकत न करते. चलिए जानते हैं कि आखिर 'कलमा' का क्या मतलब है, इसका इस्लाम में क्या स्थान है और जबरन किसी को कलमा पढ़वाना कितना बड़ा गुनाह है.
कलमा का क्या मतलब है?
इस्लामिक स्कॉलर गुलाम रसूल देहलवी के मुताबिक, इस्लाम धर्म की नींव हजरत आदम अलैहिस्सलाम के समय पड़ी और इसे पूर्ण रूप से आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब ने दुनिया के सामने रखा. इस्लाम के पांच मुख्य स्तंभ हैं. कलमा, नमाज, रोजा, जकात और हज, जिनमें 'कलमा' सबसे पहला और मूल सिद्धांत है.
'कलमा' का शाब्दिक अर्थ है 'गवाही' या 'शपथ'. यानी जिस तरह एक सरकारी अफसर शपथ लेकर अपने पद की ज़िम्मेदारी संभालता है, उसी तरह इस्लाम में प्रवेश करने वाला व्यक्ति अल्लाह और उसके आखिरी पैगंबर मोहम्मद पर विश्वास की शपथ लेता है.
छह कलमा और उनका महत्व
इस्लाम में छह प्रकार के कलमे माने जाते हैं:
1. कलमा तय्यब
2. कलमा शहादत
3. कलमा तमजीद
4. कलमा तौहीद
5. कलमा इस्तिगफार
6. कलमा रद्द ए कुफ्र
इनमें सबसे महत्वपूर्ण है पहला कलमा तय्यब “ला इलाहा इल्लल्लाहु मुहम्मदुर्रसूलुल्लाहि”,
जिसका अर्थ है: “अल्लाह के सिवा कोई पूजनीय नहीं और मोहम्मद अल्लाह के रसूल हैं.” यह इस्लाम में दाखिल होने की पहली और अनिवार्य शर्त है.
क्या जबरन कलमा पढ़वाया जा सकता है?
इस्लामिक जानकारों के मुताबिक, इस्लाम में कोई ज़बरदस्ती नहीं है. कुरान की सूरा बकरा, आयत 256 में साफ तौर पर लिखा है कि धर्म में कोई जबरदस्ती नहीं है.” इसके अलावा, सूरा यूनुस की आयत कहती है. अगर खुदा चाहता, तो धरती के सारे लोग मुसलमान हो जाते. जब खुदा ने किसी को मजबूर नहीं किया, तो इंसान को ये हक कहां से मिला?
पैगंबर मोहम्मद ने कभी नहीं की जबरदस्ती
हदीस (इस्लामिक शिक्षाएं) में उल्लेख है कि पैगंबर मोहम्मद साहब ने कभी किसी को इस्लाम अपनाने के लिए मजबूर नहीं किया. वे हमेशा प्रेम, शांति और समझदारी से लोगों को इस्लाम की ओर आमंत्रित करते थे. इसलिए किसी से जबरन कलमा पढ़वाना न सिर्फ इस्लाम के उसूलों के खिलाफ है, बल्कि एक महापाप भी है.
हत्या करना इस्लाम में ‘हराम’
कुरान की सूरतुन्निसा, आयत 93 में अल्लाह कहता है, जो जानबूझकर किसी निर्दोष की हत्या करेगा, उसकी सजा जहन्नुम है. पैगंबर मोहम्मद ने भी हदीस में कहा है कि मनुष्य तब तक सही राह पर होता है जब तक वह किसी का खून ना बहाए. इस्लाम किसी निर्दोष की हत्या को सबसे बड़ा गुनाह मानता है.
पहलगाम में जो हुआ, वह इस्लाम नहीं
22 नवंबर को जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले के पहलगाम में हुआ आतंकी हमला न सिर्फ अमानवीय था, बल्कि इस्लाम के उसूलों के भी खिलाफ था. आतंकियों ने पहले पर्यटकों से नाम पूछा, फिर कलमा पढ़ने को कहा और इनकार करने पर गोली मार दी. इस हमले में 28 मासूम लोगों की जान चली गई.
नफरत फैलाने की साजिश
धर्मगुरुओं का कहना है कि आतंकियों ने कलमा जैसे पवित्र शब्द को अपने नापाक इरादों के लिए इस्तेमाल कर बदनाम करने की कोशिश की है. इस्लाम की असली शिक्षाओं को बदनाम करने और इंसानों के बीच नफरत फैलाने के लिए इस तरह की बर्बरता की गई.


