देवबलोदा का अधूरा शिव मंदिर, जहां अधूरी दीवारों में भी बसते हैं भोलेनाथ, जानिए इतिहास
सावन का महीना शुरू हो गया है. इस बीच आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां के अधूरे दीवार में भी शिव जी वास करते हैं. हालांकि, ये शिव मंदिर अधूरा है, लेकिन यहां भक्तों की आस्था पूरी है. सावन में यहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है, क्योंकि माना जाता है कि यहां भगवान शिव स्वयंभू रूप में विराजमान हैं और हर मुराद पूरी करते हैं. तो चलिए जानते हैं.

Sawan 2025: छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में स्थित देवबलौदा का महादेव मंदिर न सिर्फ एक धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह इतिहास और शिल्पकला का भी जीता-जागता उदाहरण है. सावन के पावन महीने में इस मंदिर की महत्ता और बढ़ जाती है, जब यहां शिवभक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है. यह मंदिर यूं तो अधूरा है, लेकिन इसकी भव्यता और कथाओं से जुड़ी मान्यताएं इसे हर श्रद्धालु के लिए पूर्ण बना देती हैं.
13वीं सदी में कलचुरी शासकों द्वारा निर्मित यह मंदिर आज भी अधूरा है, पर इसकी मूर्तिकला और स्थापत्य कला इतनी अद्भुत है कि इसकी तुलना खजुराहो के मंदिरों से की जाती है. हर साल महाशिवरात्रि पर यहां विशाल मेला लगता है और मान्यता है कि इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग स्वयंभू है, यानी यह पृथ्वी से खुद निकला है.
शिवलिंग स्वयंभू और नाग करते हैं रक्षा
देवबलौदा के इस शिव मंदिर में स्थापित शिवलिंग को भूगर्भ से प्रकट हुआ माना जाता है. भक्तों का विश्वास है कि इस मंदिर में भगवान शिव की रक्षा स्वयं नाग करते हैं. यही कारण है कि यहां दर्शन के लिए आने वालों का तांता सालभर लगा रहता है.
खजुराहो जैसी मूर्तिकला, राष्ट्रीय महत्व का धरोहर
यह मंदिर दुर्ग जिला मुख्यालय से केवल 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इसे 13वीं सदी में कलचुरी राजाओं ने बनवाया था और 1958 के अधिनियम के अंतर्गत राष्ट्रीय महत्व का पुरातात्विक स्मारक घोषित किया गया है. मंदिर की शिल्पकला को देखकर इसकी तुलना मध्यप्रदेश के खजुराहो और छत्तीसगढ़ के भोरमदेव मंदिर से की जाती है.
कारीगर की आत्महत्या और अधूरा रह गया मंदिर
इस मंदिर से जुड़ी एक मार्मिक कथा है. कहा जाता है कि इसे बनाने वाला शिल्पी निर्वस्त्र होकर निर्माण कार्य करता था और उसकी पत्नी हर दिन उसे भोजन देने आती थी. लेकिन एक दिन उसकी बहन भोजन लेकर आई, जिसे देखकर शिल्पी शर्म से कुंड में कूद गया और उसने जान दे दी. बाद में बहन ने भी पास के तालाब में छलांग लगा दी. यही कारण है कि मंदिर का ऊपरी हिस्सा अधूरा रह गया.
मंदिर परिसर का कुंड और गुप्त सुरंग
मंदिर के अंदर स्थित कुंड सालभर जल से भरा रहता है. माना जाता है कि इस कुंड में एक गुप्त सुरंग है, जो सीधे आरंग स्थित एक अन्य मंदिर तक जाती है. यह रहस्य आज भी लोगों को आकर्षित करता है और इस स्थान की पौराणिकता को गहराई देता है.
करसा तालाब और बहन की बलिदान गाथा
जिस तालाब में शिल्पी की बहन ने जान दी थी, उसे आज करसा तालाब कहा जाता है. इसकी कहानी लोगों की जुबान पर आज भी ताजा है और हर साल यहां आने वाले श्रद्धालु इस स्थान पर भावभीनी श्रद्धांजलि देते हैं.
मनोकामना पूर्ति का स्थान है यह मंदिर
श्रद्धालुओं का विश्वास है कि इस मंदिर में सच्चे मन से पूजा करने पर हर मनोकामना पूर्ण होती है. विशेष रूप से सावन के महीने में यहां शिवभक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है और वातावरण हर-हर महादेव के जयघोष से गूंजता है.
हर साल महाशिवरात्रि पर लगता है विशाल मेला
मंदिर में हर साल महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर विशाल मेला आयोजित होता है, जहां दूर-दूर से श्रद्धालु बाबा भोलेनाथ के दर्शन के लिए आते हैं. इस दौरान पूरा इलाका भक्ति और श्रद्धा के रंग में रंग जाता है.
अधूरा होते हुए भी है संपूर्ण
हालांकि यह मंदिर निर्माण के समय अधूरा रह गया, लेकिन श्रद्धा की दृष्टि से यह पूर्ण मंदिर है. इसकी दीवारों पर उकेरी गई मूर्तियां, कथा-कहानियों से जुड़ी मान्यताएं और श्रद्धालुओं का अटूट विश्वास इसे पूर्णता प्रदान करते हैं.
सावन में शिवभक्ति का विशेष केंद्र
सावन के महीने में यह मंदिर विशेष आकर्षण का केंद्र बन जाता है. भक्तों का मानना है कि यहां पूजा करने से भगवान शिव विशेष रूप से प्रसन्न होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि प्रदान करते हैं.


