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Eid-ul-Adha 2025: भारत में कब होगा चांद का दीदार? जानिए सही तारीख और समय

ईद-उल-अधहा, जिसे बकरीद भी कहा जाता है, इस्लामिक पर्व है जो बलिदान, समर्पण और भाईचारे का प्रतीक है. ये हज यात्रा के समापन पर मनाया जाता है और धार्मिक महत्व के साथ-साथ सामाजिक एकता का संदेश भी देता है.

ईद-उल-अधहा (जिसे बकरीद भी कहा जाता है) इस्लाम धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो धुल-हिज्जा माह में मनाया जाता है. ये त्योहार हज यात्रा की समाप्ति का प्रतीक होता है, जिसे मुस्लिम धर्मावलंबी अत्यधिक श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाते हैं. इस दिन, विशेष रूप से बलिदान की परंपरा का पालन किया जाता है, जहां लोग बकरा या अन्य हलाल पशुओं का क़ुर्बानी करते हैं. ये बलिदान सिर्फ धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि अल्लाह के प्रति श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक भी होता है.

धूल हिज्जा माह की शुरुआत के साथ, हज यात्रा भी शुरू होती है और बकरीद हज यात्रा के समापन पर मनाया जाता है. इस पर्व का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व ना केवल बलिदान के रूप में, बल्कि समाज में समानता और भाईचारे का संदेश देने के रूप में भी है.

चांद की दृष्टि और तिथियां

सऊदी सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम समुदाय से 27 मई, मंगलवार को चांद देखने की अपील की है. खाड़ी समाचारों के अनुसार, कोर्ट ने कहा है कि जो भी चांद देखे, वो अपनी गवाही नजदीकी कोर्ट में दे. चांद की दृष्टि से ही अर्फात दिवस और ईद-उल-अधहा की तिथि तय होगी, जो धूल हिज्जा 1446 एच की शुरुआत का संकेत भी देगी.

अगर 27 मई को चांद दिखाई देता है, तो धूल हिज्जा माह 28 मई से शुरू होगा और अर्फात दिवस 5 जून को, जबकि ईद-उल-अधहा 6 जून को मनाई जाएगी. अगर चांद 27 मई को ना दिखे, तो एक दिन बढ़कर 7 जून को ईद मनाई जाएगी.

भारत, पाकिस्तान, मलेशिया, इंडोनेशिया, जापान, हांगकांग और ब्रुनेई में मुसलमानों द्वारा चांद देखने का प्रयास 28 मई, 2025 को किया जाएगा. अगर चांद 28 मई को दिखाई देता है, तो धूल हिज्जा माह 29 मई से शुरू होगा और ईद-उल-अधहा 7 जून को होगी, अन्यथा 8 जून को ईद मनाई जाएगी.

ईद-उल-अधहा का ऐतिहासिक महत्व

ईद-उल-अधहा की शुरुआत से जुड़ी एक प्रसिद्ध कहानी है, जो हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) से जुड़ी है. इस्लामी मान्यताओं के अनुसार, अल्लाह ने इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) से कहा था कि उन्हें अपनी सबसे प्रिय वस्तु का बलिदान करना होगा. इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) ने बिना किसी हिचकिचाहट के अपने बेटे इस्माइल (अलैहिस्सलाम) को बलिदान करने का फैसला किया. लेकिन जब वो अपने बेटे को बलिदान करने के लिए तैयार हुए, तो अल्लाह ने उनका इरादा स्वीकार कर लिया और उनके बेटे की जगह एक बकरा क़ुर्बान करने का आदेश दिया. इस घटना के बाद से ईद-उल-अधहा की परंपरा की शुरुआत हुई, जो आज भी दुनिया भर में मनाई जाती है.

ईद-उल-अधहा का धार्मिक महत्व

ईद-उल-अधहा केवल बलिदान का पर्व नहीं है, बल्कि इसका गहरा धार्मिक और सामाजिक महत्व भी है. ये त्यौहार समर्पण, बलिदान और परोपकार का प्रतीक है. बकरीद के दिन जो बलिदान किया जाता है, वो 3 भागों में बांटा जाता है:- 

  • पहला हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों को दान किया जाता है.

  • दूसरा हिस्सा रिश्तेदारों और दोस्तों के बीच बांटा जाता है.

  • तीसरा हिस्सा परिवार के लिए रखा जाता है.

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26 May 2025, 07:07 PM IST

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