पढ़ें इंदौर के प्राचीन जूनी मंदिर का इतिहास, जहां शनि देव होते हैं आकर विराजमान
हर साल शनि जयंती पर इस मंदिर में भव्य कार्यक्रम मनाया जाता है, जिसमें गायक और संगीतकार आकर अपनी प्रस्तुति देते हैं.

शनि देव को कर्मों का फल देने वाले देवता के रूम में पूजा जाता है. शनि भगवान में यदि आपकी अटूट श्रद्धा है तो एक बार इंदौर के प्राचीन जूनी शनि मंदिर में दर्शन करने जरूर जाएं. हर मंदिरों में शनि की प्रतिमा बिना किसी श्रृंगार के काले रंग की देखने को मिलती है. मगर यहां नजारा बिल्कुल अलग है. इस मंदिर में शनि महाराज पूरे 16 श्रृंगार के साथ विराजमान रहते हैं. दरअसल ये देश का पहला ऐसा मंदिर है. जहां शनि महाराज स्वयं पधारे थे.
कल मनाई जाएगी शनि जयंती
मंदिर पुजारी सविता तिवारी का कहना है कि यहां हर दिन दूध और जल से शनिदेव का अभिषेक होता है. इसके बाद प्रतिमा का 16 श्रृंगार किया जाता है. श्रृंगार के बाद शनि महाराज का रूप और सुंदर लगता है. क्योंकि यहां के शनि महाराज क्रोध और प्रकोप नहीं बल्कि खुशियों से भक्तों की झोली भर देते हैं. यहां के शनि महाराज सरसों के तेल से नहीं बल्कि सिंदूर से श्रृंगार करते थे. जिसके बाद उनका रूप बेहद मनमोहक लगने लगता है.
मंदिर से जुड़ा है पुराना इतिहास
पुजारी ने कहा कि मंदिर के जगह पर लगभग 300-400 साल पहले 20 फीट ऊंचा एक टीला हुआ करता था. जहां कपड़े धोए और सुखाए जाते थे, एक दिन अचानक जन्मा गोपालदास के सपने में शनिदेव आए और बोले तुम लोग मुझ पर कपड़े धोते हो जबकि मैं तो शनि हूं. इस बात का जवाब देते हुए गोपालदास ने कहा शनिदेव मैं तो देखने में असमर्थ हूं. मैं आपकी प्रतिमा को कैसे देख सकता हूं.
इसके बाद जब नींद से गोपाल दास की आंखें खुली तो उनकी आंखों के सामने एक रोशनी आई. जिसके बाद टीले की खुदाई की गई. टीले से शनिदेव की एक प्रतिमा निकली जिसको लगभग 10-12 फीट की दूरी पर ले जाकर स्थापित किया गया था. इसके बाद हर रात शनि देव उस जगह पर आकर विराजमान हो जाते थे. इस मंदिर में ढैय्या और साढ़ेसाती से पीड़ित लोगों की परेशानियां कम होती है.


